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Friday, 22 November, 2024
होमएजुकेशनज़ूम, गूगल पहुंच से बाहर, दिल्ली में गरीब छात्रों के लिए व्हाट्सएप या कोई क्लास नहीं

ज़ूम, गूगल पहुंच से बाहर, दिल्ली में गरीब छात्रों के लिए व्हाट्सएप या कोई क्लास नहीं

सरकारी और कम बजट के निजी स्कूलों में जाने वाले छात्र ऑनलाइन कक्षाओं के लिए संघर्ष करते हैं, जबकि शिक्षक कहते हैं कि स्कूलों से संसाधनों की कमी के कारण बड़े वीडियो एप्लिकेशन का उपयोग नहीं किया जा सकता है.

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नई दिल्ली: जब नरेंद्र मोदी सरकार ने अप्रैल के पहले सप्ताह में ऑनलाइन मोड से नए शैक्षणिक सत्र 2020-21 को शुरू करने का फैसला किया, तो दिल्ली के कई स्कूल ज़ूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम और गूगल मीट जैसे उभरते वीडियो कॉलिंग ऍप की तरफ रुख करने का निर्णय लिया लेकिन यह बदलाव सभी के लिए आसान नहीं है.

चूंकि स्मार्टफोन ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सशर्त बन गए हैं, समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के छात्र जो राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी और कम बजट वाले निजी स्कूलों में जाते हैं, वे इस तरीके से पढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

उनके माता-पिता ज़ूम क्लासेस जैसे शब्दों से अपरिचित हैं, वीडियो कॉल अधिकांश के लिए बहुत दूर की बाद है. इसके परिणाम स्वरूप, उनके पास एकमात्र विकल्प लोकप्रिय मैसेजिंग व्हाट्सएप है, जो वीडियो कॉल और वॉयस नोट की अनुमति देता है.

शिक्षक जूम या माइक्रोसॉफ्ट टीम जैसे हैवी डेटा वीडियो ऐप्स के बारे में भी शिकायत करते हैं, कहते हैं कि वे स्कूलों से संसाधनों की कमी के लिए उनका उपयोग नहीं कर सकते.

जैसा कि लॉकडाउन अपने चौथे चरण में प्रवेश करने के लिए तैयार है और अनिश्चितता बनी हुई है कि क्या छात्र स्कूलों में जा पाएंगे, दिप्रिंट ने आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के अभिवावकों और शिक्षकों से बात की कि वे ऑनलाइन शिक्षा का प्रबंधन कैसे कर रहे हैं.

बच्चे व्हाट्सएप से कैसे निपट रहे हैं

दिल्ली में छात्रों के लिए दिन की शुरुआत उनके शिक्षकों द्वारा भेजे गए वॉयस नोट्स के बाद होती है, इसके बाद या तो वीडियो क्लिप या पाठ के चित्र आतें है, जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता है, कक्षाएं कम डेटा खपत वाले वॉयस नोट्स के माध्यम से आगे बढ़ती हैं.

बच्चे शिक्षक को यह बताते हुए वॉयस नोट्स भेजते हैं कि उन्होंने विषय कितना समझ आया या नहीं या उन्हें सूचित करते हैं कि उन्होंने अपना होमवर्क पूरा कर लिया है.

दक्षिणी दिल्ली के आदर्श पब्लिक स्कूल में कक्षा 4 के छात्र शुभो जाना ने कहा, ‘हमारे शिक्षक सुबह हमें वॉयस नोट भेजते हैं, ताकि हम यह बता सकें कि हम दिन में कौन सा पाठ पढ़ेंगे. वह इसे समझाने के लिए कुछ वीडियो भेजती हैं और हमें पाठ पढ़ने के लिए कहती हैं. हमें उन्हें बताना होता है कि क्या हम एक छोटे से वीडियो के माध्यम से इसे समझ गए हैं.’

‘शुरू में जब कक्षाएं शुरू हुईं तो मुझे पढ़ाई करने में कठिनाई हुई क्योंकि मैंने पहले कभी इस तरह की पढ़ाई नहीं की थी लेकिन अब मुझे इसकी आदत हो गयी है. अगर मुझे कुछ समझ में नहीं आता है, तो मैं इसे नोट करता हूं और शिक्षक से अलग से पूछता हूं. मैं ट्यूशन कक्षाओं के शुरू होने का इंतजार कर रहा हूं ताकि मैं अपनी शंकाओं को दूर कर सकूं.

शिक्षकों के साथ प्रत्यक्ष बातचीत की अनुपस्थिति में, ये छात्र अब ट्यूशन कक्षाओं या स्कूलों को फिर से खोलने के लिए इंतजार कर रहे हैं ताकि वे ठीक से अध्ययन कर सकें और अपनी शंकाओं को दूर कर सकें.

सरकार द्वारा संचालित सर्वोदय कन्या विद्यालय में पढ़ने वाली कक्षा 8 की छात्रा सपना ने कहा, ‘मैं अपनी ट्यूशन कक्षाओं के फिर से शुरू होने की प्रतीक्षा कर रही हूं ताकि मैं अपनी शंकाओं को दूर कर सकूं. व्हाट्सएप के जरिए सीखना ज्यादा मददगार नहीं है. कई चीजें हैं जो मुझे समझ में नहीं आती हैं, खासकर मैथ्स में.

माता-पिता ऑनलाइन मोड और समायोजन तक कैसे पहुंच रहे हैं

माता-पिता को लगता है कि शिक्षा का यह ऑनलाइन तरीका पारंपरिक कक्षा शिक्षण से इसका कोई मुकाबला नहीं है क्योंकि उनके बच्चे कई विषयों में पिछड़ रहे हैं. हालांकि, वे अभी तक शिकायत नहीं कर रहे हैं क्योंकि या तो व्हाट्सएप क्लास हो रही हैं या तो कोई क्लास नहीं.

शुभो की मां मधुमिता जान ने कहा, ‘जब अप्रैल में कक्षाएं शुरू हुईं तो हमें पाठ पूरा करने के तरीकों का पता लगाने में परेशानी हुई.

मधुमिता ने कहा, ‘शिक्षक सिर्फ एक वॉयस नोट और कुछ क्लिप भेजते हैं और शेष पाठ छात्रों को अपने दम पर करना पड़ता है, मेरा बेटा युवा है और उसे मदद की ज़रूरत है. ज्यादातर समय उसकी पढ़ाई में मदद करने में चला गया. अब जब एक महीने से अधिक समय बीत चुका है, तो चीजें सुलझ गयी हैं.’

सब तक पहुंच की समस्या को लेकर सरकार मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित स्वयं प्रभा टीवी चैनलों पर विभिन्न स्तरों के लिए शैक्षिक सामग्री की पेशकश हो रही है – 32 डीटीएच चैनलों का एक समूह जो ‘उच्च-गुणवत्ता वाले’ शैक्षिक कार्यक्रमों को वितरित करते हुए 24 घंटे सातों दिन चलाते हैं.

हालांकि, कुछ माता-पिता ने कहा कि उन्हें इन चैनलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जबकि अन्य का दावा है कि वे मददगार नहीं हैं.

मधुमिता ने कहा, ‘मुझे टीवी के माध्यम से प्रसारित होने वाले किसी भी पाठ के बारे में जानकारी नहीं है. मेरा बेटा केवल अपने व्हाट्सएप के माध्यम से अध्ययन कर रहा है.’

दक्षिणी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जाने वाली तीन बच्चों की मां किरण देवी ने कहा, ‘मेरी बेटी ने कुछ चैनलों पर टीवी के पाठ देखे हैं, लेकिन उसने कहा कि वे मददगार नहीं क्योंकि वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या सिखाया जा रहा है.’

किरण देबी और उनके बच्चे, जो कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। फोटो: मनीषा मोंडल/ दिप्रिंट

शिक्षक क्या कहते हैं

दक्षिणी दिल्ली के एक निजी स्कूल में शिक्षिका अंजलि सिंह ने कहा, ‘हमारे पास छात्रों को वॉयस नोट और व्हाट्सएप संदेश भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं. वीडियो कॉल में बहुत अधिक इंटरनेट डेटा का इस्तेमाल होता है और स्कूल हमें ऐसा करने के लिए भुगतान नहीं करता है. जहां भी परेशानी हो, छात्र हमेशा हमें एक फोन कॉल पर पूछ सकते हैं.’

गाजियाबाद की एक अन्य स्कूल शिक्षिका ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि उनका स्कूल स्पष्ट निर्देश या ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने के लिए संसाधन नहीं देता है. उन्होंने कहा ‘मेरा स्कूल ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं कराता है, इसलिए व्हाट्सएप एकमात्र विकल्प है जो मेरे और अन्य शिक्षकों के पास बचा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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