राष्ट्रीय आपदा राजनीतिक हमले का समय नहीं होता. यह सरकार के साथ खड़े होने का समय होता है. लेकिन जब सरकार की घोर अक्षमता और ज़िद लोगों की सुरक्षा को खतरे में डाल रही हो, तो जवाबदेही की मांग करना महत्वपूर्ण हो जाता है. सवाल पूछना जिम्मेदारी बन जाती है.
उद्धव ठाकरे सरकार महाराष्ट्र में कोरोनावायरस की स्थिति को संभालने में विफल रही है, इसलिए ये अहम है कि केंद्र सरकार मुंबई में धारावी और गोवंडी की झुग्गी बस्तियों में स्थिति को संभालने के लिए सेना को तैनात करे. यदि उचित प्रोटोकॉल का पालन किया जाए, तो इन इलाकों में शायद 10 लाख तक परीक्षणों की आवश्यकता हो- पर राज्य सरकार मौजूदा स्थिति, या इसके भावी अंजाम को संभालने के लिए तैयार नहीं दिख रही.
महामारी फैले एक महीना बीतने के बाद भी महाराष्ट्र की शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार उचित कदम उठाने में नाकाम रही है और इस कारण मुंबई महानगर के लिए गंभीर खतरे की स्थिति बन गई है.
क्या कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए महाराष्ट्र में आधिकारिक वार रूम बनाया गया है? क्या ठाकरे ने अपने गृह मंत्री अनिल देशमुख की उनकी लगातार विफलताओं के लिए खिंचाई की है? क्या मुंबई पूरी तरह से बीएमसी को आउटसोर्स कर दिया गया है? क्या स्वास्थ्य मंत्री द्वारा सीएम को अपडेट किया जाता है? (वैसे गृह और स्वास्थ्य मंत्रालय दोनों एनसीपी के पास हैं). इसके अलावा, राज्य के कितने मंत्रियों ने उन जिलों का दौरा किया है, जिनके लिए वे संरक्षक मंत्री बनाए गए हैं या उन्होंने लॉकडाउन को छुट्टी के रूप में तो नहीं लिया है?
मुंबई में कोविड-19 का पहला मामला सामने आने के 40 दिनों के बाद भी राज्य सरकार के व्यवस्थित प्रयास नहीं कर पाने के कारण जानकार वर्गों के बीच ये भावना ज़ोर पकड़ रही है कि मुंबई को बचाने के लिए धारावी और गोवंडी की झुग्गी बस्तियों को सेना के हवाले करना ज़रूरी हो गया है.
आंकड़े क्या कहते हैं
आइए कुछ अकाट्य तथ्यों पर विचार करते हैं. सबसे पहले मुंबई में कोविड-19 के 15 अप्रैल के ताज़ा आंकड़ों को देखते हैं.
महानगर में लगभग सभी हिस्सों में समान रूप से मिले कुल 1,936 मामलों, तथा धारावी और गोवंडी की झुग्गियों के नए हॉटस्पॉट के रूप में उभरने के मद्देनज़र मुंबई के बारे में थोड़ी-सी जानकारी रखने वाला भी इस महानगर पर आसन्न खतरे की कल्पना कर सकता है. यहां ये उल्लेखनीय है कि लगभग 400 मामलों वाला वर्ली आदित्य ठाकरे का चुनाव क्षेत्र है.
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लॉकडाउन के 24 दिनों से जारी रहने (महाराष्ट्र में 22 मार्च से ही लॉकडाउन है) के बावजूद नए कंटेनमेंट ज़ोन की निरंतर बढ़ती संख्या स्थिति की गंभीरता को उजागर करती है, और जाहिर है इससे लॉकडाउन के अनुपालन की भी पोल खुलती है.
दो सप्ताह पहले तक महाराष्ट्र और केरल में संक्रमण का स्तर लगभग एक जैसा था. अब, महाराष्ट्र जहां महामारी से जूझता दिख रहा है, वहीं केरल ने सफलतापूर्वक संक्रमण के कर्व को सपाट बना दिया है.
आइए अब कोरोनावायरस से निपटने के लिए चिकित्सकीय तैयारियों और लॉकडाउन के असर जैसे महत्वपूर्ण कारकों पर गौर करते हैं कि कैसे महाराष्ट्र इन मामलों में बुरी तरह नाकाम साबित हुआ है.
चिकित्सकीय तैयारी
इस समय भारत के कुल कोविड-19 मामलों में से 23.9 प्रतिशत महाराष्ट्र में हैं और इस संक्रमण से होने वाली मौतों में राज्य की हिस्सेदारी 44.3 प्रतिशत है. वास्तव में, महाराष्ट्र में मौत की दर (6.5-7 प्रतिशत) वैश्विक स्तर (3.4 प्रतिशत) से बहुत ऊंची है.
यह देखते हुए कि मुंबई में भारत के अधिकांश अन्य हिस्सों की तुलना में बेहतर चिकित्सा सुविधाएं हैं, यहां उच्च मृत्यु दर के लिए केवल दो कारण हो सकते हैं. पहला, कोविड-19 से लड़ने के लिए अस्पतालों की अपर्याप्त तैयारी और दूसरा, शायद छुपे मामलों की बहुत अधिक संख्या में मौजूदगी.
कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए चुने गए अधिकांश अस्पताल इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे. अस्पतालों में कोविड-19 वाले खंडों के पूर्ण अलगाव की आवश्यकता थी, जो नहीं हुआ. कोविड-19 के सारे या अधिकांश रोगियों को एक या दो उपचार केंद्रों में रखने के बजाय, उन्हें शहर भर में रखा जा रहा था. और यही कारण है कि कोविड-19 के कारण अस्पतालों की बंद किए जाने के सर्वाधिक मामले मुंबई में ही सामने आए और साथ ही यहां संक्रमित होने वाले चिकित्साकर्मियों की भी बड़ी संख्या है.
वास्तव में, आइसोलेशन वार्डों की ‘खराब स्थिति’ के लिए कांग्रेस नेता शशि थरूर के एक ट्वीट में महाराष्ट्र सरकार को लताड़ लगाना, ज़मीनी हकीकत को उजागर करता है.
मुंबई में पीपीई की पर्याप्त उपलब्धता के बावजूद सरकार अस्पतालों में उनकी आपूर्ति सुनिश्चित करने में नाकाम रही है. न ही सरकार कोविड-19 अस्पतालों में उचित सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है. 15 अप्रैल को, जब भारत ने लॉकडाउन के दूसरे चरण में प्रवेश किया, जुहू के कूपर अस्पताल में कुप्रबंधन का एक और प्रकरण सामने आया.
अस्पताल से जुड़ी चुनौतियों के अलावा, आज की तारीख में मुंबई की तीन बड़ी पुलिस कॉलोनियां सील की जा चुकी हैं, जोकि महानगर के पुलिस बल को हतोत्साहित करने वाला तथ्य है.
अधिक परीक्षणों का मिथक
महाराष्ट्र सरकार के ‘किसी अन्य राज्य की तुलना में अधिक परीक्षण’ के दावों को बेनकाब करना महत्वपूर्ण हो जाता है. शुक्रवार तक की स्थिति की बात की जाए, तो कोविड-19 के प्रति मिलियन (टीपीएम) परीक्षण के हिसाब से महाराष्ट्र न सिर्फ राजस्थान और केरल (बड़े राज्य) से बल्कि दिल्ली जैसे छोटे राज्य से भी नीचे है. कुल 50,000 से अधिक परीक्षण करने वाले महाराष्ट्र ने भारत में हुए कुल परीक्षणों के लगभग 17-18 को अंजाम दिया है. लेकिन राज्य में देश के संक्रमण के कुल मामलों का 23.9 फीसदी होने के कारण टेस्टिंग की ये संख्या कम है. मौजूदा स्थिति में अधिक परीक्षण एक अनिवार्यता है, न कि विकल्प.
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लेकिन 12 अप्रैल से मुंबई में परीक्षण प्रोटोकॉल अचानक बदल दिया गया है. अब उच्च-जोखिम रहित संपर्कों का परीक्षण नहीं किया जाएगा. इस बात पर गौर करते हुए कि मुंबई के 65 प्रतिशत कोरोनावायरस रोगियों में रोगलक्षण नहीं दिख रहे हैं, परीक्षण प्रोटोकॉल में बदलाव के गंभीर खतरे की सहज ही कल्पना की जा सकती है. यह बदलाव आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों के भी खिलाफ है.
लॉकडाउन के असर का सवाल
पिछले तीन हफ्तों में सामने आई अनेक तस्वीरें और वीडियो इस बात की तस्दीक करते हैं कि लॉकडाउन का हाल बहुत ही बुरा है.
आइए लॉकडाउन उल्लंघन के कुछेक गंभीर मामलों पर नज़र डालते हैं.
ठाणे के एक इंजीनियर को एक फेसबुक पोस्ट के कारण 5 अप्रैल को कथित रूप से एनसीपी कार्यकर्ता उठाकर ले गए. वे उसे एनसीपी मंत्री जितेंद्र आव्हाड के घर ले गए. वहां इंजीनियर को आव्हाड के पुलिस अंगरक्षकों की मौजूदगी में बुरी तरह पीटा जाता है. उसकी पिटाई के आरोप में गिरफ्तार किए गए दो पुलिसकर्मी कोविड-19 के परीक्षण में पॉजिटिव पाए गए हैं. ठाणे के एनसीपी पार्षद मिलिंद पाटिल ने दावा किया है कि जितेंद्र आव्हाड भी कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए थे. यदि ये बात सही है तो इसका यही मतलब कि गैरकानूनी हिंसा के अलावा मंत्री कोरोनावायरस के ‘सुपर स्प्रेडर’ भी हैं.
क्या उद्धव ठाकरे ने आव्हाड के खिलाफ कार्रवाई पर विचार किया है? अब रिपोर्टों में ये दावा किया जा रहा है कि आव्हाड का परीक्षण निगेटिव आया है, जबकि उनके संपर्क में आए 14 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं.
महाराष्ट्र के गृह विभाग के प्रधान सचिव अमिताभ गुप्ता द्वारा लॉकडाउन के दौरान वधावन परिवार के 23 सदस्यों को महाबलेश्वर यात्रा की त्वरित और अचानक अनुमति दिया जाने की बात पहले ही सबके सामने आ चुकी है. अधिकारी को छुट्टी पर भेजे जाने के अलावा इस मामले में और कोई जांच नहीं की गई है.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि निज़ामुद्दीन के मरकज़ में शामिल रहे महाराष्ट्र के तबलीगियों में से बहुतों का पता नहीं लगाया गया है. पिछले हफ्ते अनिल देशमुख ने दावा किया था कि मरकज़ में शामिल रहे 58 लोगों का पता नहीं चल पाया है. इस हफ्ते उन्होंने दावा किया है कि 58 में से 40 को ढूंढ निकाला गया है. देशमुख की विश्वसनीयता के संकट को देखते हुए, उनके नए दावे पर पूरी तरह यकीन नहीं किया जा सकता है.
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14 अप्रैल को बांद्रा स्टेशन के बाहर प्रवासी श्रमिकों की भारी भीड़ जमा होने की घटना का रहस्य बरकरार है. ऐसी स्थिति में जबकि मेरे लिए परचून की दुकान तक जाने में मुश्किल आती हो, बांद्रा के बीचोबीच 3,000 लोगों का जुटना कई सवाल खड़े करता है. जितेंद्र आव्हाड के गढ़ मुंब्रा में भी इसी तरह की भीड़ के जुटने और सोशल मीडिया पोस्टों में एनसीपी नेताओं से निकटता का प्रदर्शन करने वाले विनय दुबे नामक एक व्यक्ति की भीड़ जुटाने में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तारी, महज संयोग की बात नहीं दिखती. इसी तरह बांद्रा में बनी अराजक स्थिति के दौरान कथित रूप से तैयार एक वीडियो क्लिप भी चौंकाती है, जिसमें प्रवासी श्रमिकों को कथित तौर पर विद्रोह के लिए उकसाया जा रहा है.
उपरोक्त घटनाओं से साफ है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस बात का बहुत कम या कोई अंदाज़ा नहीं है कि उनके गृह मंत्री या अन्य कैबिनेट मंत्री क्या कर रहे हैं.
अगले कुछ दिन मुंबई के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं.
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया पैनल के सदस्य हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
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