गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के बाद देशव्यापी लॉकडाउन को 17 मई तक बढ़ा दिया गया है. इसे लॉकडाउन 3.0 कहा जा रहा है. पहले के दो चरणों के लॉकडाउन की तुलना में तीसरा चरण कुछ मामलों में अलग है. तीसरे चरण में जिलों के रिस्क प्रोफाइलिंग के आधार पर कुछ क्षेत्रों को सशर्त छूट दी गयी है. मसलन ग्रीन जोन जिलों को यातायात, बाजार सहित कुछ सेवाओं के लिए तय निर्देशों के तहत शुरू करने की अनुमति मिली है. वहीं येलो जोन में भी कुछ छूट मिली है.
फिलहाल देश के 733 जिलों में से 130 जिले रेड जोन, 284 जिले येलो जोन तथा 319 ग्रीन जोन में हैं. हालांकि रेल व हवाई यात्रा, मॉल, होटल, रेस्टोरेंट आदि को लेकर किसी भी जोन में किसी प्रकार की कोई छूट 17 मई तक के लिए नहीं है. लॉकडाउन की वर्तमान स्थिति में देश के 17 फीसद जिलों में रेड जोन की पाबंदियां बरकार रहेंगी. वहीं 38 फीसद जिले येलो जोन को मिले छूट वाले होंगे. देश के 43 फीसद ग्रीन जोन जिलों में स्थानीय यातायात, सरकारी कामकाज, चयनित दुकानों तथा श्रम व मजदूरी से जुड़े कार्यों को सशर्त छूट मिली है. कहने का आशय यह है कि देश के बड़े हिस्से के लिए शर्तों के साथ लॉकडाउन में छूट देने का प्रयास सरकार द्वारा किया गया है. हालांकि इसमें राज्यों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी.
लॉकडाउन 3.0 से यह शुरूआती संकेत मिलते हैं कि सरकार ने ‘संपूर्ण देशबंदी’ जैसी स्थिति से निकलने की कारगर राह तलाशनी शुरू कर दी है. साथ ही सरकार की नजर उन जगहों पर भी केंद्रित है, जहां कोरोनावायरस का खतरा अधिक संभावित है. निस्संदेह गत डेढ़ महीने में मोदी सरकार के निर्णयों से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अच्छी सफलता हासिल हुई है. लॉकडाउन का निर्णय सही साबित होता दिख रहा है.
चूंकि विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई लंबी है. कई मामलों में इसे वर्षों तक मानव जीवन को प्रभावित करने वाला माना जा रहा है. ऐसे में विश्लेषण के लिहाज से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संपूर्ण लॉकडाउन का निर्णय दो कारणों से असर कारक कहा जा सकता है. पहला यह कि सरकार ने संपूर्ण लॉकडाउन करके ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ की स्थिति से देश को अभी तक बचाने में कामयाबी हासिल की है. दूसरा यह कि भविष्य में खड़ी होने वाली चुनौतियों के लिए सरकार ने नेशनल हेल्थ सिस्टम के स्तर पर तैयारी कर ली है. ऐसा कहने के पीछे कुछ ठोस आधार हैं.
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आंकड़ों से जाहिर होता है कि यदि दो चरणों का लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो देश में कोरोना संक्रमण की तस्वीर कुछ और होती. 24 मार्च को भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों के बढ़ने की रफ़्तार 21.6 फीसद थी, जो अब 10 फीसद से नीचे आ चुकी है. आंकड़े बताते हैं कि यदि लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो आज भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 2 लाख से अधिक होती.
पिछले दो चरणों के लॉकडाउन की बड़ी सफलता यह भी रही कि देश कोरोना के ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ की विभीषिका से बचते हुए कोविड टेस्ट की संख्या बढाने में सफल रहा. जर्मनी के बाद भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसने 1,000 कोरोना संक्रमितों की मौत तक 7 लाख से अधिक टेस्ट कर पाया है. एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ अमेरिका में जिस दिन 1,000 कोविड संक्रमितों की मौतें हुई थीं, उस दिन वह 5,59,468 टेस्ट कर पाया था. वहीं भारत ने इस स्तर तक पहुंचने तक 7 लाख 70 हजार से अधिक टेस्ट किये हैं. दूसरे देशों की तुलना में भारत की इस सफलता के पीछे बड़ा कारण लॉकडाउन सही समय पर लागू होना है. शुरूआती दिनों में भले ही टेस्ट की संख्या कम रही, लेकिन भारत ने जल्दी ही टेस्ट की गति को तेज कर लिया है. 1 मई की सुबह तक भारत ने कुल 9 लाख से अधिक टेस्ट किये हैं. इस दौरान देश में 304 सरकारी लैब तथा 105 प्राइवेट लैब बनकर भी तैयार हुए हैं.
गौर करने लायक तथ्य है कि 1 मई तक भारत में 100 से कम कोरोना संक्रमित मरीजों को वेंटिलेटर, 500 से कम कोरोना संक्रमितों को ऑक्सीजन सपोर्ट तथा 800 से कम कोरोना मरीजों को आईसीयू की जरूरत पड़ी है. इस लिहाज से देखें तो सरकार ने इसको लेकर पर्याप्त तैयारियां की हैं. गत 22 अप्रैल तक ही देश में 724 कोविड अस्पताल, 12 हजार से अधिक वेंटिलेटर, 24 हजार आईसीयू बनाने में सरकार कामयाब हो चुकी थी. निश्चित ही इस संख्या में अबतक पर्याप्त इजाफा हुआ होगा. अगर पहले दो चरणों का लॉकडाउन नहीं होता तो कोरोना संक्रमितों की तुलना में इतनी पर्याप्त तैयारियां शायद संभव नहीं हो पाती.
सही समय पर सही कदम उठाने का एक लाभ यह भी हुआ कि भारत ने कोविड के इलाज के अनुकूल अपने चिकित्सा संसाधनों को चिह्नित कर लिया. यही कारण है कि भारत में कोविड मृत्यु दर 4 फीसद के आसपास है, जबकि रिकवरी का अनुपात 25 फीसद से अधिक है. यह अनुपात गत 10 अप्रैल के बाद से लगतार बढ़ा है.
अब जब 17 मई तक के लिए लॉकडाउन 3.0 घोषित हो गया है तो भावी स्थिति का आकलन किया जाना स्वाभाविक है. कोविड प्रभाव के आधार पर देश के क्षेत्रों को जोन में विभाजित करने का एक लाभ यह नजर आता है कि सरकार कोरोना के खिलाफ लड़ाई और जनजीवन की सहूलियत, दोनों पर ध्यान दे सकेगी. सरकार के सामने देश की स्थिति की स्पष्ट तस्वीरें होगी. एक तस्वीर वह, जहां उसे कोरोना मुक्ति को प्राथमिकता देनी है तथा दूसरी तस्वीर वो जहां जनसहूलियत के अन्य विषयों को पटरी पर लाने के लिए ध्यान देना होगा. ऐसे में देश के ग्रीन जोन वाले 319 जिलों में उपलब्ध प्रशासनिक व सामजिक संसाधनों का उपयोग करके धीरे-धीरे स्थिति को सामान्य करने के प्रयास जल्दी शुरू किये जा सकते हैं. साथ ही रेड जोन वाले क्षेत्रों में प्रशासनिक व सामजिक संसाधनों का उपयोग वायरस से मुक्ति की दिशा में और अधिक तीव्रता से संभव हो सकेगा. कहना गलत नहीं होगा कि मोदी सरकार ने राज्यों से संवाद करते हुए स्पष्ट दृष्टि के साथ इस स्थिति से निपटने की नीति तैयार की है.
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विपक्ष चाहें जो भी दलीलें दे लेकिन तथ्यों व आंकड़ों की कसौटी पर कोविड के खिलाफ लड़ाई में प्रधानमंत्री मोदी के निर्णय खरे साबित हो रहे हैं. अनेक बार मोदी ने इंटरव्यू के दौरान कहा है कि उन्हें समझने में विरोधी चूक कर जाते हैं. शायद इसबार भी लॉकडाउन को लेकर सवाल खड़े करने वाले चूक ही कर रहे हैं.
(लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो तथा ब्लूम्सबरी से प्रकाशित गृहमंत्री अमित शाह की राजनीतिक जीवनी ‘अमित शाह एंड द मार्च ऑफ़ बीजेपी’ के लेखक हैं. यह उनके निजी विचार हैं)
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