पटना: राजद नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कोविड-19 महामारी के प्रबंधन और प्रवासी मज़दूरों के संकट से निपटने में ‘दयनीय विफलता’ के लिए नीतीश सरकार की कड़ी आलोचना की है.
दिप्रिंट के साथ इंटरव्यू में यादव ने शुक्रवार को कहा, ‘उपचार उपलब्ध कराना, क्वारेंटाइन केंद्रों की व्यवस्था करना और प्रवासी मज़दूरों को घर वापस लाना – ये सब सरका की बुनियादी ज़िम्मेदारियां हैं लेकिन इनमें से एक का भी ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि महीनों जद्दोजहद के बाद राज्य में वापस आए मज़दूरों को अब कोविड-19 के खतरे का सामना करना पड़ रहा है.
यादव ने कहा, ‘ट्रांज़िट केंद्रों में सोशल डिस्टेंसिंग का कोई नियम नहीं है. क्वारेंटाइन केंद्रों की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है क्योंकि सरकार वहां बड़ी संख्या में आ रहे लोगों को संभाल नहीं पा रही है. बाहर से आए श्रमिकों को खाना और साफ पानी तक नहीं दिया जा रहा है.’ उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद से बिहार के स्वास्थ्य ढांचे को विकसित करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है.
कुमार ने 2015 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, और यादव को उपमुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी दी थी लेकिन कुछ महीनों बाद ही गठबंधन बिखर गया और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए कुमार वापस अपने पुराने सहयोगी दल भाजपा से जा मिले.
यादव ने कोविड-19 की टेस्टिंग को लेकर राज्य सरकार की कथित शिथिलता की भी आलोचना की.
उन्होंने कहा, ‘टेस्टिंग को लेकर बिहार सरकार का रवैया बेहद लापरवाही भरा है. हरियाणा जैसा राज्य भी इस संबंध में बिहार के मुक़ाबले कहीं बेहतर काम कर रहा है. ये अब स्पष्ट हो गया है कि बिहार सरकार को राज्य की जनता को बचाने की कोई चिंता नहीं है. वह प्रवासी श्रमिकों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार कर रही है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘नीतीश कुमार चमकी बुखार (इनसेफेलाइटिस) के प्रकोप के दौरान भी बेपरवाह दिखे थे और वही लापरवाही अब बारंबार दोहराई जा रही है.’
‘कोई पारदर्शिता नहीं’
इंटरव्यू के दौरान तेजस्वी यादव ने आईएएस अधिकारी संजय कुमार का तबादला करने के लिए भी नीतीश कुमार को आड़े हाथों लिया. स्वास्थ्य विभाग में प्रधान सचिव संजय कुमार राज्य में कोविड-19 संकट संबंधी प्रयासों की ज़िम्मेदारी संभाल रहे थे, जिन्हें इसी सप्ताह तबादला कर पर्यटन विभाग में भेज दिया गया.
यादव ने इस घटना को सरकार में पारदर्शिता के अभाव और कुप्रबंधन के उदाहरण के तौर पर पेश किया.
उन्होंने कहा, ‘जंग जारी रहते – कोविड के खिलाफ़ जंग – जहाज़ के कप्तान को बदल दिया गया, वो भी ऐसे समय जब बिहार में कोविड मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. क्या इससे साफ नहीं हो जाता है कि उनके तबादले के पीछे कोई छुपा हुआ एजेंडा है?’
राजद नेता ने सवाल किया, ‘यदि संजय संकट से ठीक से नहीं निपट रहे थे, तो फिर उन्हें दो महीनों तक संकट को संभालने की ज़िम्मेदारी क्यों दी गई? क्या इससे नीतीश सरकार की खामियां उजागर नहीं होती हैं?’
राज्य में विपक्ष के नेता यादव ने आरोप लगाया कि अधिकारी का तबादला सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने सरकार की ‘नौकरशाही लॉबी’ और ‘तानाशाही’ के समक्ष घुटने नहीं टेके.
बुधवार को भी यादव ने इस मामले को उठाते हुए आरोप लगाया था कि संजय कुमार को पटना स्थित नालंदा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख को निलंबित करने की कीमत चुकानी पड़ी है.
Amidst rough midsea, the captain is being replaced who most likely would struggle navigating in right direction.
Although it’s govt’s prerogative to appoint officers, I think he paid the price of suspending HOD-Microbiology, NMCH who is Nitish Ji’s close relative. https://t.co/4BGAn3aqP3
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) May 20, 2020
उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि आईएएस अधिकारी संजय का ये फैसला नीतीश कुमार को नहीं भाया क्योंकि निलंबित अधिकारी मुख्यमंत्री के गांव के हैं और उनके निकट संबंधी भी. यादव ने कहा, ‘एक और वजह है अपने काम में संजय का बेहद पारदर्शी होना.’