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Monday, 13 May, 2024
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एंटी-सीएए पोस्टर्स के खिलाफ आदेश देने वाले जजों पर सोशल मीडिया में हो रही थी छींटाकशी, दर्ज हुई एफआईआर

इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा के खिलाफ सोशल मीडिया पर तमाम आपत्तिजनक पोस्ट लिखी गई हैं.

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लखनऊ: हाल ही में लखनऊ प्रशासन को सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के होर्डिंग्स व पोस्टर हटाने के आदेश देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा के खिलाफ सोशल मीडिया पर तमाम आपत्तिजनक पोस्ट लिखी गई है.

इस संबंध में लखनऊ में सोशल एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने एक एफआईआर दर्ज की कराई है. उन्होंने गोमतीनगर थाने में ये एफआईआर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई है.

नूतन का आरोप है कि कई अज्ञात ने न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक और भड़काऊ टिप्पणी की है. दिप्रिंट से बातचीत में नूतन ने कहा है कि सोशल मीडिया पर इस तरह की पोस्ट संवैधानिक व्यवस्था पर एक चोट करती हैं और इससे नफरत फैलने का माहौल बनता है. आईपीसी की धारा 500, अज्ञात संचार द्वारा आपराधिक धमकी के लिए आईपीसी की धारा 507 और आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 के तहत आपत्तिजनक संदेश पोस्ट करने पर एफआईआर दर्ज की गई है.


यह भी पढ़ेंः इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश- लखनऊ में सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के पोस्टर्स तुरंत हटाए जाएं


बता दें कि बीते दिनों लखनऊ में सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के होर्डिंग्स लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रशासन को सभी पोस्टर व होर्डिंग्स हटाने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट ने लखनऊ के डीएम व कमिश्नर से होर्डिंग्स हटाकर 16 मार्च तक रिपोर्ट पेश करने को भी कहा था जिसके बाद योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हाईकोर्ट ने इसे राइट टू प्राइवेसी (निजता के अधिकार) का उल्लंघन माना था. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई है बल्कि इस मामले के लिए एक बेंच का गठन कर दिया है.

लखनऊ में बीते साल सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान हिंसा के आरोपियों के 50 से अधिक होर्डिंग्स लखनऊ में सड़क पर लगाए गए. इन होर्डिंग्स में सार्वजनिक और निजी सम्पत्तियों को हुए नुकसान की डिटेल्स हैं. वहीं इनमें ये भी लिखा है कि सभी से नुकसान की भरपाई की जाएगी.

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1 टिप्पणी

  1. samvadhanic vyavastha he to agar samvidhan koi galti he ya janta ko pasand nahi he to ye court hi to abhivyakti ki aazadi ki swatantrata deta he. Agar is tarah ham logo ki jawan band karenge to wo to abhivyakti ki aazadi ka hanan hoga, ye to nahi hona chahiye.

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