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Monday, 18 November, 2024
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कोरोनावायरस को लेकर हो रही सरकार की आलोचना को देश की आलोचना न समझें

इस बीच, सरकार और व्यवस्था की कई खामियां और लापरवाहियां भी सामने आई हैं. कई कदम ऐसे हैं, जिन्हें शायद पहले उठाया जाना चाहिए था.

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देश इस समय एक बड़े संकट का मुकाबला कर रहा है. इस क्रम में व्यवस्था और सरकार की ओर से कई अच्छे काम किए जा रहे हैं. लेकिन जाहिर है कि सब कुछ बेहद शानदार नहीं है. इस बीच, सरकार और व्यवस्था की कई खामियां और लापरवाहियां भी सामने आई हैं. कई कदम ऐसे हैं, जिन्हें शायद पहले उठाया जाना चाहिए था या जिनके असर के बारे में गहनता से आकलन किया जाना उचित होता.

सवाल उठता है कि इस बारे में इंगित करने वालों को किस नजरिए से देखा जाए? बल्कि ये पूछा जाना चाहिए कि जो लोग सरकार की कमियों की ओर इशारा कर रहे हैं या सरकार की आलोचना कर रहे हैं, क्या उनका काम देश हित में है या ऐसा करना देश के हित के खिलाफ है? ये लोकतंत्र के एक बड़े सवाल से जुड़ता है कि विचारों के प्रतिपक्ष को किस नजरिए से देखा जाना चाहिए.

22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद जब लोगों का हुजूम जश्न मनाने निकल पड़ा तो सोशल मीडिया में इस बात की आलोचना हुई कि जनता को प्रधानमंत्री का दूर-दूर रहने का संदेश शायद समझ में नहीं आया या फिर प्रधानमंत्री अपना संदेश सही तरीके से लोगों तक पहुंचा नहीं पाए क्योंकि कुल मिलाकर फिजिकल डिस्टेंसिंग का मकसद पूरा नहीं हुआ.

इन आलोचनाओं के जवाब में ये तर्क आया कि ‘फ़िलहाल हालात इमर्जेंसी वाले हैं. लिहाज़ा, अभी सरकारों की ग़लतियां गिनाने की बजाय, कोरोनावायरस से लड़ने के तरीक़े सुझाये जाने चाहिए.’ ये ग़ज़ब का फलसफ़ा है कि अभी ग़लतियां मत गिनाओ. सिर्फ़ सुझाव दो. बेशक लोग सुझाव दे भी रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि सरकार उन सुझावों पर गौर करे और वाजिब सुझावों पर अमल करे.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला कितना सुसंगत

अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दाखिल कई याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. याचिका में मांग की गई थी कि कोविड-19 के संदिग्ध मामलों को जांच करने वाली प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट सरकार को निर्देश दे. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट से ये भी गुजारिश की गई थी कि कोरोना के संदिग्ध मरीजों को अलग रखने के लिए बने केन्द्रों की संख्या बढ़ाने का हुक़्म सरकारों को दिया जाए.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया, बल्कि याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे इन बातों को लेकर सरकार के पास जाएं. प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि वह इस बात से ‘संतुष्ट हैं कि सरकार मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए बहुत सक्रिय हो गयी है और उसके आलोचक भी कह रहे हैं कि वो अच्छा काम कर रहे हैं.’

ये तर्क और वितर्क का विषय हो सकता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को सरकार के बारे में ऐसा कहना चाहिए और क्या सारे आलोचक ये कह रहे हैं कि सरकार अच्छा काम कर रही है.

भारत में टेस्ट किए जाने वालों की संख्या काफी कम

ये एक तथ्य है कि भारत दुनिया के उन देशों में है, जहां कोरोनावायरस के टेस्ट काफी कम किए जा रहे हैं और इसे लेकर विशेषज्ञ चिंता भी जता रहे हैं. इसके अलावा सिर्फ लोगों को अलग-थलग रखना, कोरोना से निपटने की समग्र रणनीति नहीं हो सकती. इसके साथ में संदिग्ध संक्रमित लोगों का टेस्ट करना और उनका इलाज करना भी बेहद जरूरी है.

हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट इस बात से सहमत न हो, लेकिन सरकार के कामकाज को पूरी तरह दोषमुक्त करार देना लोकतंत्र में शक्तियों के संतुलन के सिद्धांत के विरुद्ध है. जब शासन का कोई एक अंग या कई अंग जैसे सरकार या संसद कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिससे नागरिकों को शिकायत हो, तो सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की जाती है कि वह पंच की भूमिका निभाए.

मीडिया ने त्याग दी आलोचक की भूमिका

ऐसा खासकर इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि मेनस्ट्रीम मीडया के एक बड़े हिस्से ने आलोचक या वाचडॉग की अपनी ऐतिहासिक भूमिका का त्याग कर दिया है या उस भूमिका को स्थगित कर दिया है. इस वजह से सरकार के लिए ये समझ पाना भी मुश्किल होता है कि उसके किसी कदम की जनता में कैसी प्रतिक्रिया हो रही है. सरकार समय पर यह भी नहीं जान पाती कि उसका कोई कदम प्रतिगामी या विपरीत असर पैदा कर रहा है.

चूंकि आलोचनाओं को लेकर सत्ता पक्ष बेहद आक्रामक है और आलोचना करने वालों को दुश्मन की तरह देखा जा रहा है, इसलिए सिविल सोसाइटी का एक बड़ा हिस्सा इन बातों से पीछे हट चुका है. सोशल मीडिया पर सरकार के कदमों की आलोचनात्मक समीक्षा करने वालों को जिस तरह से ट्रोल किया जाता है, उसकी वजह से ऐसी कई आवाजें आज खामोश हो चुकी हैं या सोशल मीडिया छोड़ चुकी हैं.

ऐसे में जब तक कोई बड़ा संकट या आपदा न आ जाए, तब तक सरकार गफलत में रहती है कि सब कुछ ठीक चल रहा है. ये लोकतंत्र के लिए अच्छी स्थिति नहीं है क्योंकि पक्ष और विपक्ष की विचारधाराओं की अंतर्क्रियाओं से ही एक सुसंगत लोकतंत्र चल सकता है.

जरूरत इस बात की है कि सरकार कोरानावायरस से निपटने के क्रम में आलोचनाओं को धैर्य से सुने और किसी आलोचना में दम हो या वास्तविकता हो तो उसे अपनी नीतियों का हिस्सा बनाने पर विचार करे.

एपीजे अब्दुल कलाम का सबक

इस मायने में मौजूदा सरकार पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से सीख सकती है.

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल क़लाम ने एक बार भारत के नियंत्रक और लेखा परीक्षक (CAG) से कहा था कि ‘उसे सरकार की ग़लतियों को जितनी जल्दी हो सके, बताना चाहिए. ताकि ग़लतियों को वक़्त रहते सुधारा जा सके और बारम्बार दोहराने से बचा जा सके.’ दिवंगत क़लाम साहब के इस नज़रिये को सरकार को अपना सूत्र वाक्य बना लेना चाहिए.

हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि कई और देशों की तरह भारत ने भी कोरोनावायरस से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने में देरी की है. 7 जनवरी को चीनी वैज्ञानिकों ने ‘वुहान वायरस’ के अवतरित होने का ख़ुलासा किया और 23 जनवरी को वुहान को ‘लॉकडाउन’ करना पड़ा. उस समय तक सरकार को शायद स्थिति की गंभीरता का एहसास नहीं था. जब हालात बिगड़ने लगे तो 4 मार्च को प्रधानमंत्री ने ऐलान कर दिया कि वे इस साल होली नहीं मनाएंगे. ऐसा लगा कि अब लॉकडाउन का ऐलान हो जाएगा, क्योंकि अब नेतृत्व को कोरोना की भयावहता समझ में आ चुकी है लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इस बीच, विदेशों से लोग भारत आते रहे.

बहरहाल, ये सब अब बीत चुका है और समय के चक्र को पीछे नहीं मोड़ा जा सकता है. लेकिन ये न भूलें कि कई नेता और विशेषज्ञ फरवरी महीने में ही बता रहे थे कि एक गंभीर समस्या देश में आई हुई है. उस समय सरकार ने उन बातों की परवाह नहीं की. अब ये नजरिया बदलना चाहिए और आलोचना को सकारात्मक नजरिए से देखा जाना चाहिए.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं. यह उनके निजी विचार हैं)

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2 टिप्पणी

  1. SIR
    VERY NICE ARTICLE
    WORLD IS SUFFERING FROM THIS DISEASE. WE CAN SEE MOST COUNTRIES POLITICAL LEADERS ARE WORKING WITH THEIR GOVERNMENT. THEIR IS COMMON
    UNDERSTANDING IN THEM.
    SUGGESTIONS ARE ACCEPTED BY PRESIDENT AND MINISTERS.
    WE CAN’T SEE THIS IN INDIA.
    FORGET PROTOCOL AT MOMENT ASK FOR BEST SUGGESTIONS IN FAVOUR OF ERADICATING THIS TERRORISM OF ‘COVID 19’.

  2. Mukesh ji apne b is lekh ke kariy koi samdhan nahi Diya…dukhad…hai …..sarkar ki sakriyata Kam nahinhai lekin aap ko pata nahi Kya chiye…..lotantra ki duhai dekar….har har aap log pata nahi sarkar se Kya ummid karna chte hai…kejriwal ne Delhi se lakho mazdoron ko buga Diya us PR to aap chup hai

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