देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है. सरकार हर संभव प्रयास कर रही है कि इस युद्ध में सभी मिलकर लड़ें. क्योंकि सामूहिक प्रयास और एकजुटता से ही इस लड़ाई को जीता जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सभी प्रकार की एकजुटता लाने के प्रयास लगातार किए हैं. इस लड़ाई में आम जनमानस का जो सहयोग मिल रहा है. वह भी अभूतपूर्व है. एक सर्व समावेशी सरकार के मानकों पर इस समय नरेंद्र मोदी सरकार को परखें तो वह शत प्रतिशत खरी उतरी है.
इस लड़ाई में सरकार के प्रयासों, सबकी सहभागिता और सहयोग से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसी के परिणामस्वरूप वैश्विक पटल पर भारत की सराहना हो रही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में राजनीतिक तौर पर एक पहलू उभरकर सामने आया है. जैसे-जैसे केंद्र सरकार फैसले लेती जा रही है और उसको सराहा जाने लगा है.
कांग्रेस इसे पचा नहीं कर पा रही है. लिहाज़ा आज कांग्रेस इस लड़ाई में राजनीतिक हथकंडे अपनाने लगी है. जो लड़ाई सभी राजनीतिक दलों को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को त्याग कर राष्ट्र की महत्वाकांक्षा के आधार पर लड़ना चाहिए, अब कांग्रेस अपने राजनीतिक स्वार्थों को प्रमुखता देने लगी है. इस संकट से सबको साथ मिलकर लड़ना चाहिए दुर्भाग्य से कांग्रेस अपने राजनीतिक हितों के लिए इस अदृश्य युद्ध को कमजोर करने पर अमादा है. विगत दिनों राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेस करके लॉकडाउन को समस्या का हल नहीं माना, बल्कि इस एक पॉज बटन की संज्ञा दी. अब यहां दो बातें निकलकर आती हैं पहला, जब ये समस्या का हल नहीं है फिर कांग्रेस शासित राज्यों ने केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन बढ़ाने के निर्णय का विरोध करने की बजाय पहले ही अपने राज्य में लॉकडाउन की अवधि क्यों बढ़ा दी ? कोविड-19 की इस लड़ाई में कांग्रेस के सभी नेताओं में घोर विरोधाभास देखने को भी मिल रहा है.
ज्ञातव्य हो कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.चिदंबरम ने लॉकडाउन बढ़ाने के निर्णय का खुलकर स्वागत किया था. कांग्रेस अपने सोशल मीडिया हैंडल से लगातार सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस स्पष्ट रूप से यह कह रही है कि नरेंद्र मोदी ने देश की जनता पर लॉकडाउन को थोपा है. क्या यह सहीं नही है कि लॉकडाउन से पहले नए केस की औसत ग्रोथ रेट 35 प्रतिशत थी जो घटकर 15 प्रतिशत तक आ गई है. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अगर लॉकडाउन को सफलतापूर्वक लागू नहीं किया जाता तो, भारत में 15 अप्रैल तक आठ लाख से जायदा लोग इस महामारी की गिरफ्त में होते जो आज महज 21 हजार के आसपास हैं.
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भारत में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या का औसत भी क्रमशः बढ़ता जा रहा है. इस आंकड़े में सुधार होना भारत के लिए अच्छा बात है आज लगभग 20 प्रतिशत लोग इस बिमारी से लड़कर जीत रहे हैं. एक और सवाल जांच क्षमता को लेकर उठाया जा रहा है. गौरतलब है कि आज हमारे पास 287 जांच लैब हैं, पांच लाख के करीब हमने टेस्ट किए हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अगले माह तक हमारी जांच क्षमता एक लाख तक पहुंच जाएगी. लॉकडाउन में गरीब, मजदूरों को कोई तकलीफ न आए, भारत का कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए इस उद्देश्य से केंद्र सरकार काम कर रही है.
सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन को समझे बगैर कांग्रेस द्वारा की जा रही आलोचना इसी बात की तरफ इशारा करता है कि राहुल ने कोरोना से लड़ने के लिए एकजुट होने की जो बात कही थी. वह महज एक राजनीतिक पाखंड था. जहां तक गरीबों और किसानों का सवाल है सरकार हर संभव गरीबों तक पहुंच रही है. किसानों-मजदूरों के हक का पैसा बगैर बिचौलियों के उनके खाते में पहुंच रहा है. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण और उज्ज्वला योजना के तहत राशन और सिलेंडर मुफ्त में मिल रहा है किसानों के खाते में किसान सम्मान निधि योजन के अंतर्गत 8.89 करोड़ परिवारों को 17,793 करोड़ रूपये भेजा जा चुका है.
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत 33 करोड़ लोगों को 31,235 करोड़ की वित्तीय मदद की जा चुकी है. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस का यह चरित्र रहा है, जब भी देश पर संकट आया है वह इस संकट से लड़ने की बजाय एक नकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने लग जाती है. याद करिये जब उरी अथवा पुलवामा हमला हुआ कांग्रेस ने समय की नजाकत हो समझते हुए भी आतंकियों पर हमलावर होने से पहले सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया था. जब सर्जिकल अथवा एयरस्ट्राइक हुआ समूचे देश में मोदी सरकार की वाहवाही होने लगी, जिससे कांग्रेस बेहद परेशान होने लगी अंत में कांग्रेस के रणनीतिकारों ने सेना के सौर्य और पराक्रम पर संदेह जताते हुए स्ट्राइक के सुबूत मांगने लगे. इसमें कोई संशय नहीं कि विपक्षी दल होने के नाते सरकार की नीतिगत आलोचना करना लोकतंत्र के लिए सुखद है, पंरतु संकट के समय सहयोग की बजाय सरकार की टांग खींचना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.
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अब सवाल यह उठता है इसके पीछे की मंशा क्या होती है ? दरअसल कांग्रेस इन आलोचना के जरिये यह प्रदर्शित करना चाहती है कि नरेंद्र मोदी सरकार पूरी तरह विफल है और कोई ऐसा कार्य नहीं कर रही है जो जनहित में हो. इन सबका लब्बोलुआब यही होता है कि मृतप्राय अवस्था में पड़ी कांग्रेस को लेकर जनता में भरोसा पैदा हो और उसे संजीविनी मिल जाए. दुर्भाग्य से कांग्रेस के ये पैतरे हमेशा जनभवनाओं के प्रतिकूल होते हैं, जिसका दुष्परिणाम कांग्रेस को ही भुगतना पड़ता है. आश्चर्य होता है कि कांग्रेस के रणनीतिकार जनभावनाओं की उपेक्षा बार-बार करते आ रहे हैं और हरबार उन्हें उनकी ही रणनीति ने परस्त किया है. इन सब के बावजूद वह सबक लेने को तैयार नहीं है और कोरोना संकटकाल में भी वही गलती दुहरा रहे हैं.
वैश्विक पटल पर भारत की हो रही सराहना
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोविड-19 से लड़ने की नीतियों कि प्रशंसा विश्व भर में हो रही है. अमेरिका की रिसर्च कम्पनी मॉर्निंग कंसल्ट पॉलिटिकल इंटेलीजेंस ने विश्व भर में किए अपने सर्वे में पाया है कि कोरोना के खिलाफ इस युद्ध में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 68 अंको के साथ पहले नम्बर पर हैं. ज्ञातव्य हो कि यह सर्वे विश्वभर के नेताओं द्वारा कोरोना के संकटकाल में कार्य करने की क्षमता एवं लोगों के भरोसे को ध्यान में रखकर किया गया है. इसी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मोदी सरकार द्वारा गरीब एवं जरूरतमंदों के हित में लिए जा रहे निर्णयों के साथ लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने का भी स्वागत किया है. सरकार द्वारा 1.70 लाख करोड़ का वित्तीय पैकेज एवं आरबीआई द्वारा लिए गए नीतिगत फैसलों पर आइएमएफ ने भी केंद्र सरकार की सराहना की है. बुधवार को माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्टी लिखकर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णयों की भरपूर सराहना की है.
लॉकडाउन में सभी को कुछ न कुछ समस्याओं का समाना करना पड़ रहा है. किन्तु हमारे जीवन को सुरक्षित रखने के लिए ही सरकार ने यह निर्णय लिया है. सरकार के प्रयासों की सराहना वैश्विक स्तर पर होने के बावजूद कांग्रेस द्वारा इस कठिन चुनौती काल में सरकार को नाकाम कहना और राजनीतिक बयानबाज़ी करना छिछली राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण है. अगर समय रहते कांग्रेस ने सबक नहीं लिया तो उसे सर्जिकल स्ट्राइक,पठानकोट हमले पर बयानबाज़ी के जो दुष्परिणाम भुगतने पड़े थे, शायद उससे भी अधिक खामियाजा कांग्रेस को अब भुगतना पड़े.
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं)
पूरी तरह पक्षपातपूर्ण नज़रिया, लेखक कहाँ के रीसर्च associate हैं सबकुछ माजरा समझ आ जाता हैं