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Monday, 18 November, 2024
होमदेशपूर्व बीबीसी हिंदी के कर्मचारी का दावा, जातिगत भेदभाव के आरोपों की वजह से उसे नौकरी से निकाला गया

पूर्व बीबीसी हिंदी के कर्मचारी का दावा, जातिगत भेदभाव के आरोपों की वजह से उसे नौकरी से निकाला गया

अभिमन्यु कमार साहा का आरोप है कि जब उन्होंने ख़ुद के साथ हो रही प्रताड़ना से जुड़ा मेल बीबीसी के दुनिया भर के कर्मचारियों को भेजा, उसके छह दिन बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

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नई दिल्ली: बीबीसी के एक पूर्व कर्मचारी का आरोप है कि हिंदी सेवा में उसके साथ जाति के आधार पर भेदभाव हुआ है जिसकी वजह से वह डिप्रेशन का शिकार हो गया.

इसका उदाहरण देते हुए अति पिछड़ा कैटगरी से आने वाले अभिमन्यु साहा ने कहा कि संस्थान के वरिष्ठ पत्रकार कहा करते थे कि मायावती उनकी नेता हैं.

2017 में बीबीसी हिंदी का हिस्सा बने साहा का कहना है, ‘मायावती उत्तर प्रदेश से हैं और बिहार से, दोनों का कोई लेना-देना नहीं…ऐसे में मायावती उनकी नेता कैसे हुईं.’

ये पहला मौका नहीं है जब बीबीसी हिंदी पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगा है. पिछले साल अगस्त में मीना कोतवाल नाम की एक दलित महिला पत्रकार ने आरोप लगाया था कि उन्हें उनकी जाति की वजह से अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा.

कोतवाल के मामले में आरोपों को नकारते हुए बीबीसी ने कहा था कि संस्था जिस देश में काम करती है उसके कानूनों का पालन करती है. हालांकि, ये निजी मामलों पर टिप्पणी नहीं करती है. उन्होंने ये भी कहा था, ‘कई कर्मचारी हमारे साथ एक तय समय के आधार पर काम करते हैं और उन्हें आगे रखना एडिटोरियल ज़रूरतों और मौजूद संसाधनों के ऊपर निर्भर करता है.’

‘आत्महत्या करने जैसा महसूस होता था’

अन्य जातिवादी घटनाओं के उदाहरण देते हुए हुए साहा ने कहा, ‘जब आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिला तो यही लोग मेरे पास आकर मुझे चिढ़ाने लगे.’

अपना मीडिया स्टार्टअप शुरू करने वाले साहा ने ये भी कहा कि 13 प्वाइंट रोस्टर जैसे मुद्दे के दौरान इन लोगों का कहना था, ‘इस पर तो अभिमन्यु ख़बर करेगा. वो इस मामले का एक्सर्ट है.’

यूनिवर्सिटी में फैकल्टी की नियुक्ति के मामले में कोटा लागू करने के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर हर डिपार्टमेंट को एक यूनिट मानता है.

उनका कहना है कि अपने सहयोगियों से हो रहे बुरे व्यवहार पर जब उन्होंने आवाज़ उठाई तो उनको निशाना बनाया गया, इतना तंग किया गया कि वो डिप्रेशन में आ गए औऱ अपनी जान तक लेने की सोची.

मामले पर बीबीसी के प्रवक्ता ने दिप्रिंट से कहा, ‘बीबीसी के पास मान्य, विस्तृत और बिना पक्षपात वाली सुनवाई की प्रक्रिया है.’ हालांकि, संस्था ने आगे कहा कि वो निजी मामलों पर टिप्पणी नहीं करते हैं.

23 मार्च को नौकरी से निकाला गया

संगठन में वरिष्ठों के हाथों प्रताड़ित होने औऱ कोई सुनवाई न होने से तंग आकर बाद उन्होंने बीबीसी के हज़ारों कर्मचारियों को मेल भेज दिया जिसमें साहा ने लिखा है, ‘बीबीसी हिंदी में आपको जाति के आधार पर भी भेदभाव झेलना पड़ता है. ज़्यादातर कर्मचारी सवर्ण हैं. शायद ही ऐसे कर्मचारी हैं जो सवर्ण ना हों.’ उन्होंने सवाल उठाया है कि बीबीसी की डायवर्सिटी पॉलिसी होने के बावजूद ऐसा क्यों होता है?

साहा ने दिप्रिंट से कहा कि उनके द्वारा बीबीसी के हज़ारों कर्मचारियों को 17 मार्च को ये मेल भेजे जाने के बाद 23 मार्च को उन्हें टर्मिनेट कर दिया गया. साहा ने ये भी कहा कि संस्थान ने उन्हें जानबूझकर निगेटिव रिव्यू दिया.

उन्होंने दावा किया कि जब उन्होंने बीबीसी के दुनिया भर के कर्मचारियों को मेल भेजा तो दक्षिण एशिया की सेवाओं में काम कर रहे कर्मचारियों के फोन आए और उन कर्मचारियों ने भी ऐसे ही अनुभव साझा किए.

उन्होंने पिछले साल मीना के साथ हुए वाक्ये का भी ज़िक्र किया. साहा ने कहा, ‘मीना से एक वरिष्ठ ने पूछा था कि वो किस जाति की है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में भी पढ़ा जा सकता है,यहां क्लिक करें.)

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