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Friday, 22 November, 2024
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पेट्रोल और डीजल के दामों में भारी कमी, वैश्विक तेल बाज़ार में बनी हुई है अस्थिरता

भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत से अधिक तेल आयात करता है. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी से देश के आयात बिल में कमी आएगी और इससे खुदरा कीमतें भी कम होंगी.

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नई दिल्ली: कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में लगातार गिरावट के बीच स्थानीय बाजार में पेट्रोल का भाव आठ महीने में पहली बार 71 रुपये प्रति लीटर से नीचे आ गया. पेट्रोल के दाम 2.69 रुपए गिरकर 70.29 रुपए हो गए हैं वहीं डीजल के दामों में 2.33 रूपए की कटौती हुई है. दिल्ली में डीजल का दाम 63.01 रुपए है.

सऊदी अरब और रूस के बीच तेल बाजार में कीमत युद्ध (मूल्य घटाने की होड़) छिड़ने से सोमवार को कच्चा तेल अंतराष्ट्रीय वायदा बाजार में 31 प्रतिशत तक टूट गया था. वर्ष 1991 के खाड़ी युद्ध के कच्चे तेल की कीमतों में यह सबसे बड़ी गिरावट है.

इससे भारत को वित्तीय लाभ हो सकता है क्योंकि देश पेट्रोलियम ईंधन के लिए 85 फीसदी तक आयात पर निर्भर करता है.

तेल उत्पादक और उसके सहयोगी देशों के संगठन ओपेक प्लस की शुक्रवार को हुई बैठक में उत्पादन घटाने पर सहमति नहीं बनने से निर्यातक देशों के बीच कीमत युद्ध छिड़ गया है.

सोमवार को ब्रेंट कच्चा तेल भाव 31 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. गोल्डमैन सैश ने चेतावनी दी है कि भाव 20 डॉलर तक जा सकता है.

भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत से अधिक तेल आयात करता है. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी से देश के आयात बिल में कमी आएगी और इससे खुदरा कीमतें भी कम होंगी.

हालांकि इससे पहले से दबाव में चल रही ओएनजीसी जैसी कंपनी की हालत और खराब होगी. यद्यपि विभिन्न क्षेत्रों के लिए लागत कम होने से देश की अर्थव्यवस्था को थोड़ा संबल मिलेगा. इससे कई क्षेत्रों के लिये कच्चे माल की लागत कम होगी.

हालांकि ईंधन की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 27 फरवरी के बाद से नीचे आने का रूझान बना हुआ है. तब से अब तक पेट्रोल और डीजल की कीमत में कमी आ चुकी है.

इस पूरे घटनाक्रम में केवल एक ही बात हतोत्साहित करने वाली है कि रुपये के कमजोर होने से भारत को विदेशों से समान मात्रा में सामान खरीदने के लिए अब अधिक भुगतान करना होगा.

पेट्रोलियम मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना एवं आकलन प्रकोष्ठ अनुसार इस महीने में खत्म होने वाले वित्त वर्ष 2019-20 में 22.5 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर भारत को कुल लगभग 105.58 अरब डॉलर या 7.43 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ेगा. जबकि 2018-19 में 22.65 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर भारत ने 111.9 अरब डॉलर यानी 7.83 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया था.

प्रकोष्ठ ने 2019-20 के लिए भुगतान का यह अनुमान कच्चे तेल की औसत कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल और स्थानीय मुद्रा के 71 रुपये प्रति डॉलर पर रहने को आधार बनाकर लगाया था.

कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की कमी से भारत का आयात बिल 2,936 करोड़ रुपये कम होता है. इसी तरह डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में एक रुपये प्रति डॉलर का बदलाव आने से भारत के आयात बिल पर 2,729 करोड़ रुपये का अंतर पड़ता है.

तेल कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि देश के आयात बिल पर अगले वित्त वर्ष की शुरुआत में अप्रैल में फर्क पड़ सकता है लेकिन वह तेल और मुद्रा बाजार में अनिश्चिता के चलते इसके बारे में कोई सही अनुमान नहीं लगा सकते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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