नई दिल्ली: कोविड-19 संकट के बाद बेरोजगारी की संख्या में भारी वृद्धि को देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को एक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के प्रस्ताव पर काम कर रही है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
श्रम मंत्रालय स्वास्थ्य बीमा, सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) के लाभ, घरेलू मदद करने वाले लोगों, गार्ड, टैक्सी चालक, रिक्शा चालक और ठेका मजदूरों के रूप में काम करने वाले लोगों, जो किसी भी कवर के तहत नहीं आते हैं. इन लोगों को नकद प्रोत्साहन देने के लिए न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने पर चर्चा कर रहा है.
संसद के बजट सत्र में कटौती के कारण सरकार लेबर कोड बिल को नहीं ला सकी, जिसमें असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को एक सुरक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन, श्रम मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार अब अध्यादेश ला सकती है या इस उद्देश्य के लिए मौजूदा ढांचे का उपयोग कर सकती है.
इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के श्रमिक सहयोगी भारतीय मजदूर संघ ने सरकार से प्रवासी श्रमिकों पर एक नई राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए कहा है.
बीएमएस के अध्यक्ष साजी नारायणन ने दिप्रिंट को बताया, ‘मौजूदा कानून असंगठित प्रवासी श्रमिकों की मदद नहीं कर रहे हैं. कई राज्य के कानून पुराने हैं. हमने प्रवासी श्रमिकों पर एक नई राष्ट्रीय नीति के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध किया है.
‘प्रवासी श्रमिकों की पहचान के लिए नीतिगत ढांचा और एक राष्ट्रीय पहचान पत्र होना चाहिए. आईडी कार्ड पोर्टेबल होना चाहिए, क्योंकि श्रमिक काम के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं, ताकि अन्य राज्यों में लाभ जारी रहे.
जब से कोविड-19 का प्रकोप शुरू हुआ था और इसके प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन को लागू किया गया था, तब से लगभग 24 लाख प्रवासी श्रमिक राज्य द्वारा संचालित राहत शिविरों में रह रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अप्रैल के पहले सप्ताह में उच्चतम न्यायालय को सौंपे गए आंकड़ों के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अतिरिक्त 54 लाख श्रमिकों को भोजन उपलब्ध कराया गया है, जबकि गैर-सरकारी संगठनों ने 30 लाख से अधिक श्रमिकों को भोजन दिया है.
लॉकडाउन के कारण कई करोड़ श्रमिक बेरोजगार हैं और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि हर कोई रोजगार की श्रृंखला में वापस आ जाएगा. सरकार को बेहतर नीतिगत ढांचे के लिए इस संकट से सबक लेना चाहिए.’
मैपिंग शुरू हो गई है
श्रम मंत्रालय के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ‘चर्चा के तहत प्रस्ताव अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए है, जो कई राज्यों में फंसे हुए हैं. उनको इंसेंटिव देने कि बात एडवांस स्तर पर है.’
अधिकारी ने कहा, ‘यह श्रमिकों के लिए वित्त मंत्रालय के क्षेत्रीय पैकेज के अंतर्गत आ सकता है. यह सभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और मजदूरों को कवर करेगा.’
अधिकारी ने यह भी कहा कि यह अध्यादेश विचाराधीन विकल्पों में से एक है. उन्होंने कहा, ‘विकल्पों में से एक है अध्यादेश लाना है और दूसरा मौजूदा ढांचे के माध्यम से प्रोत्साहन देना है. उन्होंने कहा, वित्त मंत्रालय और सरकार ने पिछले दो सप्ताह में कई दौर की चर्चा की है और इस मुद्दे पर सक्रिय विचार चल रहा है.’
अधिकारी ने कहा कि श्रम मंत्रालय ने अप्रैल के पहले सप्ताह से राज्यों में फंसे प्रवासी श्रमिकों की मैपिंग शुरू कर दी है – 20 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों के नाम, पते, आधार संख्या और बैंक खाते का विवरण अब तक एकत्र किया गया है, जबकि कुछ राज्यों का जवाब आना बाकी हैं.
उन्होंने कहा, घरेलू श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, रिक्शा चालकों और ऑटोरिक्शा चालकों का डेटा भी एकत्र किया जा रहा है. राज्य राहत दे रहे हैं और अधिक केंद्रीय प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है.
संसदीय समिति की सिफारिश
श्रम संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने फरवरी में सिफारिश की थी कि असंगठित प्रवासी मजदूरों को श्रम संहिता विधेयक का हिस्सा होना चाहिए और अंतर्राज्यीय प्रवासी मजदूरों को संगठित क्षेत्र के मजदूरों की तरह ही सामाजिक सुरक्षा का लाभ दिया जाना चाहिए.
मूल बिल में कहा गया है कि कोड केंद्र और राज्य सरकारों के अनुबंध श्रमिकों पर लागू नहीं होगा. हालांकि, समिति ने लगभग 50 करोड़ असंगठित श्रमिकों को कवर करने की सिफारिश की है.
बीजू जनता दल के लोकसभा सांसद और श्रम संबंधी संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार पर है कि वह अध्यादेश लाये या संसद के मानसून सत्र की प्रतीक्षा करे.
उन्होंने कहा, ‘हमने संगठित श्रमिकों की तरह ही सामाजिक सुरक्षा के तहत प्रवासी श्रमिकों को शामिल करने की सिफारिश की है. हमने सरकार से राज्य सरकारों और श्रम आयुक्तों के माध्यम से असंगठित श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए कहा है. सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा पहचान और पंजीकरण है. महताब ने कहा कि श्रमिक कुछ एजेंसी के माध्यम से शहरों में आते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यह सरकार को तय करना है कि वह अध्यादेश लाए या मानसून सत्र का इंतजार करे. श्रमिकों की मदद करने की तत्काल आवश्यकता है.’
बीजेडी सांसद ने एमएसएमई और असंगठित क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय पैकेज की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा, ‘कोरोनवायरस ने दिखाया है कि शहर ग्रामीण भारत पर बोझ हैं और शहर-विशिष्ट प्रशासन और प्रवासियों और अन्य नागरिकों के बेहतर भविष्य के लिए योजना की आवश्यकता है. राज्यों और केंद्र में सत्ता के अति-केंद्रीकरण से नागरिकों को लंबे समय तक मदद नहीं मिल रही है.
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