लखनऊ: यूपी की योगी सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं. लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अखबारों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लेख प्रकाशित हुए हैं जिसमें यूपी का परसेप्शन बदलने, विकास की गंगा बहाने, इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर, अपराध में कमी समेत दावे किए गए हैं. योगी बीजेपी के पहले नेता हैं जिन्होंने मुख्यमंत्रा के तौर यूपी में तीन साल पूरे किए हैं.
इससे पहले बीजेपी से राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह और राम प्रकाश गुप्ता भी सीएम रहे लेकिन तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.
इन तीन सालों में सरकार ने ब्रैंडिंग पर विशेष फोकस भी किया है लेकिन इस बीच कई ऐसे सवाल उठे हैं जिनसे सरकार घिरती दिखी. यहां तक कि किए गए वादे और गिनाए गए आंकड़े भी कुछ ऐसा ही बता रहे हैं. दिप्रिंट ने इन तीन साल के कार्यकाल का विश्लेषण किया.
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रोज़गार देने के दावे लेकिन बेरोज़गारों की संख्या बढ़ी
2017 यूपी चुनाव में संकल्प पत्र (मेनिफेस्टो) में बीजेपी ने 70 लाख रोज़गार देने का वादा किया था लेकिन हाल ही में सामने आया कि प्रदेश में बेरोज़गारी पहले से अधिक बढ़ी है.
हाल ही में जारी सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकाॅनमी की रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में बीते 2019 में 2018 की तुलना से लगभग दोगनी बेरोज़गारी बढ़ी है. 2018 में औसतन बेरोज़गारी 5.91% थी जो 2019 में बढ़कर 9.95% हो गई.
सरकार के श्रम व सेवा नियोजन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीते फरवरी में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि श्रम मंत्रालय की ओर से संचालित ऑनलाइन पोर्टल पर 7 फरवरी 2020 तक करीब 33.93 लाख बेरोज़गार रजिस्टर्ड हुए हैं. स्वामी प्रसाद ने ही जून 2018 तक उत्तर प्रदेश में रजिस्टर्ड बेरोज़गारों की संख्या 21.39 लाख बताई थी. इन आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 12 लाख से अधिक युवा पिछले दो साल में खुद को बेरोज़गार के तौर पर रजिस्टर्ड करा चुके हैं.
यूपी के रहने वाले अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी का कहना है कि ये बात तो सच है कि सरकारी नौकरी छात्रों को कम मिल रही है. कई विभागों में वैकेंसी नहीं आ रहीं तो कहीं परीक्षाएं चल जा रही हैं लेकिन सेल्फ इंप्लाॅयमेंट पर फोकस बढ़ा है. यूपी सरकार को ओडीओपी (वन डिस्ट्रक्ट वन प्रोजेक्ट) पर और अधिक फोकस करना चाहिए. इसके जरिए रोज़गार के नए आयाम पैदा होंगे. इसके अलावा सरकार व कैबिनेट में आर्थिक जगत की समझ रखने वालों को अधिक तवज्जो देनी चाहिए. इस बार का बजट आशावादी था, सरकार के बचे दो साल में उसे हकीकत में उतारना चाहिए.
अगर इन्वेस्टमेंट आया तो कितनों को मिला रोज़गार?
यूपी में फरवरी 2018 में हुए इन्वेस्टर समिट का आयोजन किया गया जिसमें देशभर के टाॅप बिज़नेसमैन ने हिस्सा लिया. सरकार की ओर से जानकारी दी गई कि कुल 1,045 एमओयू साइन किए गए जिससे 4.28 लाख करोड़ का निवेश होगा.
इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख में सीएम योगी ने दावा किया है कि इन्वेस्टर समिट के 371 प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू हो चुका है जिससे 33 लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार मिलेगा.
लेकिन कुछ हफ्ते पहले सरकार के ही औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने कहा था कि साइन किए गए 1,045 एमओयू में से अभी 90 प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू हुआ है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कई बार इस मुद्दे को अपनी प्रेस काॅन्फ्रेंस में उठाया कि जिस तरह से निवेश के नाम पर तीन ग्रैंड इवेंट सरकार की ओर किए गए उनका क्या नतीजा रहा.
वहीं कांग्रेस एमएलसी दीपक सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने सदन में इन्वेस्टर समिट में आए निवेश व रोज़गार से जुड़े सवाल पूछे लेकिन योगी सरकार कोई भी निश्चित आंकड़े नहीं दे पाई. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर इन्वेस्टमेंट आया तो गया कहां.
कानून व्यवस्था सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में
कानून व्यवस्था पर सरकार का दावा है कि काफी सुधार आया है. लूट, डकैती व मर्डर की घटनाएं पिछले तीन साल में कम हुई हैं. वहीं बलात्कार के मामलों में भी कमी आई है. हालांकि एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2018 में यूपी में देशभर में सबसे अधिक बलात्कार के केस (59,445) दर्ज किए गए.
वहीं महिलाओं से अपराध के मामले में कई बीजेपी नेताओं पर भी आरोप लगे. उन्नाव रेप कांड में बीजेपी के विधायक रहे कुलदीप सेंगर दोषी पाए गए. विपक्षी दल व मीडिया के प्रेशर के बाद उनको बीजेपी से निष्कासित किया गया. वहीं लाॅ छात्रा से रेप के मामले में बीजेपा नेता व पूर्व गृह राज्य मंत्री चिन्मयानंद पर आरोप लगा. हालांकि इस मामले में वसूली के आरोप में छात्रा को भी जेल जाना पड़ा.
वरिष्ठ पत्रकार व पाॅलिटिकल कमेंटेटर शरद प्रधान का कहना है कि लड़कियों की सुरक्षा के लिए 2017 में ‘एंटी रोमियो स्काॅयड’ बनाए गए थे जो बनने के कुछ महीने बाद ही गायब दिखे. ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही. बीच बीच में उन्हें दोबारा एक्टिव करने की खबरें भी आईं लेकिन महिला अपराध पर नियंत्रण नहीं दिखा.
योगी सरकार पिछले तीन साल में एनकाउंटर्स को लेकर भी चर्चा में रही. कुछ महीने पहले सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक कुल 3,599 एनकाउंटर हुए हैं जिसमें 73 अपराधी ढेर हुए जबकि 4 पुलिसकर्मी शहीद. इस दौरान पुलिस ने 8,251 अपराधी गिरफ्तार किए गए. वहीं एनएचआरसी की ओर से यूपी सरकार व पुलिस को दो बार नोटिस भी जारी किया गया.
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एंटी-सीएए प्रोटेस्ट के दौरान कार्रवाई पर सवाल
यूपी में एंटी सीएए प्रोटेस्ट के दौरान भी पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल उठे. सरकारी आंकड़ों में तो इस दौरान 19 लोग मारे गए लेकिन विधानसभा में सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि एक भी मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई.
वहीं यूपी पुलिस ने इसी प्रोटेस्ट के दौरान एक हज़ार से अधिक महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में मुकदमे दर्ज किए. वहीं लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से वसूली के होर्डिंग्स भी चौराहों पर लगा दिए गए जिसको सरकार के मंत्री जायज ठहराते रहे. फिलहाल ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
सीएम अपने बयानों के कारण भी रहे चर्चा में
सीएम योगी ने 19 नवंबर 2017 को मीडिया से बातचीत में बयान दिया कि अपराधी यूपी छोड़ेंगे या एनकाउंटर में मारे जाएंगे. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अपराधी अगर अपराध करेंगे, तो ठोक देंगे’
यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने इस पर कहा कि कई बार सीएम के ‘ठोंक दो’ जैसी भाषा बोलने पर सवाल उठा चुके हैं. अखिलेश यादव का कहना है कि जब मुख्यमंत्री खुद बदला लेने की बात करते हैं तो इस सरकार से क्या उम्मीद की जाए.
यही नहीं एंटी-सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हुई हिंसा के बाद योगी ने दोषियों से हर्जाना वसूलने की बात कही. वहीं इन तीन साल में राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली समेत तमाम जगह चुनाव प्रचार के दौरान उनके बयानों की काफी चर्चा रही.
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आवारा पशु बने बड़ी चिंता, गढ्ढा मुक्त सड़क का दावा भी अधूरा
गोरक्षा को लेकर सीएम योगी हमेशा सजग रहे हैं लेकिन पिछले विपक्षी दलों का आरोप है कि तीन साल में अवारा पशुओं से किसानों को जितनी परेशानी हुई उतनी कभी नहीं हुई. कांग्रेस के यूपी चीफ अजय लल्लू ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि गोशाला बनाने के नाम पर केवल मज़ाक किया जा रहा है. हाल ही में आगरा में एक किसान ने आवारा पशुओं से तंग आकर आत्महत्या कर ली. इसी तरह तमाम हाईवे पर आवारा पशुओं के कारण लगातार एक्सिडेंट हो रहे हैं. ये सरकार इस मुद्दे पर फोकस नहीं कर रही है.
अजय लल्लू के मुताबिक, इन तीन साल में मुख्यमंत्री की ओर से यूपी को गढ्ढा मुक्त करने को लेकर कई बार डेडलाइन दी गई लेकिन आए दिन सड़क में गड्ढे से जुड़ी खबरें सामने आती रहती हैं.
करप्शन पर ज़ीरो टाॅलरेंस लेकिन खुद के विधायक ने उठाए सवाल
योगी सरकार के पिछले तीन साल में यूं तो किसी घोटाले से जुड़ा कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया लेकिन बीजेपी के ही विधायकों ने अधिकारियों पर भ्रष्टाचार और मनमानी के आरोप लगाए. इसी कारण बीते 17 दिसंबर को यूपी की विधानसभा में 100 से अधिक बीजेपी विधायक अपनी सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे.
गाज़ियाबाद की लोनी सीट से बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर ने इस मुद्दे को उठाया. नंद किशोर का आरोप था कि उन्हें गाजियाबाद पुलिस ने प्रताड़ित किया है. अब अधिकारी 18-22 प्रतिशत कर कमीशन मांगते हैं जिसके खिलाफ उन्होंने आवाज़ उठाई तो उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. ऐसे में मुख्यमंत्री का भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टाॅलरेंस का सपना कैसे पूरा होगा.
इसके अलावा पिछले साल डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने सीएम योगी अदित्यनाथ को पत्र लिखकर एलडीए (लखनऊ डेवेलपमेंट अथाॅरिटी) में हुए घोटालों की लिस्ट भेजी थी. ये पत्र मीडिया में लीक हो गया. इसके बाद एलडीए को 11 कॉन्ट्रैक्टर के फर्म को ब्लैक लिस्ट करना पड़ा था.
पाॅलिटिकल एक्सपर्ट्स की राय
लखनऊ यूनिवर्सिटी के पाॅलिटिकल साइंस के प्रोफेसर कविराज कहते हैं कि यूपी इतना बड़ा राज्य है कि यहां रातों-रात कुछ नहीं बदल सकता लेकिन जो बहुमत इस सरकार को मिला था उसमें लोगों का विश्वास दिखा था. हालांकि अभी तीन साल में उस तरह के नतीजे सामने नहीं आए हैं. अब इंतज़ार आखिरी के दो साल का है. कई बार सरकारें अपने अंतिम बरस में विकास पर ज़्यादा ज़ोर देती हैं ताकि चुनाव में गिनाया जा सके.
यूपी के पाॅलिटिकल काॅमेंटेटर शरद प्रधान कहते हैं ‘जब योगी जी को सीएम बनाया गया तो योगी जी की ईमानदार छवि पर किसी को शक नहीं था लेकिन कम्युनल पाॅलिटिक्स को लेकर मन में सवाल थे. उम्मीद थी की कुर्सी पर बैठकर वह बदल जाएंगे. शुरुआत में ये देखने को भी मिला लेकिन वह एक मठ के मठाधीश के फ्रेम से ‘सीएम के फ्रेम’ में खुद को नहीं ढाल पाए हैं. अधिकारी भी ये जान चुके हैं इसलिए वो वही बात करते हैं जो मुख्यमंत्री को पसंद होती हैं. शायद तभी किसी अधिकारी ने कानून व्यवस्था बेहतर करने के नाम पर कहा होगा कि एनकाउंटर्स कर दीजिए सब ठीक हो जाएगा लेकिन छोटे बदमाशों को मार दिया गया और फिर डंका पीटा गया कि एनकाउंटर से कानून व्यवस्था बेहतर होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हालांकि ईमानदार छवि के अधिकारियों को मुख्यमंत्री पसंद करते हैं ये बात तो पिछले तीन साल में कई मौके पर नोटिस हुई लेकिन वे अधिकारी के सामने वही बात करते हैं जो उन्हें पसंद होती हैं.’
साथ ही उनका कहना था, ‘इसके अलावा पिछले तीन साल में जिस तरह से वह शहरों के नाम बदल रहे हैं उससे गेम चेंजर से ज्यादा नेम चेंजर की छवि बनती है जिससे उन्हें बचना चाहिए. हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि अगले दो साल वे विकास कार्यों पर ज्यादा फोकस्ड रहें.’
धार्मिक पर्यटन व इंफ्रास्ट्रक्चर पर दिखा फोकस
योगी सरकार के हर बजट में धार्मिक पर्यटन पर विशेष फोकस दिखा. अयोध्या, प्रयागराज, मथुरा और वाराणसी के लिए करोड़ों के प्रोजेक्ट पास हुए. 2019 में हुए प्रयागराज कुंभ को एक ‘ग्रैंड इवेंट’ के तौर पर आयोजित कराने में सरकार कामयाब दिखी. प्रयागराज के स्थानीय अखबारों में भी सरकार के प्रयासों की सरहाना की गई लेकिन बुंदेलखंड व पूर्वांचल के कई जिले अभी भी इंफ्रास्ट्रचर के मामले में पीछे हैं जिनका विकास बुंदेलखंड व पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के माध्यम से सरकार करना चाहती है.
सरकार से जुड़े सूत्रों की मानें तो पूर्वांचल एक्सप्रेस वे 354 किमी लंबा एक्सप्रेस होगा जो लखनऊ और गाजीपुर को जोड़ेगा. यही नहीं इस बार के बजट में मेरठ से प्रयागराज तक के लिए गंगा एक्सप्रेस वे बनाने की बात भी कही गई है. ये 1050 किमी लंबा होगा जो कि भारत में सबसे बड़ा एक्सप्रेस वे कहलाएगा. इसके अलावा कई मेडिकल कालेज व एयरपोर्ट भी बनाने पर सरकार का फोकस दिखा.
सरकार का दावा- यूपी की इमेज को सुधारा
यूपी सरकार के प्रवक्ता व कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि ‘पिछले तीन साल में सीएम योगी के नेतृत्व में यूपी का नाम और मान-सम्मान देशभर में बढ़ा है. यूपी की जीडीपी बढ़ी है जिससे प्रति व्यक्ति आया बढ़ी है.
वहीं रोजगार कितनों को मिला है इसको गिनने का कोई मैकेनिज्म नहीं है लेकिन लाखों युवा सरकार की विभिन्न योजनाओं के जरिए रोजगार पा रहे हैं. कानून व्यवस्था में सुधार आया है इसी कारण यूपी में निवेश आ रहा है. ये पाॅलिटिकल स्टेबिलिटी के कारण संभव हुआ है. हमने यूपी की पुरानी छवि को काफी सुधारा है. पिछली सरकारों से कहीं अधिक काम हमारी सरकार ने महज तीन साल में कर दिखाया.’
यूपी सरकार के तमाम दावों के बावजूद कई विवाद ऐसे आए जिनसे सरकार पिछले तीन साल में कई बार घिरती दिखी. अखबारों में ब्रैंडिंग के जरिए योगी सरकार परसेप्शन बदलने की कोशिश जरूर कर रही है लेकिन कई सवाल के जवाब अभी भी अधूरे हैं.