हावड़ा: घनी आबादी वाला एक ज़िला, जिसमें कुछ प्रमुख औद्य़ोगिक समूह मौजूद हैं, कोलकाता के बाद हावड़ा, पश्चिम बंगाल में कोविड-19 का दूसरा केंद्र बनकर उभरा है.
5 मई से हावड़ा में कंटेनमेंट ज़ोन्स की संख्या, 72 से बढ़कर 113 हो गई है.
ज़िले में कोविड-19 के 571 पक्के केस हैं, जिनमें से 370 एक्टिव इनफेक्शंस हैं (कोलकाता में ये संख्या क्रमश: 1,311 और 673 है).
हालात और बिगड़ जाते हैं जब रोग की पहचान में देरी होती है. ज़िले में टेस्टिंग की अपनी कोई सुविधा नहीं है. इसका असर न केवल कोविड, बल्कि कैंसर जैसी दूसरी बीमारियां झेल रहे मरीज़ों पर भी पड़ता है.
राज्य सरकार कोविड के इस बोझ के पीछे, यहां की आबादी के स्वरूप- जिसमें कुछ पॉकेट्स में भारी संख्या में लोग रहते हैं- और वापस लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को, कारण बताती है.
हालांकि सरकार दावा करती है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में कमियों को सुधारने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन लोग मुसीबत झेल रहे हैं. जांच में देरी की वजह से मरीज़ों का इलाज समय पर नहीं हो रहा है, और अस्पताल के गलियारों में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी, बिना मास्क लगाए घूम रहे हैं.
इस सबके बीच इनफेक्शन के डर से, बहुत से एंब्युलेंस चलाने वालों ने अपनी सेवाएं रोक दीं हैं, जिसकी वजह से मरीज़ मजबूरन, किराए के रिक्शों में अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं.
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कोलकाता का जुड़वां
कोलकाता के जुड़वां ज़िले के रूप में जाना जाने वाला हावड़ा, पश्चिम बंगाल की राजधानी से 20 किलोमीटर से कम दूरी पर स्थित है, और ब्रिटिश ज़माने के प्रतिष्ठित हावड़ा ब्रिज से जुड़ा है.
प्रदेश सचिवालय नबाना यहां स्थित होने के साथ ही, हावड़ा एक प्रमुख औधोगिक केंद्र भी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक़, शहर की आबादी 49 लाख थी, और जनसंख्या घनत्व 3000 हज़ार व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था.
पिछले कुछ दिनों से सैकड़ों प्रवासी, भारत के बहुत से शहरों से अपने ज़िले को लौट रहे हैं.
ममता बनर्जी सरकार में मंत्री, और हावड़ा के तृणमूल कांग्रेस इंचार्ज रजीब बनर्जी ने बताया, कि ज़िले में पेचीदगियों का प्रमुख कारण इसकी आबादी का स्वरूप है.
उन्होंने ये भी कहा, ‘इस ज़िले में एक बड़ी प्रवासी आबादी रहती है. फिर लगभग तमाम उद्योग समूह- रत्न और आभूषण, गार्मेंट्स, पेंट्स, फाउण्डरी, फूड पार्क्स- यहां मौजूद हैं.’
कोविड के अपने बोझ को कम रखने के लिए, ज़िला प्रशासन पूरी कोशिशों में लगा है. निगर निगम के फूड ट्रक्स और दूसरे वाहनों के ज़रिए, वो कंटेनमेंट ज़ोन्स में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई कर रहा है.
लेकिन फिर भी जिस हावड़ा में रविवार तक कोरोनावायरस के 32 मरीज़ों की मौत हो चुकी थी, वहां का स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर कोविड की चुनौती से निपटने में हांफ रहा है. लगभग 370 एक्टिव मामले, और हर रोज़ औसतन 30 से 40 नए मरीज़- इन सबने मिलकर 6 कोविड अस्पतालों पर भारी दबाव डाल दिया है. दिप्रिंट को हाथ लगे सरकारी कागज़ात के अनुसार इन अस्पतालों में, 96 क्रिटिकल केयर यूनिट बेड्स, और 12 हाई डिपेंडेंसी यूनिट बेड्स हैं (जो गंभीरता के मामले में आईसीयू और जनरल वॉर्ड के बीच में आते हैं).
6 कोविड अस्पतालों में से दो लेवल 4 के हैं जिनमें गंभीर लक्षण वाले मरीज़ों का इलाज होता है, और दो लेवल 3 अस्पताल हैं. एक-एक अस्पताल लेवल 2 और लेवल 1 की सुविधा वाले हैं. मेडिकल सेवाओं के उचित इस्तेमाल के लिए शुरू टियर्ड सिस्टम के मुताबिक, आख़िरी लेवल के अस्पतालों में हल्की बीमारियों का इलाज होता है.
इनमें से तीन निजी अस्पताल हैं, जिनका सरकार ने महामारी से निपटने के लिए सहयोग लिया हुआ है.
लेकिन, कोविड को लेकर ज़िले के काम में एक गड़बड़ी ये है, कि यहां जांच लिए स्थानीय लैब्स नहीं हैं. डॉक्टरों और मरीज़ों का कहना है, कि कोविड सैम्पल्स की रिपोर्ट्स आने में, औसतन पांच दिन लग रहे हैं, जबकि तय मानदंड 24 घंटे हैं.
जांच नतीजों में देरी परिवारों के लिए चुनौतियां पेश कर रही है. एक लेवल 4 कोविड अस्पताल में, मौहम्मद सलीम ने बताया कि वो पिछले चार दिन से, कैंसर मरीज़ अपने भाई की कोविड रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहा है.
उसके भाई की कीमोथेरेपी होनी है, लेकिन अस्पताल तब तक किसी मरीज़ को भर्ती नहीं करेंगे, जब तक उनके पास ‘कोविड-फ्री सर्टिफिकेट’ न हो. उन्होंने बताया, ‘हम पिछले चार दिन से जांच रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे हैं.’
सत्यबाला आईडी अस्पताल में, जो एक सरकारी सुविधा है जिसे अब लेवल 3 अस्पताल का दर्जा दिया गया है, 70 वर्षीय चांदी ओरांव के परिवार के मुताबिक़, पिछले एक हफ्ते से उन्हें बुख़ार और सांस की परेशानी है- ये दोनों कोरोनावायरस के लक्षण हैं.
परिवार का कहना है कि उनकी सांस की परेशानी बढ़ गई है, लेकिन अभी इलाज शुरू नहीं हुआ, क्योंकि पांच दिन से अधिक हो गए और उनकी जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है.
चांदी की 40 वर्षीय बेटी आशा ने बताया, ‘ये तीसरी बार है जब मैं अपने पिता को अस्पताल लाई हूं. वो एक सप्ताह से ज़्यादा से बुख़ार और सांस की समस्या से पीड़ित हैं.’
उन्होंने ये भी कहा,’पहली बार डॉक्टरों ने दवाएं लिखकर हमें वापस भेज दिया था. फिर उनकी जांच की गई और हम अभी रिपोर्ट्स के इंतज़ार में हैं, पांच दिन से ज़्यादा हो गए हैं.’
‘हम इन्हें अस्पताल वापस लाए हैं, क्योंकि इनकी सांस की परेशानी बढ़ गई है, और बुख़ार भी तेज़ है.’
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, कि हावड़ा में जमा किए गए नमूने, जांच के लिए कोलकाता की लैब्स में भेजे जाते हैं, जो अधिकतर सरकारी हैं. हालांकि ‘सुरक्षा कारणों’ से अधिकारी ने इन लैब्स का नाम नहीं बताया.
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मंत्री बनर्जी ने बताया कि राज्य सरकार अपने हेल्थ केयर ढांचे को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है. उन्होंने दि प्रिंट से कहा,“स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में हम बंदोबस्त बढ़ा रहे हैं. हमने कुछ निजी अस्पतालों को साथ लिया है, और उनमें हर रोज़ जुड़ाव हो रहे हैं. यहां पर एक टेस्टिंग लैब बनाने की भी कोशिश हो रही है.”
टेस्टिंग बढ़ाने की कोशिश में, हावड़ा नगर निगम ने नमूने इकठ्ठे करने के लिए 6 अस्थाई बूथ बनाए हैं, लेकिन निगम के एक सीनियर अधिकारी ने स्वीकार किया, कि इसमें समय लग रहा है.
अधिकारी ने ये भी कहा,’हमारे पास 300 से 400 नमूनों की जांच की क्षमता है, लेकिन हम हर रोज़, कम से कम उसका दोगुना भेज रहे हैं. इस प्रक्रिया में समय लग रहा है.’
चांदी जैसे मरीज़ों की शिकायत के बारे में पूछे जाने पर, जिन्हें इंतज़ार करना पड़ रहा है, अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि वो सरकारी गाईडलाइन्स और प्रोटोकोल के हिसाब से चल रहे हैं.
प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है, कि प्रोटोकोल के अनुसार सभी मरीज़ों को भर्ती करने की ज़रूरत नहीं है. जब तक कि साथ में कोई दूसरी गंभीर बीमारी न हो, तब तक बिना लक्षण और हल्के लक्षण वाले मामलों में, घर पर ही इलाज की इजाज़त दी गई है.
बंगाल स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, ‘इलाज का प्रोटोकोल कहता है कि बिना लक्षण और हल्के लक्षण वाले मरीज़ घर पर ही रह सकते हैं, अगर उन्हें कोई दूसरी बीमारी न हो’.
उन्होंने ये भी कहा, ‘इनफ्लुएंज़ा और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (सारी) के मरीज़ों की भारी तादाद का अस्पतालों पर बहुत दबाव है. इसलिए कई बार डॉक्टर भर्ती की सलाह नहीं देते. लेकिन ये सब अस्पतालों में अलग अलग है.’
एम्ब्युलेंस की कमी
एक और समस्या जिससे स्थानीय हेल्थकेयर दो चार है, वो है कोरोनावायरस मरीज़ों की सेवा के लिए एम्ब्युलेंसेज़ की कमी.
मरीज़ों और डॉक्टरों का कहना है कि अधिकतर सेवा देने वालों, सरकारी व निजी, ने एम्ब्युलेंस चलाने से मना कर दिया है, क्योंकि ‘एम्ब्युलेंस संक्रामक बीमारियों के लिए नहीं बनीं हैं’, और वो नहीं चाहते कि ड्राइवरों के सामने संक्रमण का ख़तरा हो.
मरीज़ों का कहना है कि एम्ब्युलेंस के लिए, प्रदेश स्वास्थ्य विभाग से गुहार लगाने का भी असर नहीं हुआ है, क्योंकि वो ज़्यादातर ‘भरी हुई’ या ‘बिज़ी’ रहती हैं.
आशा अपने पिता को साइकिल रिक्शा में अस्पताल लेकर आई, जो उनके घर से दस किलोमीटर की दूरी पर है. रिक्शा चालक मौहम्मद ज़ुबैर ने बताया कि वो रोज़ाना ऐसे तीन से पांच मरीज़ों को ढो रहा है, जिससे उसे दिनभर में क़रीब 200 रुपए मिल जाते हैं.
ऊपर ज़िक्र किए गए सरकारी अधिकारी ने कहा, कि वो एम्ब्युलेंस की कमी को भी दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘हम ऑपरेटर्स को विशेष प्रोत्साहन दे रहे हैं, ताकि और एम्ब्युलेंस हासिल हो सकें.’
‘वापस लौट रहे प्रवासी स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं’
ज़िले की सबसे बड़ी ग़ैर-कोविड सरकारी सुविधा, हावड़ा डिस्ट्रिक्ट जनरल हॉस्पिटल के एक सीनियर डॉक्टर ने बताया कि हावड़ा के अस्पतालों में संक्रमण की दर बहुत ऊंची है. डॉक्टर ने ये भी कहा कि वापस लौट रहे प्रवासियों की भारी तादाद स्थिति को और बिगाड़ रही है.
डॉक्टर ने कहा, ‘हर रोज़ सैकड़ों मरीज़ इनफ्लुएंज़ा जैसे लक्षण लेकर आते हैं. हमें उनकी रिपोर्ट्स जल्दी चाहिए होती हैं, जिससे पता चल सके कि ये कोविड केस है या नहीं. अगर रिपोर्ट नहीं तो लैब की ओर से, कुछ डॉक्टरों के लिए एक अलर्ट सिस्टम होना चाहिए.’
डॉक्टर के मुताबिक़ हावड़ा डिस्ट्रिक्ट जनरल हॉस्पिटल में उनके 11 सहयोगी डॉक्टर, कोविड-19 के सम्पर्क में आ गए हैं, और अस्पताल के 200 से 250 हेल्थ स्टाफ में से, 100 से अधिक को क्वारेंटीन किया जा चुका है.
अस्पताल अधीक्षक नारायण चट्टोपाध्याय भी कोविड-19 जांच में पॉज़िटिव पाए गए थे, लेकिन अब वो ठीक होकर काम पर लौट आए हैं.
लेकिन एक से ज़्यादा अस्पतालों ने स्वास्थ्य कर्मियों के लिए आवश्यक, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) और मास्क की कमी की बात कही है.
हावड़ा डिस्ट्रिक्ट जनरल हॉस्पिटल के एक स्टाफ ने कहा,’हमारे पास बहुत सीमित संख्या में मास्क हैं, सब के लिए एक-एक भी नहीं हैं. हमें 300 से अधिक की ज़रूरत थी. हमें वो अभी तक नहीं मिले हैं.’
एक डॉक्टर ने बताया कि सरकार ने ‘पीपीई को फिर से इस्तेमाल करने की गाइडलाइन्स जारी की हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं.’ डॉक्टर ने ये भी कहा कि ‘ये पीपीई फिर से इस्तेमाल नहीं हो सकतीं, या इन्हें फिर से सैनिटाइज़ करने के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन नहीं हैं.’
रविवार को जारी हेल्थ बुलेटिन के अनुसार, 22,950 पीपीई, और 15,550 एन-95 मास्क हावड़ा ज़िले को भेजे गए थे, लेकिन डॉक्टर इस संख्या को नहीं मानते. उन्होंने कहा,’ये संख्या ज़रूर मीडिया बुलेटिन्स के लिए होगी. हम वास्तव में इतने सारे इस्तेमाल होते हुए नहीं देखते.’
उलुबेरिया के ईएसआई अस्पताल में, जो लेवल 1 स्तर का है, कोविड-19 के 25 मरीज़ हैं, लेकिन कोई ऑक्सीजन सपोर्ट या वेंटिलेटर नहीं है, और डॉक्टर और हेल्थ स्टाफ वहां बिना मास्क के घूमते देखे गए.
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अस्पताल के उप-अधीक्षक एस गायन ने बताया, ‘ये एक लेवल वन अस्पताल है, और हमारे ऐसे मरीज़ हैं जो या तो बिना लक्षण के या फिर हल्के लक्षण वाले हैं. ज़रूरत पड़ने पर इन्हें लेवल तीन या लेवल चार के अस्पताल में शिफ्ट किया जा सकता है.’
गायन का बयान (कोविड रेस्पॉन्स के रूप में) मेडिकल सुविधाओं के वर्गीकरण के लिए अपनाए जाने वाले एसओपी के हिसाब से ही है, लेकिन अल्प अवधि की सूचना पर मरीज़ों को शिफ्ट करना एक कठिन काम है, ख़ासकर ऐसे ज़िले में, जहां अस्पतालों में पहले ही ज़रूरी सुविधाओं का अभाव है, और उनके बीच लम्बे फासले हैं.
इस सब के बीच ये ज़िला डॉक्टरों की कमी से भी जूझ रहा है.
हावड़ा नगर निगम (एचएमसी) ने सोशल मीडिया पर निजी डॉक्टरों से इस काम में स्वैच्छिक भागीदारी का अनुरोध किया है. एचएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,’हम उम्मीद कर रहे हैं कि अधिक लोग वॉलंटियर करेंगे.’
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