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Friday, 22 November, 2024
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रेलवे 24 घंटे में बनाएगा ई-कचरे और प्लास्टिक से हल्का ईंधन, पहले सरकारी संयंत्र को मंजूरी

‘पॉलीक्रैक’ नाम से पेटेंट तकनीक का होगा इस्तेमाल भारतीय रेलवे में पहला और देश में होगा ऐसा चौथा संयंत्र.

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नई दिल्ली: पूर्व तटीय रेलवे ने ई-कचरे और प्लास्टिक से 24 घंटे के भीतर हल्का डीजल बनाने के लिए सरकारी क्षेत्र के पहले संयंत्र को मंजूरी दी है. अधिकारियों ने गुरुवार को यह जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि ‘पॉलीक्रैक’ नाम से पेटेंट इस तकनीक का इस्तेमाल कचरे से ईंधन बनाने के संयंत्र में इस्तेमाल किया जाएगा और भारतीय रेलवे में इस तरह का पहला और देश में चौथा संयंत्र होगा.

पूर्व तटीय रेलवे के प्रवक्ता जेपी मिश्रा ने बताया, ‘यह दुनिया का पहला पेटेंट विखंडन प्रक्रिया है जो विभिन्न वस्तुओं को तरल हाइड्रोकार्बन ईंधन, गैस, कार्बन और पानी में बदलता है.’

उन्होंने बताया, ‘रेल डिब्बा मरम्मत कारखाने में बड़ी मात्रा में गैर लौह कचरा निकलता है जिसको ठिकाने लगाने के लिए उचित व्यवस्था नहीं थी. इसकी वजह से इस कचरे को जमीन भरने में इस्तेमाल किया जाता है जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है.’

मिश्रा ने कहा, ‘इस प्रक्रिया में कचरे को पहले अलग-अलग करने की जरूरत नहीं होती और इन्हें सीधे मशीन में डीजल बनाने के लिए डाल दिया जाता है.’

अधिकारी ने बताया, ‘यह संयंत्र नमी की उच्च मात्रा को भी सह सकता है और इसलिए कचरे को सुखाने की जरूरत नहीं होती. कचरा 24 घंटे में ईंधन में बदल जाता है. चूंकि पूरी प्रक्रिया बंद उपरकण में होता है इसलिए पर्यावरण पूरी तरह से धूल रहित होता है. इस प्रक्रिया की वजह से कचरे को जैविक रूप से सड़ने के लिए छोड़ने की जरूरत नहीं होती क्योंकि कचरा पैदा होते ही उसे डीजल में तब्दील करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.’

उन्होंने बताया, ‘इस संयंत्र का आकार बहुत छोटा होता है इसलिए कचरे के निपटारे की पारंपरिक प्रक्रिया के मुकाबले कम जगह की जरूरत होती है. कचरा पूर्ण रूप से बहुमूल्य ईंधन में तब्दील हो जाता है और इसमें शून्य अपशिष्ट पैदा होता है.’

अधिकारी ने बताया कि इस प्रक्रिया में पैदा होने वाली गैस का इस्तेमाल संयंत्र को चलाने के लिए ईंधन की रूप में होता है, इसलिए पूरे संयंत्र को चलाने पर आने वाले खर्च में कमी आती है.

उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से गैस उत्सर्जन नहीं होता और यह 450 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर काम करता है.
मिश्रा के मुताबिक दो करोड़ रुपये की लागत से इस संयंत्र का निर्माण तीन महीने में पूरा होगा. भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन के नजदीक मंचेश्वर कोच मरम्मत कार्यशाला से पैदा होने वाले कचरे का इस्तेमाल इस संयंत्र में किया जाएगा. एक बार में 500 किलोग्राम कचरे का इस्तेमाल संयंत्र में होगा.

अधिकारी के मुताबिक इस संयंत्र से उत्पादित उत्पाद से सालाना 17.5 लाख रुपये की आय होने का अनुमान है जबकि संयंत्र के रखरखाव पर सालाना 10.4 लाख रुपये का खर्च आएगा.

उल्लेखनीय है कि इस तकनीक से रेलवे का यह पहला संयंत्र है लेकिन देश में यह चौथा संयंत्र हैं. सबसे पहले इंफोसिस ने बेंगलुरु में इस तकनीक से संयंत्र की स्थापना की थी. हालांकि, उसकी क्षमता 50 किलोग्राम कचरा प्रति दिन निस्तारित करने की है. अन्य संयंत्र दिल्ली के मोती बाग में (2014 में स्थापित) और हिंडालको में (2019) में स्थापित किए गए हैं.

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