नई दिल्ली: कोविड-19 की टेस्टिंग से जुड़ी एक और बड़ी जानकारी सामने आई है. पुणे स्थित स्टार्टअप फास्ट सेंस डायग्नोस्टिक्स कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए रैपिड डायग्नोस्टिक किट विकसित कर रहा है. इसके लिए इस स्टार्टअप के पास सीओवीई-सेंस नाम की एक तकनीक है जिसके दो उत्पाद हैं. एक मॉडिफ़ाइड पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (पीसीआर) आधारित डिटेक्शन किट और दूसरी रैपिड स्क्रीनिंग के लिए एक पोर्टेबल चिप-आधारित मॉड्यूल. यह डायग्नोस्टिक्स भविष्य में इस वायरस के फिर से फ़ैलने के ख़तरे को भी कम कर सकता है.
2018 में शुरू हुआ फास्ट सेंस डायग्नोस्टिक्स एक स्टार्टअप है जो बीमारियों के इलाज के लिए तेज़ी से नए उत्पादों को विकसित कर रहा है और यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा फंडेड है. यह अब कोविड-19 का पता लगाने के लिए दो मॉड्यूल विकसित कर रहा है.
डीएसटी सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, ‘वर्तमान में कोविड-19 की जांच में रफ्तार, लागत, उपलब्धता और सटीकता हमारे लिए मुख्य चुनौतियां हैं और कई स्टार्टअप ने इनके लिए कई रचानात्मक उत्पाद विकसित किए हैं. डीएसटी इन उत्पादों का समर्थन कर रहा है ताकि तकनीकी आधार पर उपयुक्त पाए जाने पर इन उत्पादों को बाज़ार में पहुंचाया जा सके.’
कंपनी ने कैंसर, लीवर और नवजात सेप्सिस जैसी अन्य गंभीर बीमारियों की शुरुआती पहचान और जांच के लिए उनके मौजूदा यूनिवर्सल प्लेटफॉर्म ‘ओमनी-सेंस’ की तर्ज पर कोविड-19 के लिए विशेष रूप से एक तकनीक ‘सीओवीई-सेंस’ बनाने का प्रस्ताव देते हुए अपना पेंटेंट भी दायर किया है. यह किट स्क्रीनिंग और टेस्टिंग को आसान बनाएगा.
इस संदर्भ में कंपनी दो उत्पादों को आगे बढ़ाने की योजना बना रही है. पहला पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (पीसीआर) आधारित मॉड्यूल है जो मौजूदा डिटेक्शन तकनीक पोर्टेबल चिप की तुलना में कम समय में ही परिणाम दे देगा. चिप सेंसिंग तकनीक के आधार पर यह एक बड़ी आबादी की जांच कर पाने में सक्षम होगा. यह 15 मिनट से भी कम समय में तुरंत परिणाम दे देगा. कंपनी के मुताबिक भविष्य में यह 100 परिक्षण प्रति घंटे तक दे सकने में सक्षम होगा.
यह दो प्रस्तावित मॉड्यूल किसी भी जगह जैसे कि हवाई अड्डों और घनी आबादी वाले इलाकों में इस्तेमाल किया जा सकता है और एक बडी आबादी का टेस्ट किया जा सकती है. वहीं, एक घंटे से भी कम समय में आसानी के साथ सबका डेटा प्राप्त किया जा सकता है. कंपनी इसे और अधिक किफायती बनाने पर काम कर रही है.
इस स्टार्टअप की टीम नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ काम करने की संभावना पर भी विचार कर रही है. कंपनी ने इसके लिए संस्थान से औपचारिक निवेदन भी कर दिया है. वहीं कंपनी प्रबंधन डिवाइस के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए बाजार में मौजूद बड़ी कंपनियों के निरंतर संपर्क में है.
इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाली टीम में वायरोलॉजी, आणविक जीव विज्ञान और जैव सूचना प्रणाली के विशेषज्ञ शामिल हैं जो 8 से 10 सप्ताह में ही प्रोटोटाइप बना कर तैयार कर सकते हैं. उत्पादन को और बढ़ाने के लिए कंपनी के पास कुछ इन-हाउस प्रोडक्शन फैसिलिटी भी उपलब्ध हैं.
इसके अलावा वर्तमान महामारी के दौरान रोग के अधिक प्रसार को रोकने के लिए, पोर्टेबल रैपिड डायग्नोस्टिक्स किट नियमित निगरानी के साथ भविष्य में होने वाली रुकावट को भी रोक सकता है. कम लागत और संचालन में आसानी ग्रामीण आबादी तक मदद पहुंचाने और शहरी स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को भी सहायता पहुंचाने में काफी मदद कर सकती है.