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Monday, 25 November, 2024
होममत-विमतस्वामी विवेकानंद का 'प्लेग मैनिफेस्टो'- कोरोनावायरस जैसी हर महामारी के लिए एक सबक है 

स्वामी विवेकानंद का ‘प्लेग मैनिफेस्टो’- कोरोनावायरस जैसी हर महामारी के लिए एक सबक है 

चीन के वुहान प्रातं से शुरू हुआ कोरोनावायरस वास्तविक और आभासी दुनिया के समाचार, रिपोर्ट, गपशप, और हर एक के लिए अफवाहों का एक मध्य बिंदु बन गया है. ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद के प्लेग मैनिफेस्टो को याद करने की जरूरत है.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोनावायरस को महामारी घोषित किया है. इस वायरस के संक्रमण से दुनिया में अब तक सात हजार से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. चीन के वुहान प्रांत से उत्पन्न यह तनाव वास्तविक और आभासी दुनिया के समाचार, रिपोर्ट, गपशप, और हर एक के लिए अफवाहों का एक मध्य बिंदु बन गया है.

इस प्रकार की स्वास्थ्य आपात स्थिति भारत या दुनिया के लिए पूरी तरह से नई नहीं है. इस वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए उचित दवाइयां विकसित करने में अभी कुछ और समय लग सकता है.

जब दुनिया के 100 से भी ज्यादा देश कोरोनावायरस के संक्रमण से जूझ रहा है तब 1899 में बंगाल में आए प्लेग (महामारी) और स्वामी विवेकानंद की ‘प्लेग मैनिफेस्टो‘ को याद करने का समय है. यह मैनिफेस्टो हमें मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है.

स्वामी विवेकानंद का ‘प्लेग मैनिफेस्टो’ बंगाली और हिंदी में भी तैयार किया गया था और इसे स्वामी सदानंद और भगिनी निवेदिता की कड़ी मेहनत से जनसंख्या के एक बड़े हिस्से तक पहुंचाया गया था.

प्लेग मैनिफेस्टो में विवेकानंद कहते हैं, ‘भय से मुक्त रहें क्योंकि भय सबसे बड़ा पाप है. मन को हमेशा प्रसन्न रखो. मृत्यु तो अपरिहार्य है, उससे भय कैसा. कायरों को मृत्यु का भय सदैव द्रवित करती है.’ उन्होंने इस डर को दूर करने का आग्रह किया और कहा, ‘आओ, हम इस झूठे भय को छोड़ दें और भगवान की असीम करुणा पर विश्वास रखें. अपनी कमर कस लें और सेवा कार्य के क्षेत्र में प्रवेश करें. हमें शुद्ध और स्वच्छ जीवन जीना चाहिए. रोग, महामारी का डर, आदि, ईश्वर की कृपा से विलुप्त हो जाएगा.’


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स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘घर और उसके परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर, नाली, आदि को हमेशा स्वच्छ बनाए रखें. बासी, खराब भोजन न करें, इसके बजाय ताजा और पौष्टिक भोजन लें. कमजोर शरीर में बीमारी की आशंका अधिक होती है. महामारी की अवधि के दौरान, क्रोध से और वासना से दूर रहें- भले ही आप गृहस्थ हों. उन्होंने अफवाहों से न घबराने और ध्यान न देने को कहा.’

भगिनी निवेदिता और स्वामी विवेकानंद के अन्य मठवासी शिष्य ने कलकत्ता के लोगों की सेवा करने के लिए दिन रात मेहनत की. स्वामी विवेकानंद ने उनसे आग्रह किया, ‘भाईयों अगर आपका मदद करने वाला कोई नहीं है, तो बेलूर मठ में श्री भगवान रामकृष्ण के सेवकों को तुरंत सूचना भेजें. शारीरिक रूप से संभव हर मदद में कोई कमी नहीं होगी.’

मार्च, 1899 में कलकत्ता में प्लेग फैल गया था. रामकृष्ण मिशन ने प्लेग से निवारण के लिए एक समिति बनाई जिसमें, भगिनी निवेदिता को सचिव, स्वामी सदानंद को पर्यवेक्षक और स्वामी शिवानंद, नित्यानंद और आत्मानंद को सदस्य बनाया गया.

कलकत्ता में 32 मार्च 1899 को प्लेग से लड़ने के लिए राहत काम शुरू किया गया जो शहर के इतिहास में यादगार बन गईं. स्वामी सदानंद संगठनात्मक कार्यों में निपुण थें, उन्होंने शम्बाजार, बाघबाजार और अन्य पड़ोसी इलाकों की मलिन बस्तियों की सफाई शुरू की. वे स्वीपर-लड़कों के एक समूह के साथ सफाई कार्य में लग ग‌ए. 5 अप्रैल को, भगिनी निवेदिता, जो इस पूरे कार्य का समन्वय कर रही थीं, उन्होंने वित्तीय सहायता के लिए अखबारों के माध्यम से आह्वान किया.

भगिनी निवेदिता ने स्वामी विवेकानंद के साथ मिलकर प्लेग पर व्याख्यान दिया. 21 अप्रैल को उन्होंने ‘द प्लेग एंड स्टूडेंट्स ड्यूटी’ पर क्लासिक थिएटर में छात्रों से बात की. भगिनी निवेदिता ने उनसे पूछा, ‘आप में से कितने लोग स्वयंसेवक बनकर झोपड़ियों और बस्तियों को साफ करने में मदद करेंगे?’ उनके इस व्याख्यान को सुनकर कई लोग समाज की इस व्यथा के निवारण के लिए प्रवृत्त हुए और कई छात्र मदद के लिए आगे आए.

इस पूरे काम को एक संगठित तरीके से अंजाम दिया गया था. जिसमें भगिनी निवेदिता ने प्लेग से लड़ने के लिए निवारक उपायों से युक्त मुद्रित हैंडबिलों को वितरित किया. एक दिन, उन्होंने स्वयंसेवकों की कमी होने पर गलियों की सफाई स्वयं शुरू कर दी. मोहल्ले के नौजवानों ने शर्म महसूस की और झाडू उठाकर, कूड़ेदान और रास्ते को साफ करके उनका समर्थन किया.

डॉ राधा गोबिंदा कर, उन दिनों के प्रख्यात चिकित्सकों में से एक थे और भगिनी निवेदिता के काम के चश्मदीद गवाह थे. वे कहते हैं, ‘एक दिन, जब मैं चैत्र के महीने में दोपहर के समय घर लौट रहा था उसी समय मरीजों को देखने के पश्चात मैंने एक यूरोपीय महिला को दरवाजे के पास धूल भरी कुर्सी पर बैठे देखा. वह भगिनी निवेदिता थी. वह कुछ जानकारी लेने के लिए यहां आई थी.’


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प्लेग के काम का विशद विवरण एक लेख में दिया गया है, जिसका शीर्षक ‘द प्लेग’ है जो कि उनकी किताब ‘स्टडिस फ्राम ए ईस्टर्न होम’ में दिया गया है. अपने पत्रों में उन्होंने अपनी मित्र, मिसेज कूलस्टन को लिखा था, ‘यहां बहुत सारा कार्य है, केवल यहां रहना ही अपने आप में कार्य है’.

भगिनी निवेदिता और उनकी टीम ने बीमारी को नियंत्रित करने में सफल होने से पहले लगातार एक महीने तक अपने प्रयासों को जारी रखा.

इस प्रकार हमें आज के वर्तमान परिवेश में जहां ‘कोरोनावायरस’ के बारे में डर, भय और अफवाह फैलाई जा रही है उससे बचना चाहिये और स्वामी विवेकानंद के इस संदेश और भगिनी निवेदिता के कार्य को ध्यान में रखते हुए सावधानियां बरतनी चाहिए जो राज्य सरकारें और भारत सरकार लोगों तक पहुंचा रही हैं.

(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं. यह उनके निजी विचार हैं)

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1 टिप्पणी

  1. सराहनीय कार्य ।। उत्तम विचार ।। भाई साहब भगनी निवेदिता भी कार्यकर्ता थीं वो प्लेग से लड़ी और अपने संगठन व विचार को समग्र विश्व के सामने वरिचित कराया ।। किया यही दायित्व हम जैसे कार्यकर्ताओं का नहीं बनता है कि हम अपने आस के लोगों को कोरोना के भय से मुक्त कराए और अपने संगठन व कार्यकर्ता होने का कर्मठ व निष्ठा से परिचय कराए ।।
    नन्द के आनंद की जय विवेकानंद की ??

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