कभी कहा जाता था और इसमें कुछ सच्चाई भी थी कि जनरल मोटर्स के लिए जो अच्छा है, वही अमेरिका के लिए भी अच्छा है. इसी से मिलता-जुलता सुर भारत में यह था (हालांकि इसमें उतनी सच्चाई नहीं थी) कि बिरला बंधुओं के लिए जो अच्छा है वही देश के लिए भी अच्छा है. बहरहाल, यह सब अब इतिहास हो चुका है. जीएम आज अपनी जितनी कारें चीन में बेचती है उतनी अपने देश में नहीं बेच पाता है और बिरला बंधुओं में बंटवारा हो चुका है. उनका गौरवपूर्ण स्थान मुकेश अंबानी ने ले लिया है.
पिछले एक महीने के दौरान मुकेश ने जो सौदे किए वे दुनियाभर में सुर्खियां बन गईं. उन्होंने रिलायंस उद्योग की सहायक कंपनी जियो प्लेटफॉर्म्स में अपनी हिस्सेदारियां पांच हिस्सों में बेचकर यानी ‘स्टेक सेल्स’ के जरिए 78,500 करोड़ रुपये (10 अरब डॉलर से ज्यादा) की कमाई की. सबसे ताज़ा सौदा इसकी विशाल डिजिटल कंपनी का है, जो 65 अरब डॉलर में हुआ. इस बीच मातृ कंपनी रिलायंस राइट्स इश्यू जारी करने जा रही है, जो तुलनात्मक रूप से छोटा लगता है, मगर भारत में अब तक का सबसे बड़ा 53,000 करोड़ का इश्यू होगा. दूसरे ‘स्टेक सेल’ अलग-अलग चरण में हैं. टेलिकॉम टावर बिजनेस का सौदा 25,000 करोड़ का होगा, पेट्रोलियम मार्केटिंग में 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी बीपी कंपनी को बेचकर 7,000 करोड़ की कमाई की जा सकती है.
अगर तेल तथा पेट्रोकेमिकल के कारोबार में 20 प्रतिशत के ‘स्टेक सेल’ का 15 अरब डॉलर का सौदा सऊदी कंपनी आरामको के साथ हो गया तो यह किसी भारतीय व्यवसायी के साथ अब तक का सबसे बड़ा नकदी सौदा होगा. मुकेश ने 20 अरब डॉलर उगाहने और कर्जमुक्त होने का जो लक्ष्य तय किया है वह उसैन बोल्ट वाली गति से हासिल कर लेंगे.
टेलिकॉम और इससे जुड़े भावी व्यवसायों में करीब 40 अरब डॉलर निवेश करने के बावजूद उनके पास नकदी का सरप्लस इकट्ठा हो सकता है. बाज़ार में रिलायंस का कुल मूल्य करीब 10 खरब रुपये (127 अरब डॉलर) माना जाता है.
कई लोगों का मानना है कि टेलिकॉम जैसे प्रतिस्पर्द्धी कारोबार में बेहद बड़ा निवेश कभी भी उपयुक्त लाभ नहीं दे सकता. लेकिन भविष्य के बारे में पूर्वानुमान लगाने और योजनाओं को लागू करने की अपनी क्षमता के साथ-साथ अब एक-के-बाद-एक सौदे करके मुकेश अंबानी ने उन लोगों (इस लेखक सहित) को गलत साबित किया है. खेल शुरू हो चुका है. वालमार्ट-फ्लिपकार्ट और चीन की अलीबाबा से मुक़ाबले के लिए उन्होंने मार्क जुकरबर्ग को ई-कॉमर्स पार्टनर बना लिया है.
अपने विशालकाय उपक्रम के साथ उन्होंने जितने विविध प्रयोग किए और जैसी कल्पनाशीलता दिखाई उसकी कम ही मिसाल मिलती है व्यवसाय जगत में. इसके संस्थापक और मुकेश के पिता धीरूभाई अंबानी ने 1970 के दशक में सिंथेटिक कपड़ा कंपनी के साथ जो सफर शुरू किया था उसमें एक बदलाव तब आया था जब धीरूभाई ने पाताल गंगा और हजीरा में विशाल पेट्रोकेमिकल कारखाने लगाने में मदद करने के लिए मुकेश को स्टैनफोर्ड से वापस बुला लिया था. इसके बाद तकनीक के क्षेत्र में एक शानदार कदम उठाते हुए विश्व का सबसे बड़ा और जटिल रिफाइनरी बनाया गया, जिसमें सबसे खराब किस्म के कच्चे तेल का भी शोधन किया जा सकता है, वह भी इस उद्योग में सबसे अच्छी मार्जिन पर.
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इसके बावजूद, लागत-लाभ के मामले में कुशलता हासिल करने के बाद भी व्यवसाय हमेशा अनुकूल सरकारी नीतियों पर निर्भर रहा. पुत्र अकसर अपने पिता से सुनी यह कहानी सुनाया करते कि कैसे एक परिवार के मुखिया को खुद खाने से पहले ब्राह्मण, फिर गाय, पालतू कुत्ते और खाने की थाली के करीब आ गए कौवे को खिलाना पड़ता था. यह कहानी पीवीसी या पॉलिस्टर धागे जैसे उत्पादों पर ज्यादा लागू होती थी, जिनके मामले में टैक्स, टैरिफ, लाइसेन्स आदि को लेकर सरकार की नीतियां कारोबार को उबार या मार सकती हैं. धीरूभाई के मामले में आमतौर पर (हमेशा नहीं) नीतियां अनुकूल ही रहीं. इसलिए यह चुटकुला चला कि कैसे एक अरब शेख एअर इंडिया की एक परिचारिका को खरीदना चाहता था और जब उसे बताया गया कि वह एअर इंडिया की है, तो उसने पूरी एअर इंडिया को ही खरीद लेने की पेशकश की और अगर वह सरकारी कंपनी है तो वह सरकार को ही खरीद लेना चाहेगा. तब उसे बताया गया कि सरकार तो धीरूभाई को बेच दी गई है.
ब्रांड और तकनीक के कारोबार में सरकार का महत्व नहीं होता. उनमें उपभोक्ता की पसंद और फ्रैंचाइजी के निर्माण में सरकारी नीति की भूमिका नहीं होती, बेशक नीतियों से मदद मिलती है (मसलन, प्रतिद्वंद्वियों को रोकने में). इसलिए, मुकेश अपनी कंपनी को नयी दिशा दे रहे हैं. खुदरा बिक्री के बाज़ार में उनकी शुरुआती पेशकदमी गड़बड़ रही, लेकिन उसकी रणनीति बदली गई. टेलिकॉम में शुरुआती पहल मार्केटिंग के लिहाज से फ्लॉप रही. वैसे, इसे छोटे भाई अनिल को ही सौंपा जाना था. अंततः आज सर्वव्यापी जियो है, जिसके 38.5 करोड़ ग्राहक उनकी बड़ी पूंजी हैं. कभी साड़ियां बनाने वाली रिलायंस को फिर से नया जन्म दिया गया है. सरकार धीरूभाई की जेब में रही हो या न रही हो, उनके पुत्र बाज़ार को जरूर अपने जेब में रखना चाहते हैं.
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When it’s business the first thing which comes into mind is Reliance