नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बडे की अग्रिम जमानत याचिका सोमवार को खारिज कर दी है. अदालत ने उन्हें सरेंडर करने के लिए तीन हफ्ते का वक्त दिया है. कोर्ट ने उन्हें अपने पासपोर्ट भी सरेंडर करने को कहा है.
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने दोनों कार्यकर्ताओं को तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है. पीठ ने इन दोनों को अपने पासपोर्ट तत्काल जमा कराने का भी निर्देश दिया है.
Bhima Koregaon case: Supreme Court rejects anticipatory bail plea of activists Gautam Navlakha & Anand Teltumbde. The court gives three weeks to Teltumbde & Navlakha to surrender himself. It also asks them to surrender their passports immediately. pic.twitter.com/EvPrfKFI3p
— ANI (@ANI) March 16, 2020
शीर्ष अदालत ने 6 मार्च को इन दोनों को गिरफ्तारी से प्राप्त अंतरिम संरक्षण की अवधि 16 मार्च तक बढ़ा दी थी.
पुणे की सत्र अदालत से राहत नहीं मिलने पर गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बडे ने गिरफ्तारी से बचने के लिए पिछले साल नवंबर में बंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.
इसके बाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ इन दोनों कार्यकर्ताओं ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी.
पुणे की पुलिस ने कोरेगांव भीमा गांव में एक जनवरी, 2018 को हुई हिंसा की घटना के बाद गौतम नवलखा, आनंद तेल्तुम्बडे और कई अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ माओवादियों से कथित संपर्क रखने के आरोप में मामला दर्ज किया था.
इन कार्यकर्ताओं ने पुलिस के इन आरोपों से इंकार किया था.
भीमा-कोरेगांव मामला, नवलखा की अपील पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट के जजों ने खुद को अलग किया था
वहीं इससे पहले बाम्बे हाईकोर्ट ने गौतम की एफआईआर को खत्म करने की अपील खारिज कर दी थी जिसको चुनौती देते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एस रवींद्र भट्ट सहित जजों ने खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था.
जस्टिस भट्ट पांचवे ऐसे जज हैं जिसने इस मामले से खुद को अलग किया था. गौतम के मामले की सुनवाई तीन सदस्यीय पीठ कर रही थी जिसमें जस्टिस अरुण मिश्रा, विनीत सरम और एस रवींद्र भट्ट शामिल थे.
इससे पहले 1 अक्टूबर को ही सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया था. इस पीठ में जस्टिस एनवी रमन्ना, सुभाष रेड्डी और बीआर गवई शामिल थे.
बता दें कि एक जनवरी, 2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव गांव में जातिगत हिंसा को भड़काने में कथित भूमिका के लिए कार्यकर्ताओं को अगस्त 2018 में विभिन्न स्थानों से गिरफ्तार किया गया था.