नई दिल्ली: गलवान घाटी में 20 भारतीय जवानों के मारे जाने के बाद से जहां पूरे देश में चीन विरोधी भावनाएं जोर पकड़ रही हैं तो वहीं भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का एक वर्ग भी सोशल मीडिया पर चीन के खिलाफ मुखर हो गया है, और चीनी सामानों और मोबाइल एप्स के बहिष्कार का आह्वान कर रहा है.
पहली बार गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के घुसपैठ करने की खबरें आने के कुछ ही समय बाद, 30 मई को एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी चेतन सांघी, जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव हैं ने ट्वीट कर कहा था, मेरा अगला फोन #MadeInIndia होगा. इस ट्वीट के साथ एक फोटो भी थी जिस पर लिखा था, बधाई हो आप कमाल हैं, आपके सिस्टम में कोई चीनी एप नहीं है.
My next phone will be #MadeInIndia pic.twitter.com/3BejM6vxYE
— Chetan Sanghi (@ChetanSanghi) May 30, 2020
अगले ही दिन अंडमान-निकोबार में सांघी की सहयोगी एजीएमयूटी कैडर की 2013 बैच की युवा आईएएस अफसर अंजलि शेरावत ने ट्वीट किया, पूर्व में खरीदे जा चुके चीनी फोन को फेंकने से उसकी अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं होगा! आगे खरीदने का बहिष्कार करना होगा!
शेरावत ने यह प्रतिक्रिया एक उपयोगकर्ता के उस ट्वीट पर दी थी जिसमें उसने कहा था कि शेरावत की ट्वीट की हुई एक फोटो चीनी कंपनी रेडमी के फोन से खींची हुई है.
बहिष्कार यानी खरीदने से पहले इंकार करना
2013 बैच के एक अधिकारी राजेंद्र भरुड़, जो महाराष्ट्र में कलेक्टर के तौर पर तैनात हैं, ने भी लोगों से चीनी उत्पादों के बहिष्कार की अपील की.
Salute the courage & sacrifice of brave officers/soldiers who laid their lives protecting territory of our Nation, condolences to their families -China must be sent a strong message registering India’s protest & anguish #IndiaChinaFaceOff #BoycottChineseProducts
— Dr Rajendra Bharud IAS (@IASRajBharud) June 16, 2020
भरुड़ ने 16 जून को ट्वीट किया, देश की रक्षा के लिए अपनी जान गंवा देने वाले अधिकारियों/जवानों के साहस और बलिदान को सलाम, उनके परिवार के प्रति संवेदना…भारत की आपत्ति और पीड़ा दर्शाने के लिए चीन को सख्त संदेश भेजा जाना चाहिए #IndiaChinaFaceOff, #BoycottChineseProducts.
Mostly #boycott is about refusing stuff before it is bought. And not about paying for expensive, foreign stuff through your nose and then smashing it to pieces. A classic case of cutting off your nose to spite your face!#JustAThought #BoycottChineseProducts
— Aditi Garg (@AditiGargIAS) June 17, 2020
वहीं एक अन्य आईएएस अफसर अदिति गर्ग ने बुधवार को शेरावत की बात को ही आगे बढ़ाया और तर्क दिया कि पहले चीनी उत्पाद खरीदना और फिर उनका बहिष्कार करना नासमझी है.
गर्ग ने ट्वीट किया, असल में #boycott का मतलब है सामान को खरीदने का विरोध करना. ना कि पहले किसी विदेशी सामान को अच्छी-खासी कीमत चुकाकर खरीदना और फिर उसे नष्ट कर देना. यह चेहरा बिगाड़ने के लिए नाक काट देने का बेहतरीन उदाहरण है! #JustAThought #BoycottChineseProducts.
अधिकारियों का सरकारी मामलों में बोलना नियम विरुद्ध
दिप्रिंट से बातचीत में एक आईएएस अधिकारी ने कहा, यह कुछ मामले हैं लेकिन इसे सभी अधिकारियों की व्यापक राय के तौर पर नहीं माना जा सकता.
उन्होंने यह भी कहा कि यह ऐसे संवेदनशील सरकारी मामलों में अधिकारियों के लिए निर्धारित आचरण नियमों का उल्लंघन है, जब तक उन्हें इसके लिए अधिकृत ना किया जाए.
अपनी पहचान उजागर ना करने के इच्छुक इस अधिकारी ने कहा, स्पष्ट शब्दों में कहें तो नियमों के तहत विदेश दौरा करने के दौरान अधिकारियों के भारत या विदेश मामलों पर अपने विचार रखने पर पाबंदी है.
ऐसे कई नियम हैं, जो सामान्य तौर पर अधिकारियों को सरकारी नीतियों पर अपनी राय रखने से रोकते हैं,…लेकिन समस्या यह है कि जब आप सरकार के पाले में खड़े होकर कुछ करते हैं तो कोई कार्रवाई नहीं की जाती, और जब आप ऐसा नहीं करते तो आपको रोकने के लिए सभी कानूनों का इस्तेमाल कर लिया जाता है.
आचरण संहिता के नियम 7 के तहत, सेवा में होने वाला कोई भी सदस्य, किसी सार्वजनिक मीडिया पर रेडियो प्रसारण या कम्युनिकेशन में अथवा गोपनीय रूप से प्रकाशित किसी दस्तावेज में अपने छद्म नाम अथवा अपने या किसी अन्य के नाम से ऐसा कोई तथ्यात्मक बयान या विचार व्यक्त नहीं करेगा जो केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी भी मौजूदा या हालिया नीति अथवा कार्रवाई की आलोचना करने वाला हो, केंद्र सरकार और किसी भी राज्य सरकार के बीच संबंधों को प्रभावित कर सकता हो या फिर केंद्र सरकार और किसी दूसरे देश की सरकार के बीच रिश्तों के प्रतिकूल हो.
इस नियम का हवाला देते हुए उक्त अधिकारी ने कहा, अगर आप चाहें तो इसे यह कहते हुए अधिकारियों के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं कि उन्होंने किसी विदेशी सरकार के साथ देश के रिश्तों को मुश्किल में डाला है….लेकिन सवाल है ऐसा करेगा कौन?
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और किताब एवरीथिंक यू इवर वांटेंड को टू नो एबाउट ब्यूरोक्रेसी बट वर अफ्रेड टू आस्क के लेखक टीआर रघुनंदन कहते हैं, आचरण के नियम पुराने और पूरी तरह से निर्रथक हो चुके हैं.
उन्होंने कहा,….ये सब तब बनाए गए थे जब अधिकारियों के पास सार्वजनिक तौर पर संवाद का जरिया सिर्फ प्रेस या रेडियो होता था. इसमें सोशल मीडिया को लेकर कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे सरकार को कुछ अधिकारियों को दंडित करने और अन्य मामलों में दूसरी तरह का रुख अपनाने की सहूलियत मिल जाती है.
उन्होंने आगे जोड़ा, जैसा कि इस मामले में हर कोई समझ सकता है कि सरकार इसे देशभक्ति की भावना से जोड़कर देखेगी, इसलिए कुछ नहीं किया जाएगा लेकिन अगर मैं अधिकारी होता तो सिद्धांतत: विदेश नीति पर इस तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं देता.
दिप्रिंट ने इस मामले में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के प्रवक्ता शंभु चौधरी से टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क किया तो उन्होंने बाद में जवाब देने की बात कही. चौधरी की प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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