लखनऊ में, गोमती नदी के किनारे सिर्फ एक प्रतिमा नहीं बल्कि बेहद लुभावनी सेटिंग में, उनका एक पूरा संग्रह मौजूद है. ये प्रतिमाएं, जिनमें हर एक का एक नाम है, स्वतंत्रता सेनानियों, समाज सुधारकों और राजनीतिज्ञों की हैं. इनमें से कुछ परिचित हैं, कुछ कम परिचित हैं. लेकिन ये सब दलित या आदिवासी हैं. इसका प्रभाव चौंकाने वाला है क्योंकि ये और नोएडा में ऐसी ही एक दूसरी, पूरे भारत में अपनी तरह की अनूठी जगह हैं, जो आधुनिक राष्ट्र के निर्माण में, दलितों और आदिवासियों के योगदान का विशेष उत्सव हैं. ये आंबेडकर मेमोरियल पार्क है, जिसे औपचारिक रूप से भीमराव आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन प्रतीक स्थल कहा जाता है.
सौ एकड़ से अधिक में फैला ये परिसर, भारत के सबसे अधिक आबादी वाले सूबे, उत्तर प्रदेश की राजधानी में शहर के बीचो बीच स्थित है. मार्बल और बलुआ पत्थर से बनाए गए इस पार्क में, जो दिल्ली के साउथ ब्लॉक या लाल किले जैसे, सत्ता के प्रतीकों की याद दिलाता है, काफी खुली जगह है, जिसके बीच में कांसे के फव्वारे, अशोक स्तंभ, कलश, फ्रीज, और स्तूप जैसे भवन मौजूद हैं. 124 विशाल हाथियों का एक गलियारा, जो मिस्र के कर्नाक और लक्सोर के, रास्ते की भेड़ के सर वाली नरसिंह मूर्तियों की याद ताज़ा कर देता है, और एक विशाल प्लेन तक ले जाता है, जिसके दोनों ओर उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्र और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की मुखिया मायावती, और उनके गुरू कांशीराम की दो ऊंची प्रतिमाएं हैं, जिनके हाथों में गेहूं की बालियां हैं.
दुनिया के बहुत से शहरों में जातीय समानता के लिए हो रहे विरोध प्रदर्शनों के दौरान, अतीत की हस्तियों की प्रतिमाएं गिराई जा रही हैं. युनाइटेड किंग्डम के ब्रिस्टल में, भीड़ ने 17वीं सदी के एक व्यापारी एडवर्ड कोल्सटन की प्रतिमा गिरा दी, जिसने गुलामों के व्यापार से बनाई दौलत के बलबूते, अपनी एक परोपकारक की छवि बना ली थी. अमेरिका में संघीय नेताओं और खोजी क्रिस्टोफर कोलम्बस की बहुत सी प्रतिमाएं भी, या तो गिरा दी गईं या उनकी शक्ल बिगाड़ दी गईं. बेल्जियम में बहुत सी जगह लोकल अथॉरिटीज़ ने, किंग लियोपोल्ड द्वितीय की प्रतिमाओं को हटाने के लिए वोट किया है, जो कॉन्गो में बेल्जियम के बहुत ही क्रूर और शोषक उपनिवेष के संस्थापक थे.
इन मूर्तिभंजक संकेतों को देखकर हम प्रतिमाओं और स्मारकों की सियासी अहमियत के बारे में ज़्यादा व्यापक रूप से सोचते हैं, जिसमें भारत भी शामिल है. आंबेडकर मेमोरियल पार्क की प्रतिमाएं सवाल खड़े करती हैं कि क्या वो सार्वजनिक स्थानों पर रहनी चाहिए, अगर हां तो क्यों और उनकी मौजूदगी तथा दूसरों की गैर-मौजूदगी की सियासत क्या है.
अंग्रेज़ों को निगाहों से दूर करना
अधिकतर हुकूमतें अपनी मौजूदगी और शक्ति के फ़िज़िकल निशान छोड़ने के लिए, स्मारक बनवाकर लंबे समय तक जीवित रहना चाहती हैं. वो या तो अपने महान अतीत से निरंतरता दिखाने के लिए या फिर उस अतीत की मिसाली हस्तियों को सम्मानित करने के लिए, प्रतिमाएं स्थापित करती हैं और इन्हें बनाने वालों और जिनकी याद मनाना चाहते हैं, उनके बीच एक रिश्ते पर रोशनी डालते हैं.
भारत में, अंग्रेज़ों ने इस इलाके में जगह-जगह एतिहासिक हस्तियों की प्रतिमाएं भर दीं, जिनका मकसद न सिर्फ ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति उनके योगदान को याद रखना था, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए, उस उपनिवेश की एक स्पष्ट विरासत भी छोड़ना था. आज़ादी के बाद, इनमें से बहुत सी प्रतिमाएं या तो हटा दी गईं या उन्हें कम अहमियत की जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया. दिल्ली में इंडिया गेट पर एडवर्ड लटयंस द्वारा लगाई गई, बेतुकी हद तक बड़ी जॉर्ज पंचम की प्रतिमा को हटाकर कोरोनेशन पार्क में लगा दिया जहां बहुत कम लोग जाते हैं और जहां ज़्यादा गुमनाम फिरंगी हस्तियां दफ्न हैं.
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सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी ने बहुत सी जगहों पर, मार्च करते हुए गांधी की प्रतिमाएं बनाकर, अपनी मौजूदगी दर्ज़ करानी चाही. दशकों बाद, जब कांग्रेस का दबदबा ख़त्म हुए एक ज़माना हो गया है, एमके गांधी की सर्वव्यापी मौजूदगी, विरोधी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिवाद का केंद्र बन गई है, जो उन्हें राष्ट्र के नहीं, बल्कि कांग्रेस के प्रतीक के रूप में देखते हैं. क्या दूसरी राष्ट्रीय हस्तियों के साथ भी ऐसा ही हो सकता है?
आंबेडकर की प्रतिमा और उनके संघर्षों को खड़ा करना
लखनऊ में, मेमोरियल पार्क के केंद्र में है 112 फीट ऊंचा एक स्तूप, जो आंंबेडकर को समर्पित है. जैसे ही आप इसके ठंडे और अंधेरे अंदरूनी हिस्से में दाख़िल होते हैं, गद्दी जैसी एक कुर्सी पर विराजमान डॉ आंबेडकर की विशाल कांस्य प्रतिमा सामने नज़र आती है. वॉशिंग्टन में इब्राहिम लिंकन के मशहूर स्टैच्यू के हिसाब से बनी ये प्रतिमा, अपनी इस जगह में छाई हुई है. प्रतिमा पर लिखा संदेश बहुत सादगी से कहता है: ‘जीवन के लिए मेरा संघर्ष ही मेरा संदेश है.’
दोनों ओर, किसी कथीड्रल के क्रॉस के स्टेशन की तरह, आंबेडकर के जीवन के अलग-अलग लम्हों को कांस्य की शक्ल में एक क्रम से दिखाया गया है. उनका प्रमुख चित्रण संविधान निर्माता, और बाद में भाई-चारे के धर्म के रूप में, बौध धर्म अपनाने का है.
आंबेडकर का साहसी जीवन वर्तमान और इस विशाल एंटरप्राइज़ की सरपरस्त मायावती के साथ जोड़ा गया है, कुछ इस तरह कि दोनों एक दूसरे की ओर मुंह किए हैं. मायावती ने उत्तर प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री बनने की अपनी सफलता को, आंबेडकर के सामाजिक न्याय के संघर्ष की, एक बिल्कुल सही परिणति के रूप में देखा. इस विशाल मेमोरियल परिसर के ज़रिए मायावती ने, इसी साझा संघर्ष और सफलता की याद बनाए रखने की कोशिश की.
लखनऊ के बीचो-बीच, और एक पॉश रिहायशी कॉलोनी गोमती नगर के पास, जिसमें प्रमुख रूप से ऊंची जाति के कारोबारी, नौकरशाह, सियासी और न्यायिक एलीट्स रहते हैं, आंबेडकर मेमोरियल पार्क का होना एक सोचा समझा काम है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र में दलित मौजूदगी को, बहुत दिलेरी के साथ जताया गया है.
एतिहासिक अन्याय को दुरुस्त करना
ऐसे पार्क और प्रतिमाएं बनाने के पीछे बीएसपी की ये दलील थी कि ये भारत के इतिहास और सार्वजनिक कला से, दलितों को अन्यायपूर्ण तरीके से बाहर रखने और उन्हें मिटाने की, भरपाई का प्रयास है. पिछली हुकूमतों द्वारा पत्थर में तराशे गए इतिहास में, भारत की आबादी के इस बड़े हिस्से को, हमेशा उसकी जगह और पहचान से वंचित रखा गया. इस पार्क-स्मारक का विशाल पैमाना, दलितों की संख्या और उनके साथ हुए अन्याय के पैमाने को दर्शाने के लिए रखा गया है.
इसे बनाने के लिए मायावती ने, उस समय के दलदली क्षेत्र को कई फीट ऊपर उठाने का आदेश दिया, 22 फीट गहरी एक नहर खुदवाई और बाढ़ से बचाने के लिए नदी के किनारे बांध बनवाकर इसका रास्ता बदल दिया.
ये पार्क इसी तरह के उन कई परिसरों में से एक है, जो बतौर मुख्यमंत्री, मायावती ने अपने चार कार्यकालों में बनवाए. मान्यवर श्री कांशीराम जी स्मारक स्थल, 86 एकड़ में फैला मेमोरियल पार्क है, जिसमें किसी रोमन पैंथियन या अमेरिकी कांग्रेस जैसा एक 177 फुट ऊंचा ढांचा, 52 फुट ऊंचे दो दर्जन कांसे के फव्वारे, और मार्बल के विशाल हाथी मौजूद हैं. अकेले लखनऊ में इसी तरह के 6 और पार्क हैं, और नोएडा में, एक और मेमोरियल राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल और ग्रीन गार्डन मौजूद है.
बीएसपी इस बात पर ज़ोर देती है कि इन पार्कों का निर्माण, न्याय को सुधारने का काम था, लेकिन साफ ज़ाहिर है कि ये वर्तमान और भविष्य में, एक राजनीतिक मकसद भी पूरा करते हैं. आलोचकों ने लोगों के पैसे से किए गए भारी-भरकम खर्च की कड़ी निंदा की (और कानूनी चुनौती भी दी), जो उनके विचार में दलितों का जीवन सुधारने में, बेहतर ढंग से खर्च हो सकता था. लेकिन मायावती और उनकी पार्टी जवाब देते हैं कि भारत के परिदृश्य में दलित नायकों के उकेरे जाने से, दलितों का स्वाभिमान बढ़ता है.
आंबेडकर पर दावा
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आंबेडकर की अपेक्षाकृत गैर-विवादास्पद याद मनाने का सीधा संबंध, खुद मायावती के कहीं अधिक विवादास्पद गुणगान से है, क्योंकि उनकी जोड़ी जनचेतना में मायावती की मौजूदगी की छाप छोड़ती है. अपने हर दोहराव में वो हर बार ऐसी ही प्रतीत होती हैं, जैसी वो अपने पूरे राजनीतिक करियर के दौरान रही हैं, वही छोटे बाल और हैंडबैग लिए हुए, जो आंबेडकर के सूट और टाई की तरह, आधुनिकता के प्रतीक हैं. गेहूं की बालें जो हम उन्हें और कांशीराम को लिए देखते हैं, उनके ज़मीन से जुड़े होने को इंगित करती हैं और उन्हें मज़बूती के साथ भारत की मिट्टी में स्थापित करती हैं, भले ही इनकी प्रतिमाएं आसमान छूती नज़र आती हों. साथ ही पत्थर के हाथियों का नायकों को गार्ड ऑफ ऑनर के तौर पर बार-बार इस्तेमाल, उन्हें शाही बना देता है और बीएसपी के चुनाव चिन्ह नीले हाथी की याद दिलाता रहता है.
2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान, भारत के चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि हर हाथी को पीली तिरपाल में लपेट दिया जाए और मायावती की हर प्रतिमा को प्लाईवुड के डिब्बों में छिपा दिया जाए ताकि चुनाव के दौरान सबके लिए मैदान बराबर हो जाए.
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लेकिन इन मेमोरियल पार्कों के पीछे एक मंशा ये भी है कि एक ऐसी विरासत पीछे छोड़ी जाए, जो चुनाव कहानियों से कहीं अधिक लंबी हो. आंबेडकर, कांशीराम और अन्य के साथ-साथ अपनी प्रतिमाएं लगवाकर, मायावती ने खुद को दलितों के देव समूह में शामिल कर लिया, जिसके शीर्ष में बुद्ध हैं, जिनके धर्म को दलितों ने अपना लिया है. आलोचकों की पीढ़ियां निचले वर्ग के ऐसे महंगे अलंकरण पर बहस कर सकती हैं लेकिन भावी दर्शकों को लग सकता है, उनके साथ एतिहासिक न्याय हो रहा है.
ज़रूरी नहीं कि अतीत के नायकों की तमाम कांस्य प्रतिमाएं, अन्याय का ही प्रतीक हों. कभी-कभी गुलामों के भी स्मारक होते हैं. आंबेडकर मेमोरियल के मामले में, उन्हें और अधिक सराहना मिल सकती थी, अगर वो इतने ज़ाहिरी तौर पर जीवितों के साथ न जोड़े गए होते.
(मुकुलिका बनर्जी लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में, एंथ्रोपोलॉजी की एसोशिएट प्रोफेसर और साउथ एशिया सेंटर की निदेशक हैं. गाइल्स वर्नियर्स अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर विज़िटिंग फेलो हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
कभी कभी गुलामों के भी स्मारक होते हैं ,ऐसा क्यों लिखा गया ?
लेखिका द्वारा दिये हुए टिपणीया भारत मे दलित व आदिवासिओ के रहे विकास के प्रति पीड़ा को प्रकट कर रही है ये इतिहास के पन्नो में अपनी खास छाप छोड़े इन सामाजिक सुधारकों के विचारों व इनके जीवन के संघर्षों को न समझ कर इनके मूर्तियों को बड़ा दिखाकर जातिगत मानसिकता का परिचय दे रही हैं ।
भारत मे कई ऐसे लोगों की आज मूर्तियां व संग्रालय है जिनका यदि सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो शायद लेखिका की नजर में उन्हें भी नष्ट कर देना चाहिए , जिनको बनाने के लिए बहुत से सरकारी पैसा लगा जिन्हें आज भी कई पार्टियां नामकरण कर कर वोट बटोरने का कार्य करती है।
मेरा मानना है कि अम्बेडकर जी का संघर्ष समाज के सभी वर्गों के लिए था और आज भारत को उनके विचारों से सीख लेकर संघठन में रह कर श्रेष्ठ भारत के निर्माण मे के लिए भागीदार बनना है।
बिल्कुल सही अनालीसीस किया है आपने. यह विशाल स्मारक दलितों की ही विरासत नही है.यह तो बहूजन चेतना को प्रकट करता है.
यह भारत के 85 ℅मुलनिवासितो की विरासत है.बहूजन स्वाभिमान का परिचायक है डर बाबासाहेब भिमराव अम्बेडकर स्मारक. हमे मायावती जी पर गर्व है.
Bahut acchi post
Namo buddhay Jay Bhim
वर्तमान सरकार ने 3000करोड खर्च कर क्यूँ राजनैतिक चलन को सर पर ढोया.
क्यूँ संसद में मनु की प्रतिमा लगी है.
क्यूँ अटल बिहारी बाजपेई जी की प्रतिमा लगीं हैं.
क्यूँ शहरों और नगरों के नाम परिवर्तित किये जा रहे है. क्या इनमें राजनैतिक छाप छोड़ने वाली दूरदर्शिता नहीं. इसमें जनता का पैसा खर्च नहीं होता है??
लेकिन लेखक की तारीफ़ की दाद देनी पड़ेगी. ये उसे नहीं दिखता. कैटरैक्ट का रोगी….
Right sir ji this is only shedule cast .
If any one change the character or features then general cast people are want to draw them.
Jai bhim namo budha .
जादा ज्ञान मत दे.. इस पोस्ट को लिखने वाली भी ब्राह्मण है उसके चरण धोकर पी…
बांकि मनु पहले विधी निर्माता थे और जब तुम अपनी सीट भरने के लिए 40 नंबर भी नहीं ला पाते थे तो अटल जी ने बैकलॉग शुरू किया।
वो भी पंडित ही थे ??
आरक्षण किसे कहते हैं, पढें कृपया
जब अपने स्कूल की क्रिकेट टीम में भी चयनित ना होने वाले सीधा BCCI के अध्यक्ष बनते हैं, इसे कहते हैं “आरक्षण”
जब बिना किसी परीक्षा और इंटरव्यू के सीधा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं रिश्तेदारी के कारण नियुक्त होते हैं, उसे कहते हैं “आरक्षण”
जब तमाम स्कूल और कॉलेज खोलने वाले मैनेजर अपने रिश्तेदारों, बहू बेटों को बिना किसी योग्यता और पात्रता के फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर सरकारी अनुदान पर नियुक्त करा लेते हैं, तो उसे कहते हैं “आरक्षण”
जब तमाम अकादमिक परीक्षाएं पास करने तथा पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद भी सिर्फ जाति के आधार पर घोषित कर दिया जाता है “नॉट फाउंड सूटेबल” (ताकि आगे उस पर अपने वर्ग के हितों के अनुरूप नियुक्ति की जा सके) तो उसे कहते हैं “आरक्षण”
जब बिना चुनाव लड़े मुख्यमंत्री/उपमुख्यमंत्री/मंत्री/अध्यक्ष बना दिया जाए और जिसके नाम पर चुनाव लड़ा उसे धकिया दिया जाए, इस सामंतशाही को कहते हैं! “आरक्षण”
जब लॉक डाउन में भी मुख्यमंत्रियों, पूर्व प्रधानमंत्री मंदिर जाते हैं, या विवाह के पार्टी अटेंड करते हैं जबकि मरीजों/ मजदूरों को सड़क पर मुर्गा बनाकर पीटा जाता है, तो इस विशेषाधिकार को कहते हैं “आरक्षण”
आज तक तीर कमान भी न बनाने का अनुभव रखने वाली कंपनी को सीधा राफेल लड़ाकू विमान बनाने का ठेका दिया जाता है, तो उसे कहते हैं “आरक्षण”
जब एक ही तरह के मुकदमे में यादव को जेल और मिश्रा को बेल मिल जाती है तो यहां पर दिखता है वर्ग और जाति का “आरक्षण”
प्राइमरी स्कूल भी खोलने लायक इंफ्रास्ट्रक्चर न होने के बावजूद कागजी जिओ यूनिवर्सिटी को 10,000 करोड़ रुपए मिलते हैं सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनने के लिए, तो इसे कहते हैं “आरक्षण”
जब राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की भर्ती चुनिंदा जातियों से की जाती है, तो उसे कहते हैं “आरक्षण”
जब अभिषेक बच्चन, तुषार कपूर और आर्यन खान की बेहूदा एक्टिंग देखनी पड़ती है, तो उसे कहते हैं “आरक्षण”
जिसको भारत में आरक्षण कहा जाता है वो सिर्फ प्रतिनिधित्व है, जो तमाम यूरोपीय अमेरिकी अफ्रीकी देशों में भी अपनाया गया है।
✍?
यह धोखा सभी वर्ग के साथ होता है!
सिर्फ जनरल को छोड़कर और देश के साथ भी धोखा ऐ!
मैडम डौली शायद आपको मालूम नहीं है कि मनुस्म्रति का दहन करने वाले बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर जी थे। जिन्होंने उस काले कानून को दफन करने का काम किया। और सब को समान अधिकार देकर विश्व का सर्वोत्तम संविधान देश को समर्पित किया आज न्यायपालिका, कार्यापालिका तथा विधायिका 7पर कब्जा करके अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जाति-जनजाति एवं पिछड़े वर्गों हकों पर डाका डाल रहे हो आपको शर्म आनी चाहिए।
Aap to sirf mata Savitri Bai Phule ko pd lijiye
मनु ने कौन सी विधि बनाई थी, भाई मुझे जानना है। 8445004444 कॉल me, ok bro
वह कोई महान नहीं था, वह ढोंगी, पाखंडी, अंधविश्वासी था ।और उसने उच्च नीच का भेदभाव पूर्ण नाटक आपनी किताब में प्रस्तुत कीया। जिसको डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने अपनी सोच समझ से दलितों के लिए एवम् महिलाओ, मजदूरों को अपना हक संविधान नामक ग्रंथ से मूल अधिकार दिलाते हुए भारत के निर्माण के लिए संविधान बनाया।जिसके कारण समाज के लोगों के हितों रक्षा की जा सके।रही बात उनके स्मारक तो दलितों के दिलों में बने हैं।और आपको दलितों को मिलने वाले हक पर ये तिलमिला हट हो रही हैं , दलितों को हक कोई खेरात में नहीं मिले हैं ।गोबर नाथ मनु की वजह से कानून व्यवस्था थी जिसमे नारी अत्याचार, वर्ण व्यवस्था,के कारण आज तक भारत एक नहीं हो पाया जिसका परिणाम मुगल शासक का आक्रमण,और आप बोल रहे हो चरण को धोकर पी लेना चाहिए। जिसके कारण भारत के मूल निवासियों को भुगतना पड़ रहा है ।और आज नालायक नेपाल भी अपना होकर आंखे दिखा रहा है । आप के लिए जय भीम जय भारत ।
Jay bhim
Jai bheem
Good
Mayavati ji is good leader.
For
Indian
Agar murti ko girana hi hai to gujrat vali Pehle girao.
Bahut achha likha aap ne
Nice article
Keep it going on for next one
Jay bhim
जवाण लोग इन महान हस्तियोंका आदर्श लेना चाहिये
इ स्लीएये इन महहस्तीयोकी मुर्तिया बनाया जाती है
ज य भीम
Chunaav pracharo main kya janata ka paisa nahi hota. Yaa jo netavo ko sahuliyat milti hai. Hawai yatra ka be buniyadi karcha. Yah janta ke sadupyog nahi kiya ja sakta hai. Chunav main arbo rupees ka naash kiya jata hai. Horse traiding ke liye.
इस देश में सवर्णों के नेताओं व धर्मगुरुओं व बहुत से विवादित चेहरों की मूर्तियां , पार्क सरकारी व सार्वजनिक स्थानों पर सरकारी पैसों व जनता के पैसों से बने हैं और अभी भी समय समय पर तमाम सरकारें सरकारी खजाने से सार्वजनिक जमीन पर पार्क और मूर्तियां लगवाने का काम कर रही है लेकिन कोई भी लेखक, पत्रकार, राजनेता व मीडिया कभी प़श्न नहीं करती और बल्कि उनका गुणगान एवं प़चार प़सार व महिमा मंडन करतीं रहतीं हैं जबकि यह मूर्तियां अधिकांश शोषण कर्त्ताओं की है वह इस देश के हमेशा से शासक वर्ग, अत्याचारी व शोषण करने वाले स्वयंभू लोगों की ही होती है। इसमें जनता के पैसों की बर्बादी इन जातिवादी व संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों , लेखकों व टिप्पणी कारों को दिखाईं नहीं देती है क्योंकि इन सभी की जातिवादी मानसिकता आज भी वही है। इस लेख की लेखिका भी उसी जातिसमूह की है
इसलिए यह सब यही कमेंट करोगी।
Jai bhim namo budhay
जब तक लोगों में जातिवाद दिखता रहेगा ऊंच -नीच की सोच बनी रहेगी है कोई इस भारतवर्ष के सपूत /सपुत्री जिनको हमने संसद में बिठा रखा है वे जातिवाद समाप्त करने का बिल लाये और संसद ध्वनि मत से पास कर दे, तभी इंसान को इंसान समझेंगे व नाम ऐसे होने चाहिए जिससे जाति का आभास न हो सके, तभी लोग बिना किसी भेदभाव के रह सकेंगे, अन्यथा निम्न वर्ग जो सदियों से पिछड़ा है जो छुआछूत का शिकार है , जानवर से बदतर स्थिति में जीने को मजबूर है केवल 2-3% लोगों में ही सुधार है, जहाँ तक सवाल सरकार बनाने /बनने का सवाल गरीब /निम्न वर्ग के लोग ही अधिकतम वोटिंग करते हैं लेकिन भलाई /फायदा केवल समृद्ध लोगों का ही सोचा गया है व सोचा जा रहा है please think about my thought & view
Aaj bhi logon ki purani soch hai aadmi ko samay ke sath apni soch badalni chaiye
आठ दस साल पहले कोलकात्ता में एक हाथ से खींचा जाने वाले रिक्शा चालक के रिक्शे पर एक पत्रकार सफर कर रहा था। थोड़ी देर चलने के बाद वह रिक्शा चालक ज़मीन पर गिर गया। पत्रकार ने उसे उठाया तथा पानी आदि पिलाकर पूछा कि क्या बात है एक दम से आप क्यों गिर गए तो उसने ज़बाब दिया की साहब मै पिछले तीन दिन से कुछ खाया नहीं क्योंकि घर में कुछ था ही नहीं।इस पर पत्रकार बहुत दुखी हुआ लेकिन पूरी जानकारी के लिए आगे फिर पूछा । आप कौन है। तो आप इस बात को जानकर हैरान हो जाएंगे कि वो कौन था। उसने बताया कि में अन्तिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के पोते का पड़ पोता हूं। क्या करें मेरे पास सिवाय रिक्शा चलाने के अलावा कोई साधन दो जून की रोटी के लिए नहीं है। पत्रकार ने उसकी कुछ मदद की तथा वहां से अपने गंतव्य स्थान को पैदल ही चल दिया। रास्ते में सोचता रहा कि जिन मुगलों के किले दुनिया भर में जाने पहचाने जाते है उसके खानदान का व्यक्ति दो जून की रोटी के लिए मोहताज है। अच्छा होता कि इस तरह के किले,स्मारक आदि के बदले में कोई उद्योग लगा दिया होता तो उसके आगे की पीढ़ी तथा दूसरे गरीब लोग अपना जीवन यापन आसानी से कर रहे होते। यह बात सब नेताओं पर लागू होती है जो अपने जी
ते जी नाम कमाने के लिए बड़े बड़े पुतले तथा स्मारक बनवाते हैं ।इसके बदले में उन्हें उद्योग खोलना चाहिए, सरकारी स्कूल कालेज,विश्व विद्यालय खोलना चाहिए जिससे गरीब लोग बिना फीस के पढ़ सकें तथा उद्योगों में काम करके अपना जीवन यापन कर सकें।
Kaul ji Ayodhya me jo ban raha hai usko kya kahe?????????
Pura desh Corona se Bimar hai aur Ayodhya me Mandir Nirmar joro per hai es per bhi kuchh likha hota ? Sardar Patel …..? 1 0000 Cr ka office…..?
State to chhoro guru Her District me me bhabya Office …..ye Sab per bhi to bolte ….???
Dayashankar said right
Jay bheem
The life of very long for indian art and culture mayavati is very best leader of india mayavati says this parking to the learn by indian culture
बहुत अच्छा लेख है यह लेख दलितों के संघर्ष को याद दिलाते हैं बहुत सारे तरह तरह के पार्क मूर्तियां लगाए जाते हैं उस पर कोई सवाल जवाब नहीं करता यह दलितों के नाम पर यह पार्क और मूर्तियां जो दलितों को प्रेरित करता है उस पर लोग प्रश्न उठा रहे हैं। नमो बुद्धाय जय भीम
बहुत अच्छा लेख है यह लेख दलितों के संघर्ष को याद दिलाते हैं बहुत सारे तरह तरह के पार्क मूर्तियां लगाए जाते हैं उस पर कोई सवाल जवाब नहीं करता यह दलितों के नाम पर यह पार्क और मूर्तियां जो दलितों को प्रेरित करता है उस पर लोग प्रश्न उठा रहे हैं। नमो बुद्धाय जय भीम
अटल जी ने बेकलॉग शुरू करके क्या तीर मार दिया पैशन भी उन्होंने ही बंद करवाई थी
Jai Bhim Namo Buddhay duniya main sachai kabhi chup nhi sakti kuch logo wajese dr baba Sahab Ambedkar ji ko desh ka mahan neta ki tor par kabhi school li shilsha main pesh nhi kiya q ki baba Sahab jo log jita na padege utna janoge shirf muje lagta hai ki baba Sahab ko sahi tarike se sirf Brahman logo ne fallow kiya isiliye o aaj sabse upar hai har chiz main unki unity or education savidhan ko sahi tari se pad k aage bade hai
मुकुलिका बनर्जी को बहुत ही बुरा लग रहा है पहले अपना दिमाग से कचरा निकाल लेना चाहिए था इसके बाद लेख लिखना चाहिए जातिवादी सोच में डूब कर अगर लेख लिखे
Jai Bhim Namo Buddhai, Bharat desh Mulniwasi ka hai , baki sab baharse aye hai. Ab Saket land ko Ayodha bana rahe are Ram hi nahi tha to unka Birthplace kahase .Ab sab Buddha murtiya nikal rahi hai Ayodha me . Jawab de Sarkar ki chup hai. Sab kam Dadagiri aur Supreme Court hatme lekar chal raha hai. Ab desh zute logonke hat me hai.
Jai Bhim Namo Buddhai, Bharat desh Mulniwasi ka hai , baki sab baharse aye hai. Ab Saket land ko Ayodha bana rahe are Ram hi nahi tha to unka Birthplace kahase .Ab sab Buddha murtiya nikal rahi hai Ayodha me . Jawab de Sarkar ki chup hai. Sab kam Dadagiri aur Supreme Court hatme lekar chal raha hai. Ab desh zute logonke hat me hai.
Bahan ji ne jo kiya us karya per aur un per hume garv hai
भारत में वर्ण व्यवस्था और चौथे वर्ण को हजारों जातियों में बांटना। भारत की मूल समस्याओं में से एक है । इस एक समस्या से हजारों समस्याएं पैदा हुई है। संसद से जाति पूछना , जाति की पहचान वाले सर नेम लगाना और जातीय अहंकार का प्रर्दशन दंडनीय अपराध घोषित किया जाएं और इस कानून का कड़ाई से पालन कराया जाएं ।पालन कराने के लिए जिलाधिकारी को जिम्मेदार बनाया जाए ।
जातिवाद और सांप्रदायिकता भारत से खत्म होने चाहिए।
संसद से कानून बना कर जातीय पहचान वाले नाम और सर नेम लगाना दंडनीय अपराध घोषित किया जाएं।
The writer of this article is belong to upper caste and everyone knows the upper caste people don’t like Ambedkar and Ambedkar’s constitution. Because constitution of India provides equality to all and higher cast thinks how all Indians are same.
This article shows the mentality of writer which emulates Manusmiriti.
Madam Banarjee
In last pargragh,you have written that proved that you are also not escaped of Manuvad and Brahmani thought however you are highly literat but not educate.
You also proved that the statement of Britisher officer who said,” Brahman/ brahmin have lack of ability of social judgment and alway have bias anyway in their deed “.
It is one of you also proved in her writing.
Fame and smell never can hide.