scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमसमाज-संस्कृतिसंघ का ऐसा स्वंयसेवक जिसे विचारधाराओं के परे उनके कामों को लेकर याद किया जाएगा

संघ का ऐसा स्वंयसेवक जिसे विचारधाराओं के परे उनके कामों को लेकर याद किया जाएगा

परवेश्वरन दीनदयाल अनुसंधान संस्थान के निदेशक भी बने जहां वे 1982 तक कार्य करते रहे. फिर उन्होंने केरल में काम करने का सोचा और एक नया संगठन भारतीय विचार केंद्रम को सुव्यवस्थित आकार देने का निश्चय किया.

Text Size:

एक आधुनिक संत, एक दूर दृष्टा जैसे राजनेता, एक बौद्धिक प्रतिभा भट्ट और एक विचार चिंतक जिन्हें विभिन्न मतों के विचारकों ने स्वीकार किया. यही कारण है कि पी परमेश्वरन के निधन ने दूर देश-प्रदेश के लोगों को शोक संतप्त कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस सांसद शशि थरूर तक ने उन्हें याद किया.

समाज को संगठित शक्तिशाली अनुशासित और स्वावलम्बी करने के कार्य में जिन्होंने अपने जीवन का क्षण-क्षण और शरीर का कण-कण समर्पित कर दिया ऐसे कर्मयोगी पी परमेश्वरन अब हमारे बीच नहीं है. लेकिन कभी आराम ना मांगने वाले, विश्राम ना मांगने वाले परमेश्वरन हमारी जैसी भावी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक का काम करेंगे. राष्ट्र का कार्य करना उनके लिए सांस लेने जैसा था. मुझे व्यक्तिगत तौर पर उनसे दो बार मिलने का मौका मिला. उनका स्नेह आज भी जैसे आंखो के सामने हो.

उनके जीवन की कहानी एक शाश्वत व अमर प्रकाश की भांति है जिसमें जीवन के कालातीत क्षणों की सजीवता है जो अन्य लोगों को जीवन को गुण संगत बनाने के लिए प्रेरित करती है. मात्र एक जीवन में कई जीवन जीने की शुभकला विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के अध्यक्ष पी परमेश्वरन ने उद्घाटित की है. परमेश्वरन स्वामी विवेकानंद की इस उक्ति के साकार रूप थे कि ‘मनुष्य की सेवा ही ईश्वर की पूजा है’.

परमेश्वरन का जन्म सन् 1927 को केरल के अलाप्पुझा जिले में हुआ था. उन्होंने इतिहास विषय से मानद स्नातक (बीए ऑनर्स) यूनिवर्सिटी कॉलेज तिरुवनंतपुरम से किया.

भारत माता के प्रति अपने लगाव के कारण उन्होंने 23 वर्ष की अल्पायु में ही अपने को राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा दिया. वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) के रुप में सम्मिलित हुए तथा सन् 1957 से उन्होंने भारतीय जनसंघ में, पहले राज्य में और फिर राष्ट्रीय स्तर के कई पदभारों का निर्वाह किया. इसके अतिरिक्त वे 1968 में अखिल भारतीय महासचिव और बाद में भारतीय जनसंघ के उपाध्यक्ष बने. परमेश्वरन 1975-77 के आपातकाल के दौरान अन्य नेताओं की तरह जेल भी गए और आपातकाल के पश्चात उन्होंने राष्ट्र निर्माण के कार्य का संकल्प कर स्वयं को प्रतिबद्ध कर लिया था.


यह भी पढ़ें: भुज के एक कॉलेज में लड़कियों के अंडरवीयर उतारकर माहवारी दिखाने के मामले में पुलिस ने शुरू की जांच


वे नई दिल्ली में दीनदयाल अनुसंधान संस्थान के निदेशक भी बने जहां वे 1982 तक कार्य करते रहे. फिर उन्होंने अपने गृह राज्य केरल में काम करने का सोचा और एक नया संगठन भारतीय विचार केंद्रम को सुव्यवस्थित आकार देने का निश्चय किया.

तिरुवनंतपुरम में स्थित भारतीय विचार केंद्रम का उद्देश्य व ध्येय गहन अध्ययन और अनुसंधान के माध्यम से राष्ट्रीय पुनर्निर्माण करना है. इसके उपरांत पी परमेश्वरन ने विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी जो कि आध्यात्मिक रूप से त्याग और सेवा की राष्ट्रीय आदेशों द्वारा गतिमान संगठन है, का नेतृत्व किया. विवेकानंद केंद्र अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड और अंडमान दीप समूह पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ राष्ट्र भर में फैली हुई अपने शाखाओं के द्वारा शिक्षा, संस्कृति व प्राकृतिक संसाधन विकास, ग्रामीण कल्याण जैसी विकासात्मक, जनकल्याणकारी मामलों को तथा भारत के अन्य लोगों के मध्य चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य करता है.

परमेश्वरन ने अपने जीवन में विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक विषय आधार पर मलयालम और अंग्रेजी भाषा में 20 से अधिक पुस्तकें लिखीं. इनकी सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में ‘श्री नारायण गुरु द पैगंबर ऑफ रेनसेंस’ अर्थात ‘भगवत गीता एक नई विश्व व्यवस्था का दृष्टिकोण’ और ‘हार्ट बीट्स ऑफ़ हिंदू नेशन’ शामिल है. उन्होंने ‘मार्क्स और विवेकानंद एक तुलनात्मक अध्ययन’, ‘हिंदुत्व और अन्य विचारधारा’ जैसे कई ऐतिहासिक पत्रों को भी लिखा तथा एक पत्रकार के रूप में दशकों तक निरंतर लेखन किया है.

पी परमेश्वरन ने केरल में राजनीतिक हिंसा को समाप्त करने के लिए हिंसा की जगह बहस को महत्व दिया. साहित्य और शिक्षा में समाज कल्याण के लिए उनके बहुमूल्य योगदान के लिए वर्ष 2004 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया तथा इन्हें बाद में 2018 में दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण प्रदान किया गया.

उनकी विशाल कर्म विरासत को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके स्मरण में कहे गए यह शब्द व्यक्त करते हैं ‘श्री पी परमेश्वरन जी भारत माता के एक प्रतापी और समर्पित पुत्र थे’ से स्पष्ट होती है. इनका जीवन भारत के सांस्कृतिक जागरण, आध्यात्मिक उन्नति और गरीब से गरीब जनता की सेवा करने के लिए समर्पित था. परमेश्वरन के विचार विराटमय और लेखन शैली उत्कृष्ट थी.


यह भी पढ़ें: भड़काऊ भाषण में गिरफ्तारी के बाद अब डाॅक्टर कफील पर लगाया गया एनएसए


श्री परमेश्वरन ने अपने अथक और राष्ट्रपोषक जीवन के माध्यम से असंख्य युवाओं को दिशा प्रदान की है कि वे राष्ट्र की सेवा उन्नति हेतु प्रेरित हो. वास्तविकता में वे एक राष्ट्र ऋषि थे जिन्होंने दशकों तक अपने राष्ट्र के लिए निस्वार्थ भाव से काम किया और उनका यह संदेश हमारी स्मृतियों में अमर रहेगा.

(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं. यह उनके निजी विचार हैं)

share & View comments

1 टिप्पणी

Comments are closed.