नई दिल्ली: बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के हत्यारों में से एक अब्दुल मजीद को हुई फांसी ने न केवल दक्षिण एशिया के राजनीतिक इतिहास के सबसे बुरे अध्याय का अंत किया है बल्कि इसने मुजीब की बेटी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की स्थिति को भी मजबूत किया है वो भी खासकर उस बरस में जब मुजीब की 100वीं जयंती को ‘मुजीब बरसा’ के नाम से मनाया जा रहा है.
कोरोनावायरस महामारी के डर के बावजूद शनिवार, 11 अप्रैल को ढाका सेंट्रल जेल के बाहर सैकड़ों लोग जमा हुए जहां आधीरात को मजीद को फांसी दी गई.
कुछ लोगों समेत मजीद, 15 अगस्त 1975 को मुजीबुर की हत्या करने में शामिल था.
2010 में हत्या करने में शामिल रहे 5 लोगों को फांसी दे दी गई थी. एक व्यक्ति की जिम्बाब्वे में प्राकृतिक मृत्यु हो गई थी. बाकी बचे छह दोषियों में मजीद भी शामिल था. अधिकारियों का कहना है कि इनमें से एक कनाडा में है और दूसरा यूएस में.
बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने 19 नवंबर 2009 को, मजीद की मौत की सजा और मुजीबुर के 11 अन्य आत्म-हत्यारों को मौत की सजा सुनाई, जिसे बंगबंधु कहा जाता है.
7 अप्रैल को बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमीन ने कहा था कि जैसे उनकी सरकार कोविड-19 महामारी के दौरान दूसरे देशों से अपने नागरिकों को देश वापस लाने की कोशिश कर रही है वैसे ही वो इन पांचों हत्यारों को वतन वापस लाने की आशा है.
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उन्होंने कहा, ‘मुझे आशा है कि बाकी दोषियों को मुजीब बोरसा के भीतर ही ला पाएंगे.’
बांग्लादेश पुलिस के काउंटर टेररिज्म एंड ट्रांसनेशनल क्राइम विभाग ने मजीद को दबोचने के बाद, ढाका के छावनी क्षेत्र में पिछले 45 वर्षों के लिए मौत की सजा दी थी.
मजीद शायद भारत में रह चुका था
1996 में मुजीब की बेटी शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग के सत्ता में आने के बाद कहा जाता है कि मजीद बांग्लादेश से भागकर भारत में रहने लगा था. सत्ता संभालने के बाद, उन्होंने क्षतिपूर्ति अध्यादेश को निरस्त करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया, जिसने मुजीब के हत्यारों को प्रतिरक्षा प्रदान की थी.
चार अन्य समेत मजीद देश छोड़कर भाग गया था.
बांग्लादेशी प्रेस के अनुसार, मजीद जो एक सेना में अधिकारी रह चुका था, पहले लीबिया गया, फिर पाकिस्तान और अंत में भारत में प्रवेश किया जहां वह कथित तौर पर कोलकाता में लगभग 20 साल तक रहा.
बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान ने हालांकि पीटीआई को बताया था कि पिछली रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि वह भारत में था, उसे ढाका में गिरफ्तार किया गया था क्योंकि वह पिछले महीने चुपके से लौटा था.
लेकिन एक पूर्व राजदूत का कहना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वो भारत में रहता था.
बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीना सीकरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं है कि वो भारत के कोलकाता में छिपकर रहता था. अगर ऐसा था भी तो वो ढाका वापस चला गया और उसे सजा भी हो गई है.’
सीकरी ने कहा, ‘इन लोगों को बड़े पद दिए गए थे और पिछले बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) शासन में सम्मान से देखा जाता था.’ सीकरी ने कहा, ‘यहां तक कि अगर वह अवैध रूप से यहां आया, तो भी उसे ढूंढना आसान नहीं होगा. मैं कहूंगी कि यह उसका पता लगाने के लिए एक खुफिया सफलता थी. भारत इसके बारे में चौकस हो रहा है, जो अच्छा है.’
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भारतीय खुफिया ब्यूरो के एक पूर्व अधिकारी, जिन्हें कुछ साल पहले ढाका में तैनात किया गया था, ने सीकरी की बात की पुष्टि की, जब बीएनपी की चेयरपर्सन खालिदा जिया सत्ता में थीं, तब माजिद ने एक आलीशान जीवन जीया.
लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, हसीना के बांग्लादेश की सत्ता में आते ही हत्यारों की तलाश जारी थी और इस बारे में भारत की वर्तमान और पहले की सरकारों के साथ इस मामले पर चर्चा की गई थी.
हसीना और आवामी लीग को मिलेगी मजबूती
मुजीब ने आवामी लीग की स्थापना की थी जो 1975 में उनकी हत्या के बाद एक शीतकाल से गुजरी क्योंकि बांग्लादेश पर उस दौरान एक-एक कर कई तानाशाहों ने राज किए.
विपक्षी बीएनपी, पहले जिया-उर रहमान के नेतृत्व में और फिर उसकी पत्नी खालिदा जिया, दोनों शासक थे, 1996 तक जब तक हसीना चुनाव जीकर प्रधानमंत्री नहीं बन गईं.
भारत-बांग्लादेश के रिश्तों पर नज़र रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार नीलम देव कहती हैं, इस घटना से वाकई में बांग्लादेश में हसीना की स्थिति मजबूत होगी, जहां का समाज अभी गहरे तौर पर ध्रुवीकृत हो रहा है. उसका चुनावी जनादेश अपने पिता के हत्यारों को बंद करने और उन्हें सजा देने पर था.
पिछले महीने हसीना सरकार ने खलीदा जिया को भी जेल से रिहा किया था.
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बांग्लादेश की दो बार प्रधानमंत्री रह चुकीं 74 वर्षीया जिया को भ्रष्टाचार के मामले में फरवरी 2008 में सजा सुनाई गई थी जिससे उनकी पार्टी को गहरा धक्का लगा था.
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