नई दिल्ली: कोविड-19 वैश्विक महामारी से कारगर ढंग से निपटने के लिए, केरल मॉडल की दुनिया भर में सराहना हुई है. अपने यहां मामलों की संख्या कम रखने के लिए, केरल सरकार ने कई उपाय किए हैं, और उनमें से एक है आयुर्वेद के इस्तेमाल से, लोगों के इम्यूनिटी लेवल में सुधार करना.
पिछले दो महीनों में केरल सरकार, आम लोगों के बीच इम्यूनिटी लेवल बढ़ाने के लिए, आयुर्वेद को बढ़ावा दे रही है. राज्य ने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को अपनी प्रारंभिक पहचान प्रणाली में शामिल किया है, और कोरोनावायरस से निपटने के लिए, स्टेट आयुर्वेद कोविड-19 रेस्पॉन्स सेल (एसएसीआरसी) का भी गठन किया है, जो आयुर्वेदिक नुस्ख़ों और दवाओं पर काम करता है.
सभी उपाय उस आयुर्वेद एक्शन प्लान के मुताबिक़ हैं, जो सरकार ने 11 अप्रैल को जारी किया था, और जिसका मुख्य बिंदु ये था कि उसमें, जनसंख्या के सभी हिस्सों के लिए, आयुर्वेद प्रथा की सिफारिश की गई थी. उनमें से में कुछ सिफारिशें थीं- हर रोज़ 20 मिनट के लिए योगा, और खान-पान में बदलाव. सरकार ने दस एक्सपर्ट ग्रुप्स भी बनाए हैं, जो अपनी सिफारिशें देंगे, आयुर्वेद से जुड़े मिथकों के तोड़ेंगे, और सुनिश्चित करेंगे कि सिर्फ सही जानकारी ही बाहर जाए, और साथ ही सम्भावित इलाज पर ही काम करेंगे.
लेकिन स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने पिछले हफ्ते, डिजिटल ‘ऑफ द कफ’ आयोजन में दिप्रिंट के प्रधान संपादक, शेखर गुप्ता को बताया कि आयुर्वेद को, इलाज के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.
शैलजा ने बहुत साफ शब्दों में कहा,’ये (कार्यक्रम) आयुर्वेद और आधुनिक मेडिसिन के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने को बढ़ावा देता है. लेकिन रोग की पहचान, उसकी दवाएं और इलाज, वैज्ञानिक तरीक़े से आधुनिक मेडिसिन से ही किया जाएगा.’
उन्होंने आगे कहा,’आयुर्वेद का ताल्लुक़ जीने के तरीक़े और देखभाल से रहेगा.’
अपने यहां कोविड मामलों की संख्या कम रखने के लिए, केरल ने अभी तक सख़्त कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और स्मार्ट टेस्टिंग, दोनों का इस्तेमाल किया है. जून 14 तक राज्य में कुल मामले 1,342 और मौतें 19 थीं.
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आयुर्वेद इम्यूनिटी कार्यक्रम
सरकार के आयुर्वेद एक्शन प्लान का मोटो है ‘करुथालोड़े केरलम, करुथेकन आयुर्वेदम. अनुवाद करने पर, इसका अर्थ है ‘आयुर्वेद केरल को बचा सकता है.’
प्लान के हिस्से के रूप में राज्य ने आयुर्वेद की चार चीज़ों को लागू किया है- स्वास्थ्यम, सुखायुष्यम, पुनारजनी, और निरमया.
स्वास्थ्यम का अभिप्राय है कि बीमारी के ख़तरे को देखते हुए, 60 वर्ष से कम आबादी के सभी वर्गों में, कोविड-19 के खिलाफ निजी बचाव को मज़बूती देना. सुखायुष्यम का लक्ष्य 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का बचाव करना है. पुनारजनी का मक़सद ये सुनिश्चित करना है, कि स्वास्थ्य लाभ कर रहे कोविड-19 के मरीज़ जल्द ठीक हों.
सोशल मीडिया पेज निर्मया पर राज्य सरकार, एक्सरसाइज़ मॉड्यूल्स के साथ साथ दूसरी सूचनात्मक सामग्री, और अभी तक किए गए कार्यों के बारे में मीडिया रिपोर्ट्स अपलोड करती रही है. दिप्रिंट के हाथ लगी सरकार की आंतरिक मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया है.’ज़्यादातर पोस्ट्स को अच्छी संख्या में दर्शक मिल रहे हैं, और कई मौकों पर ये सामान्य स्तर के पार हो गए हैं.’
राज्य ने इंडियन सिस्टम्स ऑफ मेडिसिन विभाग, और नेशनल आयुष मिशन के अंतर्गत, सभी आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों में अयूर रक्षा क्लीनिक्स भी बनाए हैं. ये क्लीनिक अब कोविड-19 मॉनीटरिंग सिस्टम का हिस्सा हैं.
सरकार ने आयुर्वेद चिकित्सकों और छात्रों को भी, आशा वर्कर्स और वॉलंटियर्स के साथ मिला लिया है, ताकि वो ‘किसी व्यक्ति में कोविड-19 के संदिग्ध लक्षणों का पता लगाकर, उसकी सूचना तुरंत सरकार को दे सकें.’
इन प्रयासों का फल सामने आ रहा है.
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटर-डिसिप्लिनरी साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी (एनआईआईएसटी) केरल के साथ मिलकर, कोविड-19 के प्रबंधन के लिए दो प्राकृतिक मूल्य वर्धित उत्पाद विकसित किए हैं.
राज्य सरकार की आयुर्वेद कार्यक्रम कार्यान्वयन रिपोर्ट में लिखा गया है, “उनमें से एक उत्पाद है भाप लेने के लिए दवा की बूंदें, और दूसरा है अल्कोहल पर आधारित सैनिटाइज़िंग जेल. सीएसआईआर-एनआईआईएसटी ने आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से तैयार, इन मूल्य वर्धित उत्पादों की टेक्नोलॉजी को, सरकारी आयुर्वेदिक कम्पनी ‘औषधि’ के साथ साझा करने पर सहमति दे दी है.”
टेली-परामर्श और विशिष्ट कोविड-19 देखभाल केंद्र
लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी के लिए, राज्य सरकार ने आयुर्वेद संस्थानों का भी रुख़ किया था.
वीपीएसवी आयुर्वेद कॉलेज कोटक्कल, सरकार के आयुर्वेद रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर मेंटल हेल्थ, और आयुर्वेद मेडिकल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के डॉक्टर्स, टेली-परामर्श पहल ‘कूड़े’ चलाते हैं. ये सेवा उन लोगों का मानसिक तनाव कम करने के लिए शुरू हुई थी, जो क्वारंटीन में थे.
राज्य की कार्यान्वयन रिपोर्ट में लिखा है, ‘एक अनुमान के मुताबिक़, मालप्पुरम और कोझिकोड में चलाए गए इस कार्यक्रम से, 6,000 से अधिक लोगों ने फायदा उठाया है. दूसरे कई जिलों में भी डीआईएसएम ऐसे ही कार्यक्रम चला रहा है.’
राज्य सरकार ने पूरे प्रदेश के आयुर्वेद कॉलेजों और इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन संस्थानों में भी, टेली-परामर्श सुविधाओं की पहल की है. दस्तावेज़ के अनुसार, ‘मरीज़ों ने इस पहल की व्यापक सराहना की है.’
सरकार ने प्रकोप के शुरूआती दिनों में ही, तिरुपुनितुरा के सरकारी आयुर्वेद कॉलेज अस्पताल को एक “कोरोना देखभाल केंद्र” बना दिया था. इसी तरह पय्यानूर के सरकारी आयुर्वेद अस्पताल, और तलीपरम्बा के तलुक आयुर्वेद अस्पताल को भी, ऐसे ही केंद्रों में तब्दील कर दिया गया है.
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आयुर्वेद के ‘क्या करें, क्या नहीं’
स्नैक्स से बचने से लेकर, ड्राई फ्रूट्स, घर के बने चिप्स, और उबले हुए केले खाने तक, केरल सरकार ने इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जारी, अपनी एडवाइज़री में एक पूरी लिस्ट डाली है.
सरकार ने कोविड-19 की रोकथाम, और अच्छा हो जाने पर देखभाल के लिए, आवश्यक आयुर्वेदिक दवाओं की एक सूची भी बनाई है. लेकिन सूची जारी करते हुए, उसने आम लोगों और अधिकारियों को चेतावनी भी दी, कि किसी भी हालत में इन दवाओं या उपचारों का इस्तेमाल, कोविड-19 के इलाज के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
आवश्यक दवाओं की लिस्ट (ईडीएल) के सरकारी दस्तावेज़ में, जीवन शैली के आम निर्देशों में सबसे ऊपर है कि, ‘भोजन तभी कीजिए जब आप भूखे हों.’ इसमें लोगों को दिन में कम से कम एक बार, चावल का दलिया खाने की सलाह दी गई है, और उनसे नॉन-वैजिटेरियन खाने से ‘बचने या कम करने’ को भी कहा गया है.
इसमें ये भी कहा गया है कि,’करी, पेस्ट्री, स्नैक्स, टिफिन, और सूप्स में जहां तक हो सके, हरा चना (चेरूपायर) ख़ूब इस्तेमाल करना चाहिए. काले चले का प्रयोग कम से कम करें.’
डॉक्युमेंट में ये भी सुझाया गया है कि जड़ी-बूटियों के साथ कुछ विशेष पेय पकाए जाएं. मिसाल के तौर पर, पानी में सूखा अदरक, धनिए के बीज, तुलसी के पत्ते, मुथंगा, पनीकूरका काइला, अजवाइन के बीज, और हल्दी डालकर उबालना चाहिए.
इसमें कहा गया है कि, ‘इनकी मात्रा उतनी निश्चित रहने की ज़रूरत नहीं है. इसे एक स्वादिष्ट हर्बल पेय जल बना लीजिए, जिसे ‘चिक्कु वेलम’ कहते हैं. परिवार के सभी सदस्य इससे अपनी प्यास बुझा सकते हैं.
इसमें हाज़्मा बढ़ाने वाले औषधीय पेय, ‘चुक्कू काप्पी’ को भी बढ़ावा दिया गया है, जिसमें कॉफी और सूखा अदरक होता है.
इसमें कहा गया है कि,’जो लोग पतले दूध या सामान्य दूध से वाक़िफ हैं, वो उबालते समय उसमें सूखे अदरक का टुकड़ा (चुक्कू), और एक चुटकी हल्दी डालकर ट्राई कर सकते हैं.’ कहा गया है कि,’इससे सांस लेने की परेशानी में मदद मिलती है. इस मामले में बकरी का दूध, गाय के दूध से बेहतर होता है.’
आयुर्वेद का क़दम
राज्य सरकार के आयुर्वेद के फैसले को, चीन में पारंपरिक दवाओं के इस्तेमाल से हौसला मिला है.
‘कोविड-19 की रोकथाम, कमी और स्वास्थ्यलाभ के लिए, आयुर्वेद के अमल की रणनीतियां’ शीर्षक से, एक और सरकारी दस्तावेज़ में कहा गया है कि,“कोविड-19 के कम्यूनिटी ट्रांसमीशन की चिंताओं के बीच, अब समय है कि सभी उपलब्ध मानवीय संसाधनों, इनफ्रास्ट्रक्चर, और चिकित्सा विशेषज्ञता को जुटाकर, बीमारी को फैलने से रोका जाए.”
डॉक्युमेंट में आगे कहा गया है, कि चीन में कोविड-19 के क्लीनिकल प्रबंधन के प्रोटोकोल में, पारंपरिक चीनी दवाओं को शामिल कर किया गया था. ये बहुत ही उपयुक्त है कि केरल, कोविड-19 के लिए पारंपरिक चिकित्सा में, दुनिया का पहला रोकथाम कार्यक्रम शुरू करे, और साथ ही बीमारी की रोकथाम, और इसे कम करने के लिए, रणनीति भी तैयार करे.”
डॉक्युमेंट के अनुसार, अतीत में सार्स और एचवनएनवन जैसी महामारियों से लड़ने के लिए भी, पारंपरिक चीनी चिकित्सा का इस्तेमाल किया गया है.
इस संदर्भ में बहुत से अध्य्यनों से, हर्बल पाउडर्स, काढ़े, धूम्रीकरण आदि के रूप में, पारंपरिक चीनी चिकित्सा के असर का पता चलता है, जिसने इन महामारियों की रोकथाम और उन्हें कम करने में, संख्या के हिसाब से महत्वपूर्ण, और क्लीनिकल रूप से मुमकिन नतीजे दिखाए हैं.
डॉक्युमेंट में आगे ये भी कहा गया है, कि ऐसे चीनी उत्पादों ने कोविड-19 मरीज़ों के, अस्पताल में रुकने के औसत समय को, 22 प्रतिशत कम कर दिया था. डॉक्युमेंट में लिखा है, ‘शरीर के बढ़े हुए तापमान से रिकवरी और दूसरे क्लीनिकल लक्षणों के ग़ायब होने में भी, क्रमश: 1.7 और 2.2 दिन की कमी देखी गई. मध्यम से गंभीर मामलों में भी, 27.4 प्रतिशत की महत्वपूर्ण कमी दर्ज हुई, और लैबोरेट्रीज़ से पता चले कोविड-19 के मामलों में भी, ठीक होने की दर 90 प्रतिशत थी.’
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