देश लॉकडाउन में है. लॉकडाउन निज़ाम कायम है. यह व्यवस्था कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए देश में पहली बार ईजाद हुई है. लिहाजा, इसकी कानूनी परिभाषा नहीं है. इसे संसद की मंजूरी नहीं है और यह संविधान का हिस्सा भी नहीं है. इस ‘लॉकडाउन व्यवस्था’ में आपकी कोई भी गतिविधि गुनाह में शामिल हो सकती है और उसकी सजा पुलिस कुछ भी तय कर सकती है.
ये गुनाह और सजाएं उन मामलों से अलग हैं जो देशभर में ‘कोरोना अपराधियों’ के खिलाफ दर्ज किए जा चुके हैं. अकेले उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन ‘तोड़ने’ वाले अपराधियों से 6 करोड़ रुपये जुर्माना वसूला जा चुका है. राज्य के अपने टि्वटर हैंडल के अनुसार, अब 48 हजार से ज्यादा लोगों के खिलाफ 15 हजार से अधिक एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं.
बड़ी संख्या में उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मामले तो दर्ज नहीं किए गए लेकिन उनके गुनाहों और उन्हें दी गई सजा की फेहरिस्त देखिये:
महाराष्ट्र – पुणे में घर से बाहर निकले लोगों को पुलिस ने घंटों सड़कों पर बैठाकर रखा तो मुंबई में पुलिस ने लॉकडाउन तोड़ने के अपराध में लोगों को मुर्गा बनाया.
आंध्र प्रदेश – पुलिस ने लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों से उठक-बैठक लगवाई.
उत्तराखंड – पुलिस ने दस विदेशियों से 500 बार यह लिखने को कहा कि — ‘आई डिन्ट फालो लॉकडाउन, आईएम सॉरी’.
पश्चिमी बंगाल – कोलकाता और अन्य जिलों में लॉकडाउन तोड़ने वालों से मेंढक कूद करने को कहा गया.
तमिलनाडु – चेन्नई पुलिस ने उल्लंघन करने वालों के मुंह पर कोरोनावायरस के मुखौटे लगाए और गले में पट्टा लटकाया जिनमें लिखा था – ‘मैंने लॉकडाउन तोड़ा है.’ बाद में इनसे उठक-बैठक भी लगवायी गई.
यह भी पढ़ें: लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले वीवीआईपी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करके क्यों नहीं पेश की जा रही नज़ीर
उत्तर प्रदेश – लॉकडाउन तोड़ने वालों के हाथों में पोस्टर और पटि्टयां दी गईं जिन पर लिखा था – ‘मैं कोरोना का दोस्त हूं’ और ‘मैं समाज का दुश्मन हूं’ और उनके फोटो टि्वटर पर पोस्ट कर दिए गए.
केरल – राज्य में पुलिस ने प्रत्येक उल्लंघनकर्ता से 25 अन्य लोगों को फोन लगाकर लॉकडाउन का पालन करने की सलाह देने की सजा दी.
छत्तीसगढ़ – यहां उल्लंघनकर्ताओं को दी निराले अंदाज़ में सजा दी गई. पुलिस ने लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों की आरती उतारी, माथे पर तिलक लगाया और उन पर फूल डालकर शर्मिंदा किया.
लॉकडाउन तोड़ने के अपराध कुछ इस प्रकार दर्ज किए गए
—दिल्ली में 176 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई क्योंकि उन्होंने घर से बाहर कदम रखा.
—अहमदाबाद में एक महिला के खिलाफ मामला दर्ज हुआ जो साबरमती नदी के किनारे टहल रही थी.
—महाराष्ट्र में 7 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ जो मास्क नहीं पहने थे.
—पंजाब में एक दुकानदार पर दुकान खोलने के अपराध में 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया गया.
—पुणे में 3 लोगों को लॉकडाउन तोड़ने के गुनाह में 3 दिन जेल में रखा गया.
—जमशेदपुर में पुलिस ने सुबह की सैर पर निकले 122 लोगों को हिरासत में लिया.
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं, ‘कोरोना निजाम के ये गुनाह और उनकी सजाएं गैर-कानूनी हैं. उन्होंने बताया, ‘इस प्रकार के मनमाने कदमों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सेंटर फॉर एकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टेमिक चेंज ने गुहार लगायी है कि यह पहला मौका है जब पीड़ितों को अभियुक्त बनाकर उनके खिलाफ मामले दर्ज हो रहे हैं.’
यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस से भारत बेमन से जंग लड़ रहा है, सरकारी एजेंसियों के ज़िम्मेदार लोग गायब हैं
लॉकडाउन की अवधि की सबसे निराली व्यवस्था यह है कि इसमें लोकतंत्र के तीन में से सिर्फ एक स्तंभ ही काम कर रहा है. कार्यपालिका ने सारे अधिकार अपने हाथ में ले रखे हैं. न्यायपालिका और विधायिका के काम ठप पड़ चुके हैं. मीडिया के तौर पर एक गैर-आधिकारिक चौथा खंभा भी है जिसे काम करने दिया जा रहा है. लेकिन उसके पास आईना दिखाने के अलावा कोई और अधिकार नहीं हैं. ऐसे में कोरोना की आंधी थमने और लॉकडाउन समाप्त होने के बाद लोकतांत्रिक ढंग से बहस के बाद इस प्रकार के निज़ाम की परिभाषा, सीमाएं, गुनाह और उसकी सजाएं तय किए जाने की जरूरत है ताकि ‘लॉकडाउन नगरी, मनमानी व्यवस्था’ का नजारा फिर से नहीं दोहराया जा सके.
(लेखिका ट्रेवल ब्लॉगर और पत्रकार हैं, य़ह लेखक के निज़ी विचार हैं)