नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने चुनाव आयोग को कहा कि वो आधार कॉर्ड और वोटर आईडी के कानूनी प्रावधानों में बदलाव करने जा रही है जिससे देश के दूरदराज के इलाकों से भी वोटिंग करने का सिस्टम दुरुस्त हो जाएगा.
मीडिया को जारी किए गए एक स्टेटमेंट के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और सुशील चंद्रा समेत आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कानून सचिव नारायण राजू और कानून मंत्रालय के अन्य अधिकारियों के साथ मंगलवार को चुनाव सुधार पर चर्चा की.
यह जानकारी मिली है कि सरकार ने चुनाव प्रक्रिया पर नज़र रखने वाली संस्था को आश्वस्त किया है कि वो आने वाले कुछ हफ्तों में कैबिनेट के सामने प्रस्ताव रखेगी. हालांकि आरपीए कानून 1951 में बदलाव की जरूरत पडे़गी.
पिछले साल अगस्त में कानून मंत्रालय को लिखी एक चिट्ठी में चुनाव आयोग ने कहा था कि चुनावी व्यवस्था को सुधारने के लिए आधार और वोटर आईडी को जोड़ना राष्ट्रीय हित में है जो मतदाताओं का दोहराव होने से बचाएगा. आयोग ने ये मंत्रालय से जरूरी कानूनी संशोधन करने के बारे में पूछा था.
चुनाव आयोग ने कहा था कि ‘चुनावी व्यवस्था को साफ बनाने के लिए कमिशन चाहता है कि एक आईडी नंबर हो जो आधार से जुड़ा हुआ हो.’
अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि बाद के महीनों में, मंत्रालय ने आयोग से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि मतदाताओं की गोपनीयता के उल्लंघन की कोई संभावना नहीं है.
आयोग और मंत्रालय ने कमिशन के प्रस्ताव पर बात की जिसमें देश के किसी भी हिस्से से वोट डालने की व्यवस्था की बात हुई इसके बजाए कि व्यक्ति का वोटिंग क्षेत्र क्या है. इसके लिए भी आधार से जोड़ना जरूरी है.
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एक वरिष्ठ चुनाव अधिकारी ने हाल ही में कहा था कि आयोग आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर तकनीक पर काम कर रहा है. जिससे लोगों को बिना पोलिंग स्टेशन पर जाए हुए भी वोट डालने की सुविधा दी जाएगी.
कानूनी संशोधन की जरूरत
अगस्त के लिखे पत्र के अनुसार चुनाव आयोग ने आधार एक्ट के अनुसार कहा था, ‘किसी भी सेवा के प्रावधान के लिए आधार नंबर धारक का अनिवार्य प्रमाणीकरण’ या ‘किसी व्यक्ति की पहचान के सत्यापन के लिए आधार संख्या का उपयोग’ केवल संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा आवश्यक है. आयोग इसलिए आरपीए में संशोधन करने के लिए कह रहा है.
चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार, निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी सत्यापन के प्रयोजन के लिए एक संभावित या पंजीकृत मतदाता की आधार संख्या प्रस्तुत करेगा.
प्रस्तावित संशोधन ये भी साफ करता है कि अगर कोई आधार नंबर प्रस्तुत करने में सफल नहीं होता है तो उसे चुनावी व्यवस्था में शामिल होने से मना नहीं किया जाएगा और न ही उसका नाम डिलीट किया जाएगा. ऐसे मामले में वैकल्पिक पहचान पत्र इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके अतिरिक्त, मतदाता पंजीकरण के नियम 1960 के बाद से मतदाता सूची में शामिल करने के लिए आवेदन के लिए विभिन्न रूपों का उपयोग करने की अनुमति देता है, उनके सभी स्वरूपों को बदलना होगा.
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