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Friday, 22 November, 2024
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चंद्रस्वामी के सहयोगी रह चुके हैं निर्भया के दोषियों के वकील एपी सिंह, कर चुके हैं पुरुषों के लिए अलग मंत्रालय की मांग

निर्भया के दोषियों का मुकदमा लड़ने के लिए एपी सिंह की खूब आलोचना होती रही है लेकिन वे इससे बेफिक्र रहते हैं. वो कहते हैं, 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना.'

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नई दिल्ली: मृत्युदंड के किसी भी दोषी के लिए अंतिम कानूनी उपाय रिव्यू, क्यूरेटिव और दया याचिका होती है. लेकिन 16 दिसंबर 2012 गैंगरेप और मर्डर मामले में चारों दोषी- मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह ने कानूनी लड़ाई लड़कर बचने की हरसंभव कोशिश की जिसका श्रेय उनके वकील एपी सिंह को जाता है.

शुक्रवार सुबह 5:30 बजे चारों दोषियों को फांसी की सजा मिलते ही पूरी लड़ाई खत्म हो चुकी है. ऐसे में उनके वकील ने विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं के जरिए उन लोगों को बचाने की कोशिश की.

उन्होंने अदालतों में कई सारी याचिकाएं डाली और यहां तक कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को भी वो बीच में लेकर आए. उनकी दलील थी कि सजा के तौर पर मृत्युदंड को स्वीकार नहीं किया जा सकता.

गुरुवार शाम को सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पवन गुप्ता की दया याचिका को चुनौती दी और अक्षय कुमार सिंह के लिए दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचे.

लेकिन इन सबके बीच सिंह कई विरोधाभासों वाले व्यक्ति हैं. जो प्रगतिशील सोच के साथ इसके उलट भी विचार रखते हैं.

उन्होंने एक बार कहा था कि अगर ‘उनकी बेटी रात में अपने पुरुष मित्र के साथ घूम रही होती और शादी से पहले शारीरिक संबंध रखती तो वो उसे पेट्रोल डालकर जला देते’. 16 दिसंबर को हुए गैंगरेप की घटना के संदर्भ में सिंह ने यह बात कही थी.

2013 में वो काफी चर्चा में रहे थे लेकिन उसके बाद उन्हें उपेक्षा से देखा जाने लगा.

सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम राजपूत हैं और हमारे लिए हमारी शान ही सबकुछ है.’ ‘अगर आपकी शानो-शौकत चली जाती है तो कुछ भी नहीं जाता, स्वास्थ्य जाने से भी कुछ नहीं जाता लेकिन अगर आपका चरित्र चला जाता है तब आप सबकुछ खो देते हैं.’

सिंह को विवादास्पद गोडमैन चंद्रस्वामी कानूनी क्षेत्र में लेकर आए थे. उन्होंने यौन उत्पीड़न के आरोपी पूर्व भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद को जमानत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई है.


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सिंह ने कहा कि उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में दलील थी कि ‘दोनों जिसमें लड़की और स्वामी जी शामिल हैं, ने एक दूसरे को इस्तेमाल किया और कोई बलात्कार नहीं हुआ था.’ हाई कोर्ट ने बाद में इस बात का हवाला देकर पूर्व भाजपा नेता को जमानत दे दी थी.

वकील एपी सिंह पुरुषों के लिए भी एक मंत्रालय और कमिशन बनाने की बात उठा चुके हैं. उन्होंने कहा था, ‘करीब 50 से 175 पुरुष भारत में रोज़ आत्महत्या करते हैं. जिनमें से बहुत सारे अपनी जिंदगी में महिलाओं से परेशान हो चुके होते हैं.’

मृत्युदंड पाने वाले दोषियों के वकील

जेंडर पर अपने विचारों से इतर सिंह ने 16 दिसंबर गैंगरेप के दोषियों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. उन्होंने कई सारे ऐसे प्रयास किए जिससे दोषियों की मौत की सजा पर रोक लग सके.

क्यूरेटिव, रिव्यू और दया याचिकाओं से इतर सिंह को विनय शर्मा की उस पीटीशन के पीछे माना जाता है जिसमें उसने दिमागी बिमारी, सिज़ोफ्रेनिया और हाथों में जख्म की बात कही थी. एनएचआरसी में मुकेश की मां द्वारा तिहाड़ जेल में राम सिंह की आत्महत्या की जांच और बिहार के औरंगाबाद के स्थानीय अदालत में अक्षय की पत्नी द्वारा तलाक की पीटीशन के पीछे भी सिंह को ही माना जाता है.

पूरी प्रक्रिया में देरी के लिए एपी सिंह की खूब आलोचना भी हुई लेकिन सिंह मानते हैं कि यह अहिंसा के मामलों में से एक है.

सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘आरोपी मृत्युदंड के लायक नहीं थे.’ उन्होंने कहा, ‘मैंने महात्मा गांधी को पढ़ा है और वो स्पष्ट तौर पर लिखते हैं कि मृत्युदंड एक प्रकार की अहिंसा है. उनको बदलने का मौका मिलना चाहिए. अगर फूलन देवी और दूसरे खूंखार अपराधी सुधर सकते हैं तो ये बच्चे क्यों नहीं.’

सिंह ने कहा कि दोषी अक्षय की पत्नी पुनीता देवी के हठ की वजह से ही वह इस मामले के लिए तैयार हुए. सिंह के अनुसार 23 वर्षीय फीजियोथेरेपी की छात्रा के सामूहिक बलात्कार के कुछ दिनों बाद देवी पीतमपुरा के दीपाली स्थित उनके आवास पर आई थीं.

उन्होंने कहा कि मीडिया के दबाव और इस ट्राइल को देखते हुए उन्होंने पहले मामला लेने से मना कर दिया था. सिंह के अनुसार देवी ने जीटी करनाल रोड स्थित उनके फार्म हाउस जाकर उनकी मां विमला सिंह से मुलाकात की.

सिंह के एक जूनियर सहायक के मुताबिक तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने अक्षय की पत्नी को बताया था कि वो अपनी मां के काफी करीबी हैं और वो उनकी बात को नहीं टालते हैं.

देवी ने न केवल तब 63 वर्षीय रही विमला सिंह से बात की बल्कि सिंह की मां ने उन्हें अपने बेटे का वकालतनामा देकर आश्वस्त किया कि उनके बेटे ही उनके वकील होंगे.

लेकिन उसके बाद सिंह को केस के लिए तैयार होने में कुछ समय लगा. अक्षय के परिवार के कुछ नजदीकी सदस्यों ने यह सुनिश्चित किया कि जैसे ही सिंह कोर्ट में उनके लिए दलील शुरू करते हैं वैसे हीं ‘विनय भी अपने परिवार को सिंह को वकील’ करने को कहेगा.


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उसके बाद वो चारों दोषियों के वकील बन गए थे.

चंद्रस्वामी के रह चुके हैं सहयोगी

1972 में दिल्ली में जन्मे सिंह 1998 में लखनऊ की बार में एनरोल करने के बाद से ही लगभग 23 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक किया है और बाद में युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया से क्रिमिनोलॉजी में डॉकरेक्ट की.

सिंह का कानून के क्षेत्र में आना विवादास्पद तांत्रिक और पूर्व ‘गोडमैन’ चंद्रस्वामी के सहारे हुआ था.

स्नातक पूरा करने और ट्रेनी वकील के तौर पर 1997 में ज्वाइन करने के बाद सिंह अदालत में चंद्रस्वामी के मामलों में शामिल होते थे. गोडमैन बिना विवादों के कुछ नहीं थे. बताया जाता है कि उन्होंने ब्रूनेई के सुल्तान, एक्ट्रेस एलिजाबेथ टेलर, ब्रिटिश प्रधानमंत्री एम थेचर, आर्म्स डीलर अदनान खाशोगी और गैंगस्टर दाउद इब्राहिम को सलाह दी थी.

जैन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में राजीव गांधी हत्याकांड में चंद्रस्वामी की भूमिका के लिए एक वॉल्यूम डेडेकेट किया है. राजीव गांधी की हत्या के 17 साल बाद भी ईडी उनकी भूमिका की जांच कर रही थी. चंद्रस्वामी की 2017 में मौत हो गई.

सिंह का गोडमैन के साथ अच्छे रिश्ते थे. सिंह के अनुसार जब उन्होंने अदालत ज्वाइन की तब चंद्रस्वामी ने ही उन्हें कोर्ट, पैंट तोहफे में दिया था. उसके बाद सिंह चंद्रस्वामी के साथ विदेशों की यात्रा पर भी जाते थे.

सिंह और भी अन्य दूसरे हाई-प्रोफाइल मामलों में शामिल रह चुके हैं. 2014 के बरवाला कांड मामले में, जिसमें जगतगुरु तदवदर्शी रामपाल जी महाराज का आश्रम जला दिया गया था और उनके छह शिष्यों की हत्या कर दी गई थी, सिंह ने आश्रम के लिए मुकदमा लड़ा था. उन्होंने यूपी के शाहजहांपुर के योगेन्द्र हत्याकांड के आरोपियों का भी बचाव किया था.

लेकिन 16 दिसंबर मामले ने उन्हें चर्चित किया.

बहुतेरे स्थानीय अदालतों, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दोषियों की याचिका के पीछे सिंह का ही कानूनी दिमाग माना जाता है. क्रिमिनल मामलों के वकीलों का कहना है कि सिंह ने पूरी व्यवस्था का मजाक बनाकर रख दिया.

एक वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर जो सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं, उन्होंने कहा, ‘दो दया याचिका, दो क्यूरेटिव पीटीशन? फांसी की सजा से एक शाम पहले स्थानीय कोर्ट में तलाक की पीटीशन के लिए किसने सलाह दी? आने वाले समय में मृत्युदंड के मामलों के लिए यह भयानक मिसाल है.’


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हालांकि, उनके जूनियर्स उनकी सराहना करते हैं. उनके एक सहयोगी पूछते हैं, ‘जब भी वह कोर्टरुम में चलते हैं, सभी की निगाहें उन पर होती है. आरोपियों का बचाव करने के लिए लोग उनका मजाक उड़ाते हैं लेकिन वे भी एक वकील के लायक हैं, क्या वे नहीं हैं?’

इसके इतर सिंह बेफिक्र रहते हैं. वो कहते हैं, ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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