विश्व कोरोनोवायरस महामारी से जूझ रहा है, वहीं पिछले कुछ हफ्तों में, भारत दो चक्रवाती तूफानों का आगमन भी हुआ जिसमें से एक में जान-माल की गंभीर हानि हुई. 1990 के दशक के बाद से अब तक का सबसे बुरा टिड्डी दल का हमला भी हुआ और अप्रैल के मध्य से राजधानी में कम तीव्रता वाले कम से कम 10 भूकंप के झटके महसूस किये गए.
ये सभी चेतावनी भरे संकेत हैं कि मानव गतिविधि के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, लापरवाह निर्माण और त्वरित जलवायु परिवर्तन का हमें खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
ऐसे समय में, विश्व पर्यावरण दिवस का महत्व और बढ़ जाता है ताकि हमें ये याद रहे कि अपनी जीवन शैली में हमें बदलाव कि ज़रुरत है. यह उन लोगों के योगदान की सराहना करने का एक अच्छा समय है जो हमारे प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुन दोहन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं. इस आर्टिकल में हम ऐसे स्टार्ट अप्स कि बात कर रहे हैं जो अलग अलग तरीकों से हमरे भविष्य को और बेहतर और धरती को सुरक्षित रखने के लिए अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं.
यह भी पढ़ें: अब तिरंगे से उगेंगे फूल और कैलेंडर से सब्जियां
आरोहणा ईकोसोशल डेवलपमेंट
दो आईटी पेशेवरों अमिता देशपांडे और नंदन भट के दिमाग की उपज, आरोहणा अपशिष्ट प्रबंधन, स्वच्छ ऊर्जा, जल संरक्षण, स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों पर केंद्रित है. देशपांडे और भट एक ट्रेकिंग ग्रुप के हिस्से के रूप में मिले. आरोहणा की कम्युनिकेशन मैनेजर शिवालिका मोहन ने दिप्रिंट को बताया ‘ट्रेक के दौरान, उन्होंने चारों ओर बिखरा हुआ सारा प्लास्टिक देखा, जिसे कचरा बीनने वाले भी उठाते नहीं हैं क्योंकि वो धातु और कांच जैसा उपयोगी नहीं होता.’
गैर-बायोडिग्रेडेबल और गैर-पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक को कपड़े और अन्य साज सज्जा के सामान की तरह नया रूप देने के उद्देश्य से 2013 में आरोहण शुरू किया गया था. मोहन कहती हैं, ‘अप-साइक्लिंग मैन्युअल रूप से की जाती है और कोई भी रसायन या भारी मशीनरी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यहां तक कि प्लास्टिक का धागा बनाकर उसे चरखे से हाथ से कपड़े के रूप में बुना जाता है. पुणे स्थित ये स्टार्टअप दादरा और नगर हवेली के एक दूरदराज के गांव में आदिवासी लोगों को रोजगार प्रदान करता है, जो कचरे के प्लास्टिक के माध्यम से कपड़े, सामान और घर की सजावट का सामान बनाते हैं.
अमिता देशपांडे खुद दादरा नगर हवेली से ताल्लुक रखती हैं और वहां रोजगार पैदा करना चाहती हैं ताकि लोगों पलायन करने के लिए मजबूर न होना पड़े.
अब्सोल्युट वाटर
अब्सोल्युट वाटर की डायरेक्टर स्मिता सिंघल याद करती हैं कि दिल्ली में उनके घर में आस-पास के सीवेज के पानी की गंध उन्हें कैसे परेशान करती थी. ‘मेरे परिवार के सदस्य स्वास्थ्य के मुद्दों की शिकायत कर रहे थे. मैं हर जगह एक ही कहानी सुनती था, कि सीवेज का पानी रेगुलर पानी के साथ मिल रहा है और इसका कोई समाधान नहीं है.’
व्यापक शोध के बाद, सिंघल, एक व्यवसाय स्नातक, और उनके आईआईटी-कानपुर स्नातक पिता, ने गंदे पानी के शुद्धिकरण के लिए के लिए वर्मीकल्चर का उपयोग करके एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संकल्पना की. ‘हमने प्रकृति के फ़िल्टर के तरीकों को दोहराने की कोशिश की. पानी छानने के पांच परतों के माध्यम से चला जाता है और डब्लूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार 85 प्रतिशत तक पानी पीने के पानी में बदला जा सकता है.’
‘यह प्रक्रिया 100 प्रतिशत ग्रीन और लागत प्रभावी है. हमारा पायलट प्रोजेक्ट दिल्ली जल बोर्ड के लिए था, जिसके लिए हमने मुफ्त में प्लांट लगाया था. अब वह प्रतिदिन एक लाख लीटर स्वच्छ पानी का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त सीवेज को छानने में सक्षम है’, स्मिता ने बताया.
ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट
ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट की स्थापना 2013 में मध्य प्रदेश के एक गांव परदसिंगा में रहने वाले कलाकारों, महिलाओं और किसानों के एक समूह द्वारा की गई थी. पिछले सात वर्षों से, इस गांव के ज्यादातर लोग जैविक खेती, बीज बचत और विभिन्न रचनात्मक, सार्वजनिक और सामाजिक हस्तक्षेपों के माध्यम से एक बेहतर भविष्य के लिए प्रयास कर रहे है.
गांव की निवासी और प्रोजेक्ट की समन्वयक श्वेता भट्टड़ ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम गैर-कॉरपोरेट स्वामित्व वाले बीजों के साथ स्वदेशी कपास की खेती करते हैं और उन्हें स्थानीय रूप से हाथ से बुने हुए धागे और कपड़े में प्रोसेस करके विभिन्न उत्पादों जैसे बीज-बैंक, सीड राखी, आभूषण, कलाकृतियों, दैनिक उपयोग की वस्तुएं, कपड़ा, कागज बनाने के लिए तैयार करते हैं. हम अपना भोजन और कपड़े उगाते हैं और इसे अपने किसानों की वित्तीय स्वतंत्रता के लिए अपनी ज़रूरतें पूरा होने के बाद बेचते है.’
यह पूरी तरह से ग्रामीणों की एक स्वतंत्र पहल है जिसे वे खुद ही संंभालते हैं . गांव ने नवंबर में दिल्ली में लगभग 200 लोगों के एक भोज की मेजबानी की थी, जिसमें खाद्य और गैर खाद्य कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया था, जिनमें से अधिकांश अपने स्वयं के खेत की उपज से बने थ. ‘इसका उद्देश्य लोगों को भोजन की लागत के बारे में एक संदेश देने के लिए किया गया था.’ श्वेता ने कहा.
हेल्पअसग्रीन और फूल
कानपुर के दो युवकों, अंकित अग्रवाल और करण रस्तोगी ने गंगा को पूजा सामग्री और खास तैर पर फूलों से होने वाले प्रदूषण कि वजह से ‘धार्मिक सीवर’ बनने से बचाने के लिए हेल्पअसग्रीन की स्थापना की.
फूलों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कीटनाशकों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है, और जब अवशेषों को नदी में फेंक दिया जाता है, तो ये नदी को विषैला कर देता ह.
दोनों ने फूलों के विभिन्न प्रकारों और संयोजनों का शोध और परीक्षण किया और अंत में वर्मीकम्पोस्ट के बेहतरीन नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटेशियम का मिश्रण बनाया . इस सामग्री का उपयोग अगरबत्ती और कागज बनाने के लिए किया जाता है. इस स्टार्ट अप ने आज तक 11,060 मीट्रिक टन तक का मंदिर-कचरा बचाया है और कानपुर में कई परिवारों को आजीविका प्रदान दी है. अग्रवाल और रस्तोगी 2019 में अलग हो गए लेकिन उनका काम बंद नहीं हुआ. अग्रवाल ने फूल नामक अपनी खुद की कंपनी शुरू की जो यही काम कर रही है .
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)