नई दिल्ली: सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने परोक्ष रूप से चीनी भूमिका का संकेत देते हुए शुक्रवार को कहा कि यह मानने के कारण हैं कि उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे तक भारत के सड़क बिछाने पर नेपाल किसी और के कहने पर आपत्ति जता रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि चीनी सेना के साथ हाल की तनातनी पर भारतीय सेना सिलसिलेवार तरीके से निपट रही है.
भारत द्वारा लिपुलेख-धारचुला मार्ग तैयार किये जाने पर नेपाल द्वारा आपत्ति किये जाने के सवाल पर जनरल नरवणे ने कहा कि पड़ोसी देश की प्रतिक्रिया हैरान करने वाली थी.
सेना प्रमुख ने कहा, ‘काली नदी के पूरब की तरफ का हिस्सा उनका है. हमने जो सड़क बनाई है वह नदी के पश्चिमी तरफ है. इसमें कोई विवाद नहीं था. मुझे नहीं पता कि वे किस चीज के लिये विरोध कर रहे हैं.’
भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों को आपत्ति उठाने के लिए नेपाल के कदम के पीछे चीन की भूमिका पर संदेह है. हालांकि, काठमांडू ने इस तरह के सुझावों को खारिज कर दिया है.
सेना प्रमुख ने कहा, ‘पूर्व में कभी कोई समस्या नहीं हुई है. यह मानने के कारण हैं कि उन्होंने किसी दूसरे के कहने पर यह मामला उठाया है और इसकी काफी संभावना है.’
सरकार ने कहा कि अपने खर्चों में 20% की कटौती करे
टूर ऑफ ड्यूटी (टीओडी) परिकल्पना के तहत युवाओं को तीन साल के लिये सेना में भर्ती करने के प्रस्ताव के बारे में सेना प्रमुख ने कहा कि यह विचार स्कूल और कॉलेज के छात्रों से मिले उस फीडबैक के बाद सामने आया कि वे सेना में स्थायी कमीशन लिये बिना ही सेना की जिंदगी का अनुभव करना चाहते हैं.
जनरल नरवणे ने कहा कि टीओडी से सेना को अपने पेंशन और अन्य दिये जाने वाले फायदों पर आने वाली लागत को कम करने में मदद मिलेगी.
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सेना को सरकार की तरफ से आदेश मिला है कि कोविड-19 के मद्देनजर वह चालू वित्त वर्ष में अपने खर्चों में 20 प्रतिशत की कटौती करे और सेना अपनी युद्ध तैयारियों से समझौता किये बिना इसे लागू कर रही है.
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उन्होंने मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनलिसिस द्वारा आयोजित एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में कहा कि बड़े पैमाने पर जवानों की आवाजाही को रोकने समेत विभिन्न उपायों के तहत खर्च में कटौती की जा रही है.
नेपाल ने शनिवार को सड़क के उदघाटन पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि एकतरफा कार्रवाई सीमा से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिये दोनों देशों के बीच बनी सहमति के खिलाफ है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले हफ्ते उत्तराखंड में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर चीन की सीमा से लगी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी इस सड़क का उदघाटन किया था.
‘एलएसी में आमना-सामना तब होता है जब नए स्थानीय कमांडर पदभार संभालते हैं’
भारत और चीन के सैनिकों के दो मौकों पर आमने-सामने आने के सवाल पर सेना प्रमुख ने कहा कि दोनों मामले आपस में जुड़े नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘हम मामले-दर-मामले के आधार पर इनसे निपट रहे हैं. मैंने इन तनातनी में कोई एक जैसा प्रारूप नहीं देखा.’
उन्होंने कहा, ‘वास्तव में, आपको पता चल रहा है कि सामना कहां हुआ है … रोज हम (भारतीय और चीनी सैनिक) 10 अलग-अलग स्थानों पर मिल रहे हैं जो बिल्कुल सामान्य रूप से हो रहा है. यह केवल एक या दो स्थानों पर है जहां ऐसा हुआ है. और यह समय-समय पर होता है. यह तब भी होता है जब जमीन पर कमांडरों का परिवर्तन होता है.’
उन्होंने कहा, ‘एक नया कमांडर दिखाना चाहता है कि वह दूसरों से अलग है. फेस-ऑफ क्यों होता है, इस पर बहुत सारी गतिशीलता है. अचानक, एक ऐसी जगह पर, जहां सब कुछ सामान्य रूप से पहले जैसा था.’
गुरुवार को अपने बयान में, सेना प्रमुख ने कहा था कि दोनों पक्षों द्वारा ‘आक्रामक व्यवहार’ के परिणामस्वरूप सैनिकों को ‘मामूली चोट’ लगी है.
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दो मोर्चों पर युद्ध की बात पर उन्होंने कहा कि यह एक संभावना है और देश को ऐसे परिदृश्य का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिए.
नरवणे ने कहा कि भारत को अपनी उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर दोहरे मोर्चे पर युद्ध के परिदृश्य को लेकर तैयार रहना होगा लेकिन कहा कि वह हर झड़प के इस स्थिति में बदलने की संभावना नहीं देखते.
उन्होंने कहा, ‘यह एक संभावना है. ऐसा नहीं है कि हर बार ऐसा होने जा रहा है. हमें जो भी आपदाएं, विभिन्न परिदृश्य सामने आ सकते हैं उन्हें लेकर सतर्क रहना होगा.’
जनरल नरवणे ने कहा, ‘लेकिन यह मान लेना कि सभी मामलों में दोनों मोर्चे 100 प्रतिशत सक्रिय हो जाएंगे, मुझे लगता है कि यह कल्पना करना सही नहीं होगा. दो मोर्चों पर युद्ध से निपटने की जहां तक बात है तो इसमें हमेशा एक प्राथमिकता वाला मोर्चा होगा और दूसरा कम प्राथमिकता वाला. हम दो मोर्चों पर खतरे से निपटने को इस तरह से देखते हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा और स्नेहेश एलेक्स फिलिप के इनपुट के साथ)