इदरीस हसन लतीफ भारतीय एयरफोर्स के एयरचीफ मार्शल भी रहे. पर उनका देश के पहले गणतंत्र दिवस से एक अलग और खास संबंध रहा. दरअसल उन्हीं के नेतृत्व में उस गणतंत्र दिवस पर फ्लाई पास्ट हुआ था जिसे देखकर दिल्ली मंत्रमुग्ध हो गई थी. दिल्ली ने पहले कभी लड़ाकू विमानों को अपने सामने कलाबाजियां खाते नहीं देखा था. लतीफ तब स्क्वाड्रन लीडर थे. वे और उनके साथ हॉक्स टैम्पेस्ट लड़ाकू विमान उड़ा रहे थे. तब लड़ाकू विमानों ने वायुसेना के अंबाला स्टेशन से उड़ान भरी थी. हालांकि वे गणतंत्र दिवस के लिए दिल्ली सफजरजंग हवाई अड्डे से भी अभ्यास उड़ानें भरी जा रही थीं. लतीफ ने 1948 और 1965 की जंगों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था. लतीफ के एयर फोर्स चीफ के पद पर रहते हुए इसका बड़े स्तर पर आधुनिकीकरण हुआ. उन्होंने जगुआर लड़ाकू विमान की खरीद करने के लिए सरकार को मनाया था.
किसने बनाई थी राजपथ
चूंकि राजपथ से गणतंत्र दिवस परेड का श्रीगणेश होता है, इसलिए इसे आप देश की सर्वाधिक महत्वपूर्ण सड़क मान सकते हैं. राजपथ शुरू होता है रायसीना हिल पर स्थित राष्ट्रपति भवन से. राजपथ से इंडिया गेट के बीच में विजय चौक आता है. ये परेड का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है. इसके बीच में परेड राष्ट्रपति को सलामी देते हुए राजधानी की सड़कों से होते हुए लाल किले पर समाप्त होती है. इंडिया गेट से सटे नेशनल स्टेडियम में स्कूली बच्चे रूक जाते हैं.
आमतौर पर नई दिल्ली की खासमखास इमारतों के डिजाइनरों की बात हो जाती है, पर किसी को याद नहीं रहता उस अनाम शख्स का जिसने राजपथ समेत नई दिल्ली की चौड़ी-चौड़ी सुंदर सड़कों को तैयार किया था. उस शख्सियत का नाम था सरदार नारायण सिंह. उनकी देखरेख में यहां पर प्रमुख सड़कों को बनाया गया था. जब नई दिल्ली की प्रमुख इमारतों के डिजाइन बनने लगे, तो सवाल आया कि यहां बनने वाली इमारतों और सड़कों के निर्माण के लिए ठेकेदार कहां से आएंगे? तब सारे देश में सरकार ने ठेकेदारी का काम करने वाले प्रमुख ठेकेदारों से संपर्क किया.
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सरदार नारायण सिंह ने सड़कों को बनाने का दावा पेश किया. उनके दावे को सही माना गया. उस समय के लिहाज़ से उन्होंने नई दिल्ली को बेजोड़ सड़कें दीं. तब सड़कों के नीचे भारी पत्थर डाल दिए जाते थे. फिर रोढ़ी और तारकोल से सड़कें बनती थीं. अब ना केवल राजपथ की बल्कि सारे देश के शहरी इलाकों में बिटुमिनस तकनीक से सड़कें बन रही हैं.
हालांकि यहां ये बताना सही रहेगा कि सड़क निर्माण से पूर्व ये देखा जाता है कि उधर की जलवायु कैसी है, भूजल का स्तर कितना है और वहां पर ड्रेनेज सिस्टम किस तरह का है? इन सभी बिन्दुओं पर गौर करने के बाद राजपथ के लिए भी बिटुमिनस तकनीक से सड़क बनने लगी. इस तकनीक के इस्तेमाल से सड़कें सस्ती और टिकाऊ बन जाती हैं और ध्वनिप्रदूषण भी नहीं फैलाती.
गणतंत्र दिवस परेड में घोड़े, हाथी, मोटरसाइकिल, सेना के ट्रक से लेकर भारी-भरकम टैंक तक निकलते हैं. पर मजाल है कि राजपथ को कोई नुकसान हो. ये सब बिटुमिनस तकनीक का कमाल है. आपको याद होगा कि बिटुमिनस तकनीक के आने से पहले परेड के बाद राजपथ बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाता था. खासतौर पर टैंकों के चलने के कारण. खैर, गणतंत्र दिवस परेड जब राजपथ से आगे बढ़ने लगती है, तो उसके आसपास ही साउथ ब्लॉक और नार्थ ब्लॉक हैं.
गणतंत्र दिवस परेड की तैयारी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय यानी साउथ ब्लॉक में ही होती है. भारत सरकार के सबसे खासमखास माने जाने वाले विदेश, रक्षा, वित्त और गृह मंत्रालय इन्हीं में हैं. इन दोनों का डिजाइन एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर ने मिलकर तैयार किया था. इन दोनों ने ही सरदार नारायण सिंह को राजपथ समेत नई दिल्ली की शेष सड़कों के निर्माण का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा था.
फिर बात करते हैं देश के पहले गणतंत्र दिवस की. उस दिन राजधानी की फिजाओं में पर्व का उल्लास था. देश अपने नए संविधान को लागू कर रहा था. भारत गणतंत्र राष्ट्र के रूप में सामने आ रहा था. इस मौके पर लोग बधाई ले और दे रहे थे. उस दिन परेड नहीं निकली थी. परेड का सिलसिला तो 1955 से चालू हुआ था.
और देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने जा रहे डॉ राजेन्द्र प्रसाद के लिए तो यह खासा व्यस्त दिन था. वे सुबह करीब आठ बजे राजघाट पहुंचे. वहां से वे सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंचे शपथ ग्रहण करने के लिए. उन्हें ठीक नौ बजे देश के गवर्नर जनरल सी. राजगोपालचार्य ने देश के पहले राष्ट्रपति के पद की शपथ दिलाई. इस शपथ ग्रहण समारोह के साक्षी बने 500 अतिविशिष्ट गण.
इनमें इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो भी थे. डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने काली अचकन, झक सफेद चूड़ीदार पायजामा और गांधी टोपी पहनी हुई थी. राष्ट्रपति के बाद प्रधानमंत्री पंडित ने और उनके बाद उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने शपथ ली.
जब राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजन चल रहा था, उस वक्त बाहर अपार जनसमूह एकत्र हो चुका था. बड़ी तादाद में लोग पड़ोसी राज्यों से आए हुए थे. वे बाहर खड़े होकर गांधी जी की जय और वंदेमातरम के गगनभेदी नारे लगा रहे थे. सन 1936 बैच के आईसीएस अफसर बदरूद्दीन तैयबजी के ऊपर जिम्मेदारी थी कि वे सुबह दरबार हाल और शाम को इरविन स्टेडियम (अब ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में होने वाले कार्यक्रमों के प्रबंध को देखें.
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सुबह के कार्यक्रम के बाद अब शाम के वक्त इरविन स्टेडियम (अब नेशनल स्टेडियम) में होने वाले सार्वजिनक समारोह की तैयारियां शुरू हो गईं थीं. शाम करीब पांच बजे डॉ राजेन्द्र प्रसाद घोड़े की बग्घी में बैठकर आयोजन स्थल पर आए. राष्ट्रपति जैसे ही स्टेडियम आए तो उन्हें 31 तोपों की सलामी दी गई.
राष्ट्रपति भवन की तरह इधर भी डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने संक्षिप्त भाषण दिया. राष्ट्रपति के भाषण के बाद राजधानी के कुछ स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने कुछ देर तक सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए. जब इरविन स्टेडियम में कार्यक्रम चल रहा था, उस वक्त वहां पर गिनती के ही पुलिसकर्मी मौजूद थे.
(वरिष्ठ पत्रकार और गांधी जी दिल्ली पुस्तक के लेखक हैं)