नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के करीब 50 छात्रों ने सोमवार को जंतर मंतर पर एकत्र होकर संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन किया.
प्रदर्शनकारी शरजील इमाम और डॉ कफील खान को रिहा करने की मांग कर रहे थे.
इमाम को देशद्रोह के मामले में पिछले महीने बिहार के जहानाबाद से गिरफ्तार किया गया था. वहीं, 12 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान एक भाषण देने को लेकर डॉ कफील खान पर कुछ ही दिन पहले राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाया गया और वह उत्तर प्रदेश की एक जेल में कैद हैं.
प्रदर्शन का नेतृत्व जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष आइसी घोष और उपाध्यक्ष साकेत मून ने किया.
घोष ने कहा, ‘आजकल, भडकाऊ भाषणों पर देश में जश्न मनाया जाता है. सत्तारूढ़ दल के मंत्री ने ‘शूट’ शब्द का इस्तेमाल किया और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.’
उन्होंने कहा कि वहीं दूसरी ओर यदि कोई और, खासकर मुसलमान-सीएए, एनआरसी और एनपीआर का विरोध करता है तो उन्हें निशाना बना कर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है.
इस दौरान प्रदर्शनकारी तख्तियां भी लिए हुए थे जिन पर ‘एनआरसी और सीएए गरीब विरोधी एवं सांप्रदायिक’, ‘कफील खान को रिहा करो’ और ‘शरजील इमाम को रिहा करो’ के नारे लिखे थे.
मध्य प्रदेश में एनपीआर लागू नहीं किया जाएगा : कमलनाथ
वहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोमवार शाम को कहा कि उनकी सरकार प्रदेश में राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) लागू नहीं करेगी.
कमलनाथ ने एक विज्ञप्ति जारी कर स्पष्ट किया, ‘‘मध्यप्रदेश में वह वर्तमान में एनपीआर लागू नहीं करने जा रहे.’’
उन्होंने कहा कि एनपीआर की जिस अधिसूचना की बात की जा रही है, वह 9 दिसम्बर 2019 की है. इस अधिसूचना के बाद केंद्र की सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) बनाया, अर्थात जो एनपीआर अधिसूचित किया गया है, वह सीएए, 2019 के तहत नहीं किया गया है.
कमलनाथ ने कहा कि अधिसूचना नागरिकता कानून -1955 की नियमावली-2003 के नियम 3 के तहत जारी की गई.
मालूम हो कि भोपाल मध्य के कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने सोमवार दोपहर में धमकी दी थी कि यदि कमलनाथ के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार एनपीआर लागू करने के अपने फैसले को वापस नहीं लेगी तो वह पूरे राज्य में अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करेंगे.
सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान कथित पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ याचिका पर सुनवाई 18 मार्च को
वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के दौरान कथित पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए 18 मार्च की तिथि सोमवार को तय की.
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं और राज्य सरकार दोनों को ही अपने हलफनामे और दस्तावेज दाखिल करने को कहा.
इससे पूर्व अदालत ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर राज्य में सीएए के विरोध के दौरान प्रदर्शनकारियों पर पुलिस उत्पीड़न के आरोप वाली प्राथमिकियों व शिकायतों से अवगत कराने का निर्देश दिया था.
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने इन घटनाओं के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत किए. उन्होंने अदालत को बताया कि सीएए के खिलाफ 20 और 21 दिसंबर, 2019 को विरोध के दौरान राज्य में कुल 22 लोगों की मौत हुई और 83 लोग घायल हुए, जबकि इस दौरान 45 पुलिसकर्मी भी घायल हुए.
उन्होंने बताया कि दंगा करने और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए 883 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई जिसमें से 561 लोगों को जमानत मिल चुकी है. शेष 332 में से 111 लोगों द्वारा जमानत की अर्जी दी गई जो विभिन्न अदालतों में लंबित है.
गोयल ने बताया कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ कुल 10 शिकायतें प्राप्त हुईं हैं जिनकी विवेचना की जा रही है.