नई दिल्ली: चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय इलाके में 3 किलोमीटर अंदर तक ‘आ गए’ हैं, जिसे पूर्वी लद्दाख का हॉट स्प्रिंग्स एरिया कहा जाता है.
जानकार सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि बीजिंग ने पैंगॉन्ग झील के ‘फिंगर एरियाज़’ में भी अपने आदमी उतार दिए हैं, और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी, अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है. पैंगॉन्ग झील का उत्तरी किनारा एक हथेली की तरह आगे निकला हुआ है, और इलाक़े की हदबंदी के लिए, इसके बाहर निकले हुए हिस्सों को ‘उंगलियों’ के रूप में पहचाना जाता है.
सूत्रों ने बताया कि गलवान घाटी में बड़ी तादाद में चीनी सैनिकों की मौजूदगी की खबर के विपरीत, उनका ये जमावड़ा चीनी सीमा के अंदर ही है, जिसे स्थानीय स्तर पर एलएसी भी माना जाता है.
सूत्रों का कहना है कि गलवान में सीसीएल और एलएसी दरअसल एक ही चीज़ हैं, हालांकि नक़्शों की अदला-बदली नहीं हुई है. सूत्रों ने बताया कि ये समझ स्थानीय स्तर पर है और भारतीय क्षेत्र के बिल्कुल अंदर, निर्माण गतिविधियों पर चीनियों का एतराज़ एक आश्चर्य था.
भारत ने सीमा के अपनी ओर ‘दर्पण तैनाती’ की हुई है, जिसमें चीन के हर कदम की बराबरी की गई है.
लेकिन, चीनी सैनिक पैट्रोल प्वाइंट 14, 15 और गोगरा चौकी के पास तक आ गए हैं, जिसका गलवान वैली के दक्षिण पूर्व से सीधा फासला 80 किलोमीटर का है, और जो वैली और पैंगॉन्ग झील के बीच में है.
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सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि चीनियों ने, इन क्षेत्रों में अपनी सीसीएल को पार नहीं किया है, लेकिन उन्होंने इस बात को स्वीकार किया, कि भारत जिसे एलएसी समझता है, ये इलाके उसके 3 किलोमीटर अंदर हैं.
‘इलाके में कोई नक़्शा नहीं’
इन इलाक़ों में पैट्रोल प्वाइंट्स को नम्बरों से पुकारा जाता है, और समय-समय पर भारतीय सैनिक, जिनमें सेना और आईटीबीपी दोनों के जवान होते हैं, इन प्वाइंट्स पर गश्त लगाते हैं.
एक सूत्र ने बताया, ‘इस इलाक़े में एलएसी क्या है इसकी हदबंदी को लेकर, भारत और चीन के बीच नक़्शों की कोई अदला-बदली नहीं हुई है… जो कुछ भी समझ है वो स्थानीय स्तर पर दोनों सेनाओं के बीच में है.’
सूत्रों ने इस बात पर भी बल दिया कि इस महीने के शुरू में, सैनिकों में हुए इज़ाफ़े के अलावा, यहां पर दूसरी ऐसी कोई घटना नहीं हुई है.
जैसा कि दिप्रिंट ने ख़बर दी थी, चीन एलएसी के साथ कई स्थानों पर बॉर्डर डिफेंस रेजिमेंट्स के सैनिकों की बड़ी टुकड़ियां ले आया है. लगभग 1200-1300 सैनिक कई लोकेशंस पर अंदर आ गए हैं, हालांकि उनकी संख्या अलग अलग बताई जा रही है.
दिप्रिंट ने ये भी ख़बर दी थी कि रिज़र्व क्षेत्रों में रखे जाने वाले भारतीय सैनिक, चीनियों के मुक़ाबले में तैनात किए जा रहे हैं, और रिज़र्व में उनकी जगह भरी जा रहीं हैं. सूत्रों ने बताया कि भारत ने भी इन क्षेत्रों में अपने सैनिक उतार दिए हैं, लॉजिस्टिक्स के साथ जिसमें टेंट्स भी शामिल हैं. क़रीब 14,000 फीट ऊंचे इन इलाक़ों में तैनाती के लिए, सैनिकों को यहां का अभ्यस्त बनाना ज़रूरी होता है.
फिंगर क्षेत्र में वर्चस्व चिंताजनक
भारत मज़बूती से दावा करता है कि एलएसी फिंगर 8 से शुरू होती है, जबकि चीन मानता है कि ये फिंगर 2 से शुरू होती है.
कारगिल युद्ध के दौरान जब सैनिकों को इस इलाक़े से हटाकर पाकिस्तान से लड़ने के लिए भेजा गया, तो चीन ने यहां आकर फिंगर 4 पर मोटर चलाने लायक़ सड़क बना दी थी.
सूत्रों ने कहा कि भारत, जिसका फिंगर 2 पर ‘वर्चस्व’ है, कई साल से वहां से आगे सड़क बनाने की कोशिश कर रहा है, जिससे सैनिक वाहनों के ज़रिए तेज़ी से वहां पहुंच सकते थे.
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एक सूत्र ने बताया, ‘चीनियों ने सड़कें बनाई हैं. इसलिए हम कह सकते हैं कि जिस जगह तक पहुंचने में चीनी सैनिकों को क़रीब 15 मिनट लगेंगे, वहां हमें क़रीब ढाई घंटे लगेंगे. फिंगर 2-3 के बीच सड़क निर्माण का काम चल रहा था.’
5 फरवरी को हुई झड़प के बाद, भारत की गश्त लगाने की क्षमता को कम करने के लिए, चीनियों ने वहां बड़ी संख्या में सैनिक और वाहन भेज दिए हैं.
भारत दावा करता है कि एलएसी फिंगर 8 पर है, लेकिन उसकी गश्त फिंगर 5 के पास तक हुआ करती थी, और उससे आगे हमेशा चुनौती मिलती थी.
सूत्रों ने बताया कि चीनियों के लिए फिंगर एरिया की अहमियत इसमें है कि अगर वो फिंगर 4 के पश्चिम में आ जाएं, तो लुकुंग सीधा उनकी निगरानी में आ जाएगा, जहां भारतीय पेट्रोल बोट्स रखी जाती हैं.
इसके अलावा, वो उत्तरी किनारे और मार्समिकला आदि की ओर, भारत की तमाम गतिविधियों पर निगाह रख सकेंगे.
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