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Friday, 22 November, 2024
होमदेशन नौकरी है, न पैसा कैसे कराऊं कुपोषित बच्ची का इलाज, एनएचआरसी के यूपी सरकार को नोटिस के बाद हरिश्चंद्र ने सुनाई आपबीती

न नौकरी है, न पैसा कैसे कराऊं कुपोषित बच्ची का इलाज, एनएचआरसी के यूपी सरकार को नोटिस के बाद हरिश्चंद्र ने सुनाई आपबीती

ओझागंज गांव के रहने वाले 40 वर्षीय हरिश्चंद का कहना है कि बस्ती जिले की खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण वह अपने परिवार के चार सदस्यों को खो चुके हैं. वहीं उनकी एक बेटी जो अभी बची है वो कुपोषित है.

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लखनऊ/बस्ती: बस्ती जिले के ओझागंज गांव में बीते 6 साल में एक परिवार के 4 सदस्यों की कुपोषण से मौत होने के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बीते बुधवार योगी सरकार को नोटिस जारी किया है. ओझागंज गांव के रहने वाले 40 वर्षीय हरिश्चंद्र का कहना है कि बस्ती जिले की खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण वह अपने परिवार के चार सदस्यों को खो चुके हैं. वहीं उनकी एक बेटी जो अभी बची है वो कुपोषित है. उसका ठीक से इलाज नहीं हो पा रहा है.

हरिश्चंद्र ने दिप्रिंट को बताया कि कुपोषण के कारण उसका परिवार तबाह हो गया. पिछले छह सालों में उसके परिवार में चार लोगों की जान जा चुकी है, एक बेटी की हालत गंभीर है. लेकिन कोई भी आर्थिक मदद करने को तैयार नहीं. स्थानीय मीडिया में आई खबर के बाद सामुदायिक केंद्र के डाॅक्टरों ने उसकी चार वर्षीय बेटी को जिला अस्पताल रेफर कर दिया. जहां से डाॅक्टर ने चेकअप के बाद गोरखपुर के मेडिकल काॅलेज जाने को कहा. हरिश्चंद्र ने बताया कि बेटी को ले जाने के लिए एंबुलेंस तो दे दी गई, लेकिन मेडिकल काॅलेज में कहां और कैसे भर्ती कराना है ये नहीं बताया गया. वहीं एंबुलेंस ड्राइवर ने कहा कि मेडिकल काॅलेज के गेट तक उसकी छोड़ने की जिम्मेदारी है, लड़की का इलाज हो पाएगा या नहीं इसके वह गारंटी नहीं ले सकता. निराश हरिश्चंद्र बेटी को लेकर वापस घर लौट आया.

 

सरकारी सिस्टम के भेंट चढ़ा इलाज

हरिश्चंद्र ने बताया कि न उसके पास एक भी रुपये जेब में है और न ही गोरखपुर में कोई जान पहचान, जिसके जरिए वो इलाज कराए. उसने डीएम बस्ती के समक्ष भी किसी और से लिखवाकर अपना निवेदन पत्र रखा, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. हालांकि, डीएम आशुतोष निरंजन से जब दिप्रिंट ने बात करने का प्रयास किया तो उनके ऑफिस स्टाफ ने सीएम से वीडियो काॅनफ्रेसिंग का हवाला देते हुए उन्हें व्यस्त बताया. वहीं, डीएम द्वारा बुधवार को ही न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए बयान में कहा गया है कि परिवार को चिकित्सा से संबंधित सारी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं. वहीं हरिश्चंद्र की एक बेटी मानसिक तौर पर ठीक नहीं है न कि कुपोषित है, उसका इलाज कराया जाएगा.

वहीं, इस मामले में जब बस्ती के एडिशनल डायरेक्टर हेल्थ सीके शाही से दिप्रिंट ने संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वह मामले के बारे में पता करने की कोशिश कर रहे हैं, फिलहाल उन्हें कोई जानकारी नहीं है.


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नोटिस जारी करते हुए एनएचआरसी की ओर से कहा गया कि कुपोषण और मूल सुविधाओं की कमी से ऐसी दुखद मौतों की सूचना उसके लिए चिंता की बात है. इस पर सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है. एनएचआरसी ने इस मामले में स्थानीय मीडिया की खबरों के आधार पर स्वत: संज्ञान लिया था.

रिक्शा चलाकर पालता था पेट

हरिश्चंद्र ने बताया कि लगभग 20 साल पहले उसका विवाह हुआ था, जिसके बाद वह दिल्ली मजदूरी करने चला गया. दिल्ली के करोल बाग इलाके में उसने कई साल तक रिक्शा चलाया. इस बीच उसकी पत्नी ने पहले बच्चे को जन्म दिया. पहला बच्चा काफी कमजोर था. कुल साल बाद वह मर गया. हालांकि, इस बीच तीन लड़कियां भी हुई. लेकिन उसकी पत्नी लगातार बीमार रहने लगी. इलाज का खर्चा बढ़ने के कारण वह वापस बस्ती आ गया. उसने कुछ साल बस्ती में मजदूरी की लेकिन घर का खर्चा चलना मुश्किल होता रहा.

बीच-बीच में वह दिल्ली भी जाता रहा. लेकिन वहां भी रोजगार की व्यवस्था नहीं हो पाई. इस बीच एक के बाद एक उसकी दो बच्चियों की मृत्यु हो गई और पत्नी की तबीयत भी बिगड़ गई. हरिश्चंद के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों से मजदूरी मिलनी भी कम हो गई थी. तमाम प्रयासों के बात भी रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं बन पा रही थी. इस बीच उसने बस्ती के कप्तानगंज इलाके के सामुदायिक केंद्र व बस्ती जिले के सरकारी अस्पताल में अपनी पत्नी का इलाज कराया. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. लगभग छह महीने पहले उसकी पत्नी की भी मृत्यु हो गई. घर में अब 4 साल की बच्ची विंध्यवासिनी बच्ची है, जो शारीरिक व मानसिक तौर पर कमजोर है. जिला अस्पताल में जब वजन कराया गया तो अतिकुपोषित श्रेणी में निकला. डाॅक्टर बताते हैं कि उसे बेहतर इलाज की जरूरत है.


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हरिश्चंद्र का कहना है कि यहां के सरकारी अस्पताल में उसके परिवार में किसी का भी बेहतर इलाज नहीं हो पाया और निजी अस्पताल में उस पर इलाज कराने का पैसा नहीं है. हरिश्चंद एनएचआरसी के बारे में नहीं जानते हैं, लेकिन उन्हें इस बात की ये उम्मीद जरूर है कि शायद इस नोटिस के बाद यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल सबके सामने आए तो कुछ व्यवस्था परिवर्तन हो सके.

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