जयपुर: राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया को घर से निष्कासन के लिए नोटिस दिया है लेकिन, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती भाजपा की वसुंधरा राजे को सरकारी बंगला खाली करने के लिए अदालती आदेशों का पालन करने से मना कर दिया है.
पहाड़िया राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता. उन्होंने 80 के दशक की इंदिरा गांधी सरकार में वित्त राज्य मंत्री के रूप काम किया था और बिहार व हरियाणा के राज्यपाल के रूप में भी. 80 वर्षीय कांग्रेस नेता का अभी दिल्ली में इलाज चल रहा है. पहाड़िया को सोमवार को नोटिस जारी किया गया था. उन्हें अपना बंगला खाली करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया है.
यह नोटिस उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप है. न्यायालय ने पिछले साल सितंबर में पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवनभर मुफ्त घर, कार और स्टाफ की सुविधाएं देने वाली पिछली राजे सरकार द्वारा बनाए गए कानून को अमान्य घोषित कर दिया है.
इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की एक विशेष अवकाश याचिका (एसएलपी) को खारिज कर दिया था.
सोमवार को एक अवमानना याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुए गहलोत सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि सरकार ने पहाड़िया को नोटिस दिया है, लेकिन भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री राजे को नोटिस नहीं दिया गया है.
कांग्रेस सरकार ने कहा कि उन्होंने राजे को नोटिस नहीं भेजा है, क्योंकि वह वरिष्ठ विधायकों के लिए एक नई हाउस अलॉटमेंट पॉलिसी लेकर आ रही है. वसुंधरा राजे मौजूदा विधायक हैं, जबकि पहाड़िया नहीं.
प्रस्तावित नई नीति में वरिष्ठ विधायकों के लिए बड़े स्वतंत्र आवास प्रावधान करने की संभावना है, जिन्हें वर्तमान में एक फ्लैट आवंटित किया गया है, जिससे राजे को अपना आधिकारिक बंगला 13 सिविल लाइंस, जहां पर वह 2008 से रही हैं, इस प्रक्रिया के तहत वह अपना बंगला रख पाएंगी.
हालांकि, दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों ने कार और स्टाफ जैसी अन्य सुविधाएं पहले ही दी गई हैं.
एक असामान्य खुशमिज़ाजी
मुख्यमंत्री गहलोत राजे को सरकारी आवास रखने देने के लिए किस हद तक जा रहे हैं.
सितंबर में उन्होंने यह कहते हुए अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे कि उच्च न्यायालय के आदेश का राजे के बंगले से कोई संबंध नहीं था. उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी सरकार वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए अपनी नीति के आधार पर पूर्व सीएम को बंगला आवंटित करने का फैसला करेगी.
दिग्गज पत्रकार मिलाप चंद डांडिया ने पूर्व सीएम को मुफ्त में सुविधाएं देने के लिए जनहित याचिका दायर की थी, उन्होंने भी इस मुद्दे पर आश्चर्य प्रकट किया है.
डांडिया, जिन्होंने पूर्व गवर्नर अंशुमान सिंह को मुफ्त सरकारी बंगले के आवंटन को सफलतापूर्वक चुनौती दी थी, ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी जनहित याचिका और अदालत का फैसला राजे सहित सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए है.
उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता विमल चौधरी ने कहा कि कानूनी रूप से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार के एसएलपी को खारिज करने और उच्च न्यायालय के आदेश के बाद राजे को बंगले में एक दिन भी रहने का कोई अधिकार नहीं था.
चौधरी ने कहा, ‘यह अदालत की अवमानना है और सरकार को न केवल उन्हें नोटिस देना चाहिए, बल्कि उस पूरी अवधि के लिए किराया भी वसूलना चाहिए, जिस पर उन्होंने कब्जा किया था. हालांकि, उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अपने अधिकारों के भीतर वरिष्ठ विधायकों को बड़ा आवास प्रदान करने की नीति ला रही है.
कहानी में दम
गहलोत के हाव-भाव ने कई लोगों को हतप्रभ कर दिया था और यह भी अटकलें लगाई गई थीं कि कभी एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन गहलोत और राजे ने अब झगड़ा समाप्त कर दिया है.
पिछली राजे सरकार ने 2017 में राजस्थान के मंत्रियों के वेतन अधिनियम, 1956 में जो संशोधन पेश किया था, वह केवल गहलोत के मूल विचार को आगे बढ़ाने जैसा था. राजे सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को मुफ्त घर, कार और सरकारी कर्मचारियों की सुविधा के लिए केवल गहलोत के विचार को वैध बनाया था.
गहलोत ने 1998 में सीएम के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान पूर्व सीएम को मुफ्त आवास, कार और कर्मचारियों के लिए प्रस्ताव भेजा था. उन्होंने इस पर एक कार्यकारी आदेश पारित किया था.
उस समय चार पूर्व सीएम जिनमें कांग्रेस के तीन-शिवचरण माथुर, जगन्नाथ पहाड़िया और हीरा लाल देवपुरा शामिल थे और भाजपा के भैरों सिंह शेखावत इन सुविधाओं के हकदार बने थे. शेखावत विपक्ष के नेता होने के नाते पहले से ही इसका इस्तेमाल कर रहे थे.
2003 में चुनाव हारने पर गहलोत पूर्व सीएम के क्लब में शामिल हो गए. उन्होंने 2003 से 2008 और 2013 से 2018 तक दो बार इन लाभों का इस्तेमाल किया. दोनों बार उन्हें सिविल लाइंस में एक ही बड़ा बंगला आवंटित किया गया था.
राजे ने भी 2008 में चुनाव हारने पर खुद को बंगला आवंटित कराने के लिए इस प्रावधान का इस्तेमाल किया था लेकिन गहलोत के विपरीत, वह सीएम के लिए नामित सरकारी आवास 8 सिविल लाइंस में स्थानांतरित होने के बजाय 13 सिविल लाइंस स्थित बंगले में रहती थीं, जो कि उनके कब्जे में रहा. उन्होंने बंगले का नाम भी ‘अनंत विजय’ रखा था.
राजस्थान सरकार के वेतन (संशोधन) अधिनियम 2017 को लागू करते हुए उनकी सरकार एक कदम और आगे गई. इसने दो महत्वपूर्ण बदलाव सुनिश्चित किए, जिससे पूर्व सीएम और कैबिनेट मंत्रियों को मुफ्त में इन सुविधाओं का लाभ देने के लिए बदलाव किया गया. इस कानून को सितंबर में उच्च न्यायालय द्वारा रोक दिया गया था.
वसुंधरा राजे को अपनी पार्टी के नेताओं से विरोध का सामना करना पड़ा
जब यह पारित किया गया था, तब भी राजे को अपनी ही पार्टी से आलोचना का सामना करना पड़ा था, तब के भाजपा के नेता पूर्व कानून मंत्री घनश्याम तिवाड़ी ने तो राजे पर 2,000 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी को हड़पने का आरोप लगाया था.
तिवाड़ी ने इसकी कीमत चुकाई, क्योंकि उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से वंचित कर दिया गया था. वह अब कांग्रेस के साथ हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस सरकार को इसके क्रियान्वयन को लागू करने के लिए ‘रास्ता’ खोजने के बजाय अदालत के आदेशों का पालन करना चाहिए.
फिर भी कई अन्य लोग हैं, जो कानून का उल्लंघन कर सरकारी बंगलों पर कब्जा कर रहे हैं. सरकार ने पूर्व मंत्री नरपत सिंह राजवी को नोटिस दिया था, जो अपने पूर्व ससुर भैरों सिंह शेखावत को आवंटित बंगले में रह रहे हैं.
राज्यसभा सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा के पास भी एक सरकारी बंगला है, जो उनकी पत्नी गोलमा देवी को आवंटित किया गया था, जब वह 2008-13 से गहलोत सरकार में मंत्री थीं लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें नोटिस भी नहीं दिया है.
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