नई दिल्ली: भारत के शीर्ष महामारी विशेषज्ञ डॉ. जयप्रकाश मुलियाल ने कहा कि भारत को लॉकडाउन हटाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, ताकि लोगों में विषाणु प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो, जो कोरोनावायरस को अप्रभावी बना दे.
और इसके लिए एक तरीका यह है कि युवाओं को बाहर जाने और उत्पादक काम करने की अनुमति दी जाए और बुजुर्ग घर में रहें, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के पूर्व प्रिंसिपल ने, दिप्रिंटको से विशेष साक्षात्कार में ये बातें कही.
3 मई तक विस्तारित राष्ट्रीय लॉकडाउन से जुड़े सवाल कि क्या भारत अपने आर्थिक परिणामों के साथ सर्वाइव कर सकता है. इस बारे में मुलियाल ने कहा, ‘जब आप किसी चीज को रोकते हैं, तो रिकवरी में समय लग सकता है, भारत दिवालिया होने का जोखिम नहीं उठा सकता है.’
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समुदाय में कैसे बनती है समूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता
लॉकडाउन वक्र या घुमाव को सीधी रेखा में कर सकता ह, लेकिन पूरी तरह से संक्रमण को रोक नहीं सकता, भले ही फ्लू जैसे लक्षण अलग हों. कोविड-19 वायरस उन लोगों में सक्रिय बना रहेगा जिनमें लक्षण नजर नहीं आते हैं, और इसलिए जब तक अधिक लोगों का परीक्षण नहीं किया जाता है, तब तक पकड़ में नहीं आ सकता. लॉकडाउन के बाद जब ये प्रतिबंध हटेगा और लोग एक-दूसरे के संपर्क में आएंगे, तो वायरस फिर से प्रकट हो सकता है और ट्रांसमिशन को फिर से शुरू कर सकता है.
ऐसे मामलों में, समूहिक रोग प्रतिरक्षा मदद कर सकती है, मुलियाल ने कहा.
उन्होंने कहा कि जब तक आसानी से प्रभावित होने वाली आबादी संक्रमित रहती है, जब तक अधिक से अधिक लोग संक्रमित हैं और वे इसके लिए एंटीबॉडीज विकसित करते हैं, तब तक यह वायरस आबादी में जिंदा रह सकता है, इम्युनिटी समुदाय में निर्मित होती है.
एंटीबॉडीज, वायरस के लिए विशेष तौर पर, एक संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली से पैदा हुए प्रोटीन होते हैं.
मुलियाल ने कहा, ‘भले ही 50 प्रतिशत आबादी संक्रमित है, वे (संक्रमित व्यक्ति जो एंटीबॉडीज विकसित कर चुके हैं) वायरस के लिए बैरियर बनते हैं और अन्य 50 प्रतिशत को सुरक्षा प्रदान करते हैं जिनके पास प्रतिरक्षा न हो. वैक्सीन बनने तक यह विशेष रूप से उपयोगी है. उन्होंने आगे कहा यह वायरस को बढ़ने और विस्तार करने के लिए एक नया घर ठिकाना खोजने में मुश्किल खड़ी करते हैं, और बीमारी इससे महामारी के रूप नहीं ले पाएगी.
बूढ़ों और युवाओं के लिए बने अलग रणनीति
मुलियाल ने कहा, जहां तात्कालिक जरूरत है तो सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता पाना होगा, दर पर सावधानीपूर्वक नजर रखनी पड़ेगी.
यदि यह अचानक होता, तो बड़ी संख्या में आबादी एक साथ संक्रमित हो जाती है और कई को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है. ‘हमारी आबादी को देखते हुए, संख्या बहुत बड़ी होगी. दुनिया का कोई भी देश इतनी बड़ी संख्या में इलाज की सुविधा नहीं दे सकता है’, उन्होंने कहा.
महामारी विशेषज्ञ ने कहा, एकमात्र उपाय यह है कि यह कैसे विकसित हो, इसके लिए अलग-अलग रणनीति बनाई जा सकती है, बूढ़े लोगों और जो युवा वायरस के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं.
‘देश की लगभग 8.5% और 12.5% आबादी 60 और 55 वर्ष से ऊपर है. अगर हम इन 10% लोगों की रक्षा परिवारों के भीतर करें और न कि संस्थानों में तो हम समूह प्रतिरक्षा विकसित कर सकते हैं.
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समूहिक प्रतिरक्षा की कीमत
वेल्लोर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल के अनुसार, युवाओं को एक विकल्प मिलना चाहिए कि वे बाहर जाना चाहते हैं या नहीं. ‘जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हें विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों से खुद को सुरक्षित रखने और शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए सिखाया और शिक्षित किया जाना चाहिए.’
बड़ी सभाओं से बचना होगा, मुलियाल ने कहा, काम के स्थानों और शॉपिंग सेंटर्स की पुनर्चना करनी होगी. ‘अगर हम इसे ध्यान से कर सकते हैं, (और) यदि अधिकांश लोग तर्क को समझते हैं, तो हम इसे धीमा करने और इसे फैलने से रोकने में सक्षम हो सकते हैं.’
लेकिन यह बिना कीमत चुकाए नहीं होगा.
‘हां, कुछ लोग मर जाएंगे लेकिन सवाल यह है कि क्या आप इसे अपेक्षित (संख्य़ा) से कम कर सकते हैं?’ मुलियाल ने कहा.
उन्होंने कहा, ‘लॉकडाउन क विकल्प महीनों के लिए है लेकिन जिस पल आप बाहर आएंगे, वायरस वापस आ जाएगा और कुछ लोग मर जाएंगे. यही कारण है कि आपको ओपनिंग रेग्युलेट करने और समुदाय के सहयोग के साथ बुजुर्गों की रक्षा करने और युवा को सबसे आगे रखने की आवश्यकता है.’
उन्होंने कहा कि इज़राइल और स्वीडन पहले से ही इस रणनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं. ‘लोगों को लगता है कि ब्रिटेन ऐसा करने में विफल रहा लेकिन यह गलत है. उन्होंने अस्पतालों में लोड का अनुमान नहीं लगाया था लेकिन वे वापस ट्रैक पर हैं और वे जल्द ही एक स्थिर देश बन जाएंगे.’
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