नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के उपाध्यक्ष भूषण पटवर्धन सहित शोधकर्ताओं के एक समूह ने सुझाव दिया है कि भारत में उच्च शिक्षा में नामांकन की गणना का तरीका बदल रहा है.
वर्तमान में, भारत के उच्च शिक्षा नामांकन की गणना सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) के संदर्भ में की जाती है, जो 18-23 आयु वर्ग में जनसंख्या का अनुपात उच्च शिक्षा में नामांकित लोगों की संख्या है. उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) के अनुसार 2017-18 के लिए भारत का जीईआर 27.4 प्रतिशत था.
भारत में 18-23 आयु वर्ग में कुल आबादी में से 27.4 प्रतिशत कॉलेज और विश्वविद्यालय अटेंड करते हैं.
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि जीईआर के बजाय, भारत को पात्रता नामांकन अनुपात (ईईआर) को देखना चाहिए, 18-23 आयु वर्ग में कम से कम 12वीं कक्षा उत्तीर्ण कर चुके हैं और कॉलेज अटटेंट करने वालों छात्रों की संख्या का अनुपात है.
शोध पत्र के अनुसार, यदि भारत ईईआर को मापने वाले मीट्रिक के रूप में उपयोग करता है, तो 2017-18 के लिए उच्च शिक्षा में इसकी नामांकन दर 64.9 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी- इसे विकसित देशों के बराबर लाना होगा.
वर्तमान में, पेपर कहता है, एआईएसएचई-2019 के अनुसार भारत में उच्च शिक्षा क्षेत्र में 993 विश्वविद्यालयों, 39,931 कॉलेजों और 10,725 स्टैंड-अलोन संस्थानों में 3.74 करोड़ छात्र हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार को सुझाव देने वाले पेपर को पंकज मित्तल और अश्वनी खारोला सहित शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा प्रकाशित किया गया है, जो एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) के साथ हैं. इस टीम में अंजलि रेडकर, जो गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, पुणे में पढ़ाती हैं और भूषण पटवर्धन के अलावा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरु की अनीता कुरुप भी हैं.
ईईआर अधिक परिष्कृत उपाय
इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित पेपर के अनुसार, शोधकर्ता सुझाव देते हैं कि भारत के लिए उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और प्रासंगिकता का आकलन करने के लिए केवल जीईआर के बजाय ईईआर सबसे उपयुक्त संकेतक होगा.’
पेपर का तर्क है कि ईईआर अधिक उपयुक्त होगा क्योंकि भारत में प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच खराब है और इसलिए उचित जनसंख्या के विपरीत पूरी आबादी के साथ तुलना करना अनुचित होगा.
इसमें यह भी कहा गया है कि ईईआर भारत में शिक्षा में बदलाव को सुनिश्चित करेगा, जिसमें स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण को अधिक महत्व दिया जाएगा.
पेपर कहता है कि ईईआर ‘एक ही पैमाने पर विकसित और विकासशील देशों की स्थिति के लिए एक परिष्कृत उपाय हो सकता है और इसलिए उच्च शिक्षा में नामांकन के बारे में एक निष्पक्ष तस्वीर को चित्रित कर सकता है.’
जीईआर और ईईआर
2017-18 को संदर्भ वर्ष के रूप में लेते हुए पेपर ने 10 देशों – अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ब्राजील, चीन, इंडोनेशिया, भारत, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान के जीईआर का अध्ययन किया है. यह निष्कर्ष निकालता है कि अमेरिका में 88.2 प्रतिशत की उच्चतम दर, जर्मनी (70.3 प्रतिशत), फ्रांस (65.6 प्रतिशत), ब्रिटेन (60.6 प्रतिशत), ब्राजील (51.3 प्रतिशत), चीन (49.1 प्रतिशत) इंडोनेशिया (36.4 प्रतिशत) और भारत (2017-18 में 27.4 प्रतिशत, 2018-19 में 26.3 प्रतिशत) का स्थान है. भारत के नीचे के दो राष्ट्र, दक्षिण अफ्रीका (22.4 प्रतिशत) और पाकिस्तान (9.4 प्रतिशत) हैं.
भारत के लिए उच्च शिक्षा में जीईआर विकसित देशों की तुलना में कम है, क्योंकि उस आयु वर्ग में छात्रों की एक बड़ी आबादी कॉलेजों में दाखिला लेने के योग्य नहीं है, क्योंकि उन्होंने 12 वीं कक्षा की उच्च माध्यमिक शिक्षा सफलतापूर्वक पूरी नहीं की है. इसलिए, जीईआर को बढ़ाने के लिए उच्च शिक्षा के विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
हम इस बात की परिकल्पना करते हैं कि जीईआर भारत जैसे विकासशील देशों के लिए उपयुक्त उपाय या संकेतक नहीं हो सकता है, क्योंकि 18-23 आयु वर्ग के छात्रों की संख्या और उच्च शिक्षा में प्रवेश करने योग्य छात्रों के बीच एक बड़ा अंतर है.
पेपर के अनुसार, भारत का 64.9 प्रतिशत ईईआर यूके (63.1 प्रतिशत), चीन (72.9 प्रतिशत) और फ्रांस (75.5 प्रतिशत) के बराबर होगा. अमेरिका में अभी भी सबसे अधिक 93.5 प्रतिशत ईईआर होगा और जर्मनी में 91.2 प्रतिशत होगा.
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