नई दिल्ली: पिछले साल सोमवार दोपहर की एक बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसी तकनीकी प्रोजेक्ट से जुड़े एक अधिकारी से काम की प्रगति के बारे में पूछ लिया.
अधिकारी ने उत्साहपूर्वक बताना शुरू कर दिया कि वह क्या कुछ कर चुका है. उसने साथ ही ये भी कहा कि समय मिलने पर शीघ्र ही वह उनके सामने प्रोजेक्ट से जुड़ा नवीनतम ब्यौरा पेश करना चाहेगा.
बैठक में मौजूद एक अन्य अधिकारी के अनुसार शाह ने पलट कर जवाब दिया, ‘जल्दी क्यों? कल क्यों नहीं… मेरे पास खूब समय है.’
इसके बाद तो घबराहट का माहौल बन गया: अधिकारी ने अभी प्रोजेक्ट तैयार किया ही नहीं था और उसे गृहमंत्री की त्वरित प्रतिक्रिया का बिल्कुल अनुमान नहीं था.
उपरोक्त जानकारी देने वाले अधिकारी के अनुसार इस वाकये को गृहमंत्री के रूप में अमित शाह के कार्यकाल के सारांश के तौर पर देखा जा सकता है. आईएएस और आईपीएस अधिकारी अब अपनी फाइलों को सावधानीपूर्वक पढ़ने और नवीनतम तथ्यों से अवगत रहने की कोशिश करते हैं.
विगत में जहां नौकरशाह गृहमंत्री के करीब रहना चाहते थे, वहीं अब वे उनसे दूरी रखना पसंद करते हैं. ये इसलिए नहीं है कि शाह उन पर गरम होते हैं या उन्हें अपमानित करते हैं– ऐसी बात बिल्कुल नहीं है. पर अधिकारी के अनुसार उनमें से बहुतों को उनकी ‘भयावह दृष्टि, पथरीली आंखों और जड़वत चेहरे’ से घबराहट होती है.
एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘आपके प्रेज़ेंटेशन देते समय आपको घूरने का उनका तरीका ही घबराहट पैदा करने के लिए काफी है. कुर्सी पर बैठने का उनका अपना अलग ढंग है– बायीं ओर झुका शरीर, चेहरा नीचे, ऊपर की ओर देखती आंखें और बायांं हाथ ठोड़ी पर. ये उनका ट्रेडमार्क है.’
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नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में शाह सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरे हैं, सारे बड़े फैसलों में उनकी राय ली जाती है, और वह कई मंत्री समूहों (जीओएम) के प्रमुख हैं. इस कारण से न सिर्फ नौकरशाहों के साथ उनका आमने-सामने का संपर्क बढ़ा है, बल्कि ये मुलाक़ातें आज नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों में सर्वाधिक चर्चित भी हैं.
शाह को नौकरशाह किस रूप में देखते हैं और गृहमंत्री के साथ काम करने का उनका निजी अनुभव क्या है, ये जानने के लिए दिप्रिंट ने कई वरिष्ठ अधिकारियों से बात की है.
‘जड़वत दृष्टि’
शाह के सामने नौकरशाहों की घबराहट का मुख्य कारण है उनकी ‘जड़वत दृष्टि’.
एक अधिकारी ने कहा, ‘निश्चय ही वह भय पैदा करते हैं. यदि आपको तथ्यों की पकड़ नहीं है या आपके पास उनके सवालों के पूरे जवाब नहीं हैं, तो वह आपको इस तरह घूरेंगे कि आपकी कंपकंपी छूट जाएगी.’
एक अन्य अधिकारी ने भी ऐसी ही बाती कही, ‘वह अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे आपको ठंडी नज़रों से घूरेंगे, पलक झपकाए बिना. यह असहज करने वाली टकटकी होती है. आप स्वत: ही जान जाते हैं कि वह आपसे ज़्यादा खुश नहीं हैं तथा आपको बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए.’ इस अधिकारी ने कहा कि शाह आपको ‘बातों में उलझाने’ का मौका नहीं देते क्योंकि वह सीधे तथ्यों की बात करते हैं और यदि आपकी तैयारी नहीं है तो वह अपना समय खराब नहीं करेंगे.
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘पुलिस विभाग कैसे काम करता है, इसके बारे में उन्हें विस्तृत जानकारी है. युवा नेता के रूप में उन्होंने पुलिस स्टेशनों को करीब से देखा है और आम लोगों के साथ काम किया है, इसलिए वह अन्य मंत्रियों या वरिष्ठ नौकरशाहों की तरह ज़मीनी हकीकत से दूर नहीं हुए हैं. तभी उन्हें खाली बातों में उलझाना आसान नहीं है.’
छोटी-छोटी बातों पर भी नज़र
किसी प्रेज़ेंटेशन या बैठक से पहले आजकल नौकरशाह फाइलों को सावधानीपूर्वक पढ़ते हैं, क्योंकि सवाल किसी भी बात पर पूछे जा सकते हैं.
एक अधिकारी ने कहा, ‘वह छोटी-छोटी बातों पर भी नज़र रखते हैं और अक्सर गहरे सवाल करते हैं. कई बार ज़मीन से कटे वरिष्ठ नौकरशाहों को उनके बुनियादी सवालों के जवाब नहीं सूझते, वे हक्के-बक्के रह जाते हैं. और उन्हें सर्वाधिक भय इसी बात को लेकर होता है कि पता नहीं वह क्या पूछ डालें.’
एक बार एक अधिकारी पॉवर प्वाइंट प्रेज़ेंटेशन दे रहा था जिसमें 50 स्लाइडें थीं. शाह अपने विशिष्ट अंदाज़ में ये सब देखते रहे. अधिकारी ने जब वर्णन करना शुरू किया तो शाह ने उसकी बात काटते हुए कहा ‘नेक्स्ट’. अधिकारी अभी अगली स्लाइड पर पहुंचा ही था कि शाह ने फिर कहा, ‘नेक्स्ट’.
अधिकारी ने इस बारे में आगे बताया, ‘वह एक ही मुद्रा में बैठे थे, बस होठ हिल रहे थे. उन्होंने अधिकारी से 25-26 स्लाइडों को आगे बढ़वाया. एक स्लाइड पर अधिकारी नहीं रुका… शायद वह उस पर चर्चा नहीं करना चाहता था. पर शाह ने उसे पीछे जाने का निर्देश देते हुए कहा, ‘पीछे जाइए, अब मुझे इसके बारे में बताइए. इसके बाद तो अधिकारी हकलाने पर उतर आया.’
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एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘आप उनके सामने यों ही कोई विचार छेड़ के बच नहीं सकते. यदि आप कुछ कह रहे हैं तो आपको उस बारे में पूरी तरह निश्चित होना चाहिए. यदि उन्होंने कुछ पूछा और आपके पास जवाब नहीं है, तो आपको उसी दृष्टि का सामना करना पड़ेगा जिससे कि हर कोई बचना चाहता है.’
इस अधिकारी ने एक और किस्सा साझा किया. एक बार प्रेज़ेंटेशन दे रहे एक वरिष्ठ नौकरशाह से शाह ने एक नीतिगत सवाल किया. अधिकारी के पास पक्का जवाब नहीं था. वह जवाब देने का प्रयास कर ही रहा रहा था कि शाह ने कहा, ‘आप रहने दें. जिसको फ़ैक्ट्स पता है, उसको बोलो आकर बात करे.’
अधिकारी के अनुसार, ‘इसके बाद वहां एक अजीब तरह की चुप्पी पसर गई और वह (शाह) उठकर निकल गए.’
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि शाह हमेशा ही ‘व्यावहारिक पहलुओं’ पर ज़ोर देते हैं, और अक्सर ये जानना चाहते हैं कि कैसे कोई नीति या पहल जनता को प्रत्यक्ष रूप से लाभांवित करेगी.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘छोटे से छोटे फैसलों के बारे में भी शाह जानना चाहते हैं कि आम जनता पर उनका क्या असर होगा… क्या उनसे जनता का भला होगा, और कैसे. किसी फैसले के बारे में उनकी ये भी जिज्ञासा होती है कि फैसले का किसी तरह के विरोध की आशंका तो नहीं है, जनता उसे नापसंद तो नहीं करेगी, और किस तरह से फैसला व्यापक राष्ट्रीय हित में है. इस कारण अब प्रेज़ेंटेशन के समय अधिकारी हर तरह के सवाल के लिए तैयार होकर आते हैं.’
दबाव बनाने वाला सख़्त बॉस
एक अधिकारी के अनुसार शाह ‘काम लेने के मामले में बहुत सख़्त और दबाव बनाने’ वालों में से हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘उनका मानना है कि यदि किसी काम को किया जाना है, तो उसे किया जाना चाहिए, वो भी नियत समय के भीतर और निर्धारित तरीके से. समय सीमा के मामले में वह बहुत ही सख़्त हैं. वह अपने दिए निर्देश को कभी नहीं भूलते हैं और कार्य में प्रगति की रिपोर्ट भी मांगते हैं. ऐसे में किसी के लिए बचना संभव नहीं रह जाता है.’
अधिकारी ने कहा, ‘शाह नौकरशाहों को हमेशा याद दिलाते हैं कि उन्हें उनकी उपलब्धियों और सफलताओं में कोई दिलचस्पी नहीं है. उनके अनुसार वह एक संकटमोचक हैं, और वह अधिकारियों से उनकी समस्याओं, कमजोरियों और चुनौतियों की जानकारी चाहते हैं. वह हमेशा पूछेंगे, ‘ये काम अटका क्यों? क्या आपको मेरी स्वीकृति चाहिए, पीएम की मंज़ूरी चाहिए? मुझे बताइए, मैं करता हूं.’
अधिकारी के अनुसार शाह नौकरशाहों के लिए काहिली की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘उन्हें फाइलों के एक जगह से दूसरी जगह घूमने की बात पसंद नहीं है. वह समस्याओं का तुरंत समाधान चाहते हैं. यदि किसी बात पर किसी टिप्पणी की दरकार है तो ऐसा तत्काल किया जाए.’
अधिकारी के अनुसार शाह उन विरले मंत्रियों में से हैं जो 10 बजे रात तक मंत्रालय में रहते हैं.
गृह मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा कि जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो शाह सप्ताह में चार दिन ऑफिस आते हैं, और बाक़ी दिन वह अपने निवास पर स्थित कार्यालय से काम करते हैं. वह ये सुनिश्चित करते हैं कि ऑफिस की कोई फाइल उन्हें घर लेकर नहीं जाना पड़े.
घर पर उनका पूरा ध्यान भाजपा नेता की अपनी भूमिका पर होता है.
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मंत्रालय के सूत्र ने कहा, ‘कोई भी फाइल या कोई भी नौकरशाह घर पर नहीं आता. सारा प्रशासनिक कार्य नॉर्थ ब्लॉक स्थित ऑफिस में ही निपटाया जाता है. वह 10 बजे रात तक ऑफिस में रहते हैं और दिन भर में 30 से अधिक बैठकों में भाग लेते हैं. हर दिन उनके लिए बैठकों की लिस्ट तैयार की जाती है जो आमतौर पर पांच-छह पृष्ठों की होती है. वह लिस्ट का अध्ययन करते हैं उसे एक पेज में सीमित कर देते हैं. इसके बावजूद, रोज़ाना 30 के करीब बैठकें हो जाती हैं.’
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि शाह कभी भी ‘ना’ नहीं सुनना चाहते हैं. अधिकारी के अनुसार, ‘किसी में उन्हें ना कहने का साहस भी नहीं है. पर वह हमेशा अपनी टीम को बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.’
ये पूछे जाने पर कि क्या अधिकारियों को उनसे सवाल करने की अनुमति होती है, अधिकारी ने कहा, ‘उनसे कौन सवाल करेगा? कोई नहीं करता. पर उन्हें ये श्रेय देना होगा कि किसी बैठक या प्रेज़ेंटेशन के दौरान वह अपने विचारों पर हमारी राय मांगते हैं, और कहते हैं कि वह हर तरह के फ़ीडबैक के लिए तैयार हैं.’
‘अधिकतर मौक़ों पर, यदि किसी अधिकारी के पास फ़ीडबैक देने के लिए कुछ है, तो वह कागज़ पर उसे लिखकर गृह सचिव को देता है, जो ज़रूरी समझने पर उसका उल्लेख कर देते हैं.’
हमेशा उपलब्ध
भले ही अधिकतर अधिकारी शाह से भय खाते हों, पर एक बात की सब तारीफ करते हैं कि शाह हमेशा ‘उपलब्ध’ रहते हैं.
एक अधिकारी ने कहा, ‘वह नए विचारों पर चर्चा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. यदि किसी के पास कोई नया विचार है या कोई किसी नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, तो शाह हमेशा उससे बात करने के लिए उपलब्ध रहते हैं.’ अधिकारी के अनुसार इसी कारण कोई उन्हें खुश करने के लिए बेमतलब काम नहीं करता या झूठ नहीं बोलता.
अधिकारी ने कहा, ‘यदि किसी बैठक में उन्होंने किसी अधिकारी से पूछ लिया कि वह नया क्या कर रहा है, और अधिकारी ने किसी बड़ी चीज़ पर काम करने के बारे में झूठ बोला, तो शाह तुरंत कहेंगे कि ‘मुझे दिखाइए कितना काम हो गया.’ इसके बाद यदि अधिकारी ने कहा कि उन्हें जब समय होगा तो वह उन्हें इस बारे में विस्तार से बताएंंगे, तो शाह तपाक से कहेंगे, ‘मेरे पास टाइम ही टाइम है, कल आ जाऊं?’
अधिकारी ने हंसते हुए कहा, ‘अब ऐसे में झूठ का स्कोप कहां है? आप उनसे कहेंगे कि आप किसी चीज़ पर काम कर रहे हैं और वह काम में हुई प्रगति के बारे में जानना चाहेंगे और वह खुद आकर देखने की इच्छा जताएंगे. आप फिर कहां जाएंगे? इसलिए अपना मुंह तभी खोलो जब आपको भरोसा हो कि आपके पास दिखाने के लिए कुछ है.’
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