नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में होने वाली ओपन बुक परीक्षा के विरोध में पीएम नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा गया है. जुलाई में होने वाली इस परीक्षा के ख़िलाफ़ दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डूटा) द्वारा भेजे पत्र में पीएम मोदी से ओपन बुक परीक्षा के मामले में दख़ल देने की मांग की गई है.
डूटा ने चेंज.ओआरजी पर यूनिवर्सिटी में प्रस्तावित ओपन बुक परीक्षा के ख़िलाफ़ एक पिटीशन डाली थी. इसको 15,000 से अधिक लोगों का समर्थन मिला है. डूटा के मुताबिक इसका समर्थन करने वाले 15,701 लोगों में डीयू के शिक्षक, छात्र और छात्रों के परिजन शामिल हैं.
पिटीशन के साथ भेजे गए पीएम मोदी को संबोधित करते पत्र में लिखा है, ‘दिल्ली यूनिवर्सिटी में होने वाली ओपन बुक परीक्षा के मामले हम आपसे दख़ल देने की अपील करते हैं. प्रशासन ने ये फ़ैसला एकतरफ़ा तरीके से बिना किसी चर्चा के लिया है.’
डूटा के अध्यक्ष रजीव रे ने कहा, ‘हम यूनिवर्सिटी की स्वायत्ता का सम्मान करते हैं. इसी वजह से हम पीएम को शायद ही कभी ख़त लिखते हैं. लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी कई अन्य सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तुलना में बहुत बड़ी है. इसे ओपन बुक परीक्षा के लिए प्रयोगशाला नहीं बनाया जाना चाहिए.’
डूटा का कहना है कि पिटिशन को मिले व्यापक समर्थन मिला, जिससे साफ़ है कि उनके द्वारा किया जा रहा ओपन बुक परीक्षा का विरोध सही है. पत्र में ये भी कहा गया है कि कोविड-19 बीमारी ने पहले ही सबको व्यापक तौर से प्रभावित किया है. शिक्षा के मामले में इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव अंतिम वर्ष के छात्रों पर पड़ा है.
इसमें लिखा है, ‘फ़ाइनल ईयर के बच्चे सफ़लतापूर्वक अपनी पढ़ाई पूरी करने और भविष्य की ओर कदम बढ़ाने की उम्मीद कर रहे थे. ऐसे समय में शिक्षकों को छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करनी चाहिए, ना कि उन्हें ओपन बुक परीक्षा जैसे क्रूर प्रयोग की तरफ़ ढकेलना चाहिए.’
डूटा ने विरोध का अहम कारण बताते हुए कहा है कि इस तरह की परीक्षा बेहद भेदभावपूर्ण है. पीएम को भेजे गए ख़त में लिखा है, ‘ये बेहद भेदभावपूर्ण (परीक्षा) है, ख़ास तौर पर ये दिव्यांग छात्रों के लिए और भी भेदभावपूर्ण है क्योंकि ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों ही मामले में उनके लिए संसाधन बेहद सीमित मात्र में उपलब्ध होते हैं.’
दिल्ली यूनिवर्सिटी ने 30 मई को अंडर ग्रैजुएट छात्रों की इस ओपन बुक परीक्षा से जुड़ा एक नोटिफिकेशन जारी किया था. इसके 16वें प्वाइंट में लिखा है कि जो ओपन बुक परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएंगे उन्हें स्थिति सामान्य होने और यूनिवर्सिटी लौटने पर परीक्षा दोने का मौका मिलेगा. ऐसे छात्र संभावित तौर पर सितंबर में परीक्षा का फॉर्म भर सकते हैं.
हालांकि, नोटिफ़िकेशन के विरोध में डूटा का कहना है, ‘इंटरनेट से लैस समृद्ध बच्चों को तो दो बार मौका मिलेगा. लेकिन जो कमज़ोर हैं उन्हें भेदभाव और मानिसक तनाव का सामना करना पड़ेगा.’ दरअसल, नोटिफिकेशन के चौथे प्वाइंट में ओपन बुक परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों को ग्रेड सुधारने के लिए फिर से मौका दिए जाने की भी बात कही गई है.
डूटा ने ये कहते हुए भी ओपन बुक परीक्षा पर प्रश्न खड़ा किया है कि यूनिवर्सिटी परीक्षा में होने वाली बेईमानी को इस परीक्षा में नहीं रोक पाएगी. ऐसे में परीक्षा कराने का क्या औचित्य है? उल्टा इससे ईमानदार छात्रों को नुकासना पहुंचेगा. पत्र में डूटा ने मई में कराए गए उस सर्वे का भी ज़िक्र किया है जो ऑनलाइन परीक्षा के विषय पर किया गया था.
इसमें 52,000 छात्रों ने भाग लिया था. 26 मई को हुए सर्वे की मानें तो 85 प्रतिशत छात्र ओपन बुक परीक्षा के विरोध में हैं. डीयू के कुछ विभगों ने भी इसका विरोध किया है. ये भी कहा गया है कि आईआईटी समेत भारत और दुनिया भर के अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों ने छात्रों को डिग्री देने के वैकल्पिक रास्ते अख़्तियार किए हैं.
डूटा का मानना है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी ऐसा हो सकता है. इसी सब का हवाला देते हुए पीएम मोदी से मांग की गई है कि वो परीक्षा की पवित्रता को बचाने के लिए मामले में सीधा हस्ताक्षेप करें.