लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2018 में इलाहाबाद शहर का नाम ‘प्रयागराज’ कर दिया था जिसके बाद से ‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी’ का नाम बदले जाने की मांग भी उठने लगी थी. इस बीच पिछले दिनों एमएचआरडी (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) की ओर से विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल (कार्यपरिषद) को पत्र लिख कर राय मांगी गई थी. इसके जवाब ने काउंसिल के 15 में से 12 सदस्यों ने नाम बदलने को लेकर इंकार कर दिया है. जबकि तीन ने कोई जवाब ही नहीं दिया है.
दिप्रिंट से बातचीत में यूनिवर्सिटी के पीआरओ शैलेंद्र मिश्र ने बताया कि एमएचआरडी की ओर से इस प्रस्ताव पर एग्जीक्यूटिव काउंसिल की राय मांगी गई थी जिस पर 15 में से 12 सदस्यों के ही जवाब आए जिनका साफ कहना था कि यूनिवर्सिटी का नाम न बदला जाए. इससे पहले मुख्य सचिव व प्रयागराज कमिश्नर की ओर से भी विश्वविद्यालय को पत्र प्राप्त हुए थे जिसमें नाम बदलने से संबंधित सुझाव थे.
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भाजपा सांसद लंबे समय से विश्वविद्यालय का नाम बदले जाने को लेकर संसद में अभियान चला रखा है. इनमें प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद केशरी देवी पटेल और कौशांबी के सांसद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का नाम बदलने की मांग कर रहे हैं. केशरी देवी ने पिछले साल संसद में भी ये मुद्दा उठाया था. वहीं कौशांबी के सांसद विनोद सोनकर ने यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय का नाम ‘प्रयागराज विश्वविद्यालय’ किए जाने का प्रस्ताव रखा था.
पीआरओ शैलेंद्र मिश्रा ने बताया, ‘एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक मार्च में प्रस्तावित थी जो कि लॉकडाउन के कारण टल गई थी जिसमें इस मुद्दे पर भी चर्चा होनी थी. ऐसे में ई-मेल के जरिए सभी सदस्यों से बीते सोमवार को जवाब मांगे गए. वहीं ये ईमेल एमएचआरडी को भी भेज दिया गया.’
जब हाईकोर्ट का नाम नहीं बदला तो यूनिवर्सिटी क्यों
दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों ने नाम न बदलने के प्रस्ताव को लेकर तीन अहम कारण गिनाए. पहला कारण ये था कि कुछ सदस्यों का मानना था कि जब मद्रास यूनिवर्सिटी और कलकत्ता यूनिवर्सिटी का नाम शहर का नाम बदलने पर नहीं बदला गया तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का क्यों बदला जाए.
वहीं दूसरा तर्क ये था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का नाम भी अभी तक नहीं बदला गया है तो कैसे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का बदल दिया जाए.
वहीं तीसरा और सबसे अहम कारण था कि नाम बदलने के प्रोसेस में डॉक्यूमेंट्स से जुड़ा काफी काम होता है जो कि आसान नहीं है. मार्कशीट, डिग्री आदि में नाम बदलना बहुत मुश्किल है.
दिप्रिंट से बातचीत में यूनिवर्सिटी के एक शिक्षक ने कहा, ‘यहां के पूर्व छात्र विदेश में पढ़ते या नौकरी करते हैं उन्हें दिक्कत आ सकती है. खासतौर पर डाॅक्यूमेंट वेरिफिकेशन से जुड़े मसलों में कई बार दिक्कतें आती हैं. ऐसे में पुराना नाम रहना ही बेहतर है.’
कई पूर्व छात्र विरोध में
विश्वविद्यालय के कई पूर्व छात्रों ने भी नाम बदलने जाने के प्रस्ताव का विरोध किया है. इसके लिए सोशल मीडिया पर एक कैंपेन भी चलाया जा रहा है जिसमें ये पूर्व छात्र नाम न बदलने की अपील कर रहे हैं.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष व समाजवादी पार्टी की नेता ऋचा सिंह का कहना है कि दुनियाभर में इस विश्वविद्यालय की पहचान इसके नाम से है. ये सिर्फ नाम ही नहीं बल्कि सदियों को समेटे हुए एक गौरव चिन्ह है. हम एग्जीक्यूटिव काउंसिल का धन्यवाद देते हैं जिन्होंने इस नाम बदलने के प्रस्ताव को इंकार कर दिया है. इसे पूरे यूनिवर्सिटी में अव्यवस्था फैलने का डर था.
अक्टूबर 2018 में इलाहाबाद शहर का नाम प्रयागराज करने की घोषणा योगी सरकार ने की थी. इसके के बाद फरवरी 2020 में इलाहाबाद रेलवे जंक्शन का नाम भी प्रयागराज जंक्शन कर दिया गया था.