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Saturday, 2 November, 2024
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छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौत में एक्टिविस्टों को पोचिंग का शक, जांच के लिए लंबे समय पर उठाये सवाल

पिछले दिनों लगातार 3 हाथियों के पाए जाने के बाद, एक्टिविस्टों ने आरोप लगाया कि यह अवैध शिकार या जानबूझकर हत्या का मामला हो सकता है.

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रायपुर : छत्तीसगढ़ में तीन हाथियों की मौत के बाद राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी को दिए गए एक माह के समय पर वन्यजीव एक्टिविस्ट्स ने संदेह जताया है. राज्य के वन्यजीव एक्टिविस्ट्स का कहना है कि तीनों मादा हाथियों की मौत स्वाभाविक नहीं हो सकती. यह पोचिंग या फिर स्थानीय ग्रामीणों द्वारा जानबूझकर जहर दिए जाने का मामला है.

हालांकि, राज्य वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार द्वारा बनाई गयी चार सदस्यीय जांच समिति के लिए दिया समय उचित है. लेकिन वन्य जीव एक्टिविस्टस मानते हैं की यदि जांच को सही अंजाम तक लेकर जाना है तो इसकी समय सीमा कम करनी होगी, अन्यथा कई सबूत मिट जाएंगे.

पिछले दिनों लगातार 3 हाथियों के पाए जाने के बाद, एक्टिविस्टों ने आरोप लगाया कि यह अवैध शिकार या जानबूझकर हत्या का मामला हो सकता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए हाथियों के संरक्षण के लिए कई सालों से काम कर रहे मंसूर खान ने बताया कि, ‘ऐसे में नहीं लगता कि जांच का कोई ठोस परिणाम निकलेगा, क्योंकि इन तीन मादा हाथियों की मौते में यदि पोचिंग केस भी होगा तो एक महीने में सारे सबूत मानसून और समय के साथ मिट सकते हैं. सरकार को जांच समिति की समय सीमा निश्चित तौर पर कम करना चाहिए. यह तो तय है कि हाथियों की मौत मानव वन्यजीव संघर्ष का नतीजा है. मादा हाथियों को जहर देकर मारा गया है.’

मंसूर खान का कहना है कि ‘मारे गए तीनों मादा हाथियों के शवों के बीच की दूरियां बहुत अधिक नहीं थी. यह कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता. इसके अलावा तीनों का शव जंगल के अंदर मिला, जिसके करीब 2-3 किलोमीटर के दायरे में कोई बसाहट नहीं थी, जिससे कई शंकाओं को बल मिलता है.’


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ऐसा ही कुछ कहते हैं नेचर क्लब के अनुराग शुक्ला जिनके अनुसार राज्य सरकार द्वारा कराई जा रही जांच एक खानापूर्ति है. शुक्ला कहतें हैं, ‘हथियों की मौत जहरीले पदार्थ के सेवन से हुई है. उनको जहर दिया गया है. लेकिन सरकार के जांच में ऐसे कुछ आएगा इसमें शंका है क्योंकि ऐसी जांचों का नतीजा सरकार के इच्छानुसार होता है. जांच समिति की रिपोर्ट तैयार करने में एक माह के समय की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इतने समय में साक्ष्यों के मिट जाने की पूरी गुंजाइश है. हालांकि हम भी अपने स्तर पर इसकी जांच कर रहें हैं.’

बता दें कि छ्त्तीसगढ़ के बलरामपुर और सूरजपुर जिलों के जंगलों में 9, 10 और 11 जून को तीन मादा हाथियों के मौत की खबर से प्रदेश सरकार में हड़कंप मच गया था. पहला शव 20 महीने की गर्भवती हथिनी का 9 जून को सूरजपुर जिले के प्रतापपुर वनक्षेत्र में पाया गया था. इसे ठीक 24 घण्टे बाद दूसरी हथिनी का शव भी थोड़ी ही दूरी पर पाया गया था. इस शव के पास कुछ कीटनाधक के पैकेट भी पाए गए थे, जिन्हें अधिकारियों ने बरामद कर लिया है. तीसरी हथिनी का शव 11 जून को बलरामपुर जिले के राजपुर वनमंडल के अंदर पाया गया जो प्रतापपुर वनमंडल से लगता है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार तीसरी हथिनी की मौत संभवतः उसके मौत से 6 दिन पहले हुई थी, जिसकी जानकारी स्थानीय अधिकारियों द्वारा उच्च अधिकारियों को नहीं दी गई.

समिति को जांच का समय कम देने वाली बात पर राज्य वन्यजीव प्रतिपालक अरुण कुमार पांडेय कहतें हैं, ‘समिति को कई बिंदुओं पर काम करना है. इसके लिए समय लगेगा. यदि कोई साक्ष्य होगा तो वह जरूर जांच में आएगा, जहां तक जवाबदेही का सवाल है तो हथियों की मौत के संबंध में जिन अधिकारियों द्वारा कोताही बरती गई उनके खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है और आगे भी जांच जारी रहेगी.’

ज्ञात हो कि प्रदेश के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने शुक्रवार को एक वक्तव्य जारी कर बताया कि प्रदेश हाथियों की मृत्यु के मामले की जांच के लिए सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक केसी बेवर्ता की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है, जो एक माह में अपनी रिपोर्ट दे देगी. कमेटी हाथियों की मृत्यु के कारण, परिस्थितियां, किसी स्तर पर कोई चूक, उत्तरदायित्व का निर्धारण जिसे बिन्दुओं पर जांच करेगी.


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कमेटी के गठन के अगले दिन देर शाम शानिवर को राज्य सरकार ने राजपुर वनमंडल के डीएफओ प्रणय मिश्रा को कारण बताओ नोटिस देकर तबादला कर दिया और तीन अन्य अधिकारियों के साथ एक फारेस्ट गार्ड को निलंबित कर दिया है. निलंबन आदेश राजपुर के एसडीओ के एस खुटिया, रेंजर अनिल सिंह, डिप्टी रेंजर राजेन्द्र प्रसाद तिवारी और फारेस्ट गार्ड भूपेंद्र सिंह को दिया गया है.

मादा हथियों की मौत, पोचिंग भी एक एंगल

वन्यजीव कार्यकर्ताओं का कहना है कि ज्यादा समय दिए जाने से यदि पोचिंग की संभावना रही होगी, तो उसके साक्ष्य मिट जाएंगे. खान कहतें है, यह मामला पोचिंग का भी हो सकता है और गलती से जहर नर के बजाय मादा हाथी ने खा लिया हो. इस क्षेत्र में पोचिंग की घटना कुछ महीने पहले भी हो चुकी है, जब एक मादा हाथी मृत पाया गया था और जांच में उसके दोनों टस्क निकले हुए पाये गए थे, 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया और एक स्थानीय ग्रामीण के घर से दोनों हाथी दांत बरामद किये गए थे, हो सकता है ऐसा ही कुछ प्रयास इस बार भी रहा हो. लेकिन इस बार गलती से जहर मादा हाथी ने खा लिया हो.

हो रही है घर-घर जांच

वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने हमें बताया कि संभावित पॉइज़निंग को देखते हुए राजपुर और प्रतापपुर की वनमंडल की जांच दल लगातार ग्रामीणों के घरों में दबिश दे रहीं हैं. इस संबंध में पाण्डेय ने बताया कि ‘दो हथियों के शवों में केमिकल पाये गए हैं जिससे पॉइज़निंग की आशंका है. इसलिए हमारे जांच दल और अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों के घर जाकर उनके द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले कीटनाशकों की जानकारी ली जा रही है. हाथियों का यह दल अक्सर गांवों की मुखर रहते हैं, हो सकता है इन हाथियों ने ग्रामीणों के घर में कोई कीटनाशक खाया हो.’

वन्यजीव एक्टिविस्ट्स जाएंगे हाईकोर्ट

राज्य के वन्य जीव एक्टिविस्ट्स जल्द ही प्रदेश में हो रही हाथियों की मौत के संबंध में हाईकोर्ट जाने की तैयारी में हैं. अनुराग शुक्ला ने दावा किया कि ‘हमारी जानकारी के मुताबिक राज्य बनने के बाद पिछले 20 सालों में छ्त्तीसगढ़ में 50 से भी ज्यादा हथियों की मौत हो चुकी है. लेकिन सरकार द्वारा इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. हम इस मुद्दे को लेकर जल्द हाइकोर्ट में जाएंगे.’

शुक्ला का कहना है कि हाईकोर्ट के सामने वे प्रदेश में खत्म होते जा रहे हथियों के कॉरिडोर्स को भी बचाने का उपाय सुझाएंगे और सरकार पर इसे लागू करने के लिए दबाव बनाया जाएगा. शुक्ला कहते हैं, ‘इस मुद्दे पर ज्यादार वन्यजीव एक्टिविस्ट्स एकजुट हैं और हम जल्द एक साझा याचिका कोर्ट में दायर करेंगे.’

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