नई दिल्ली: बिहार के मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में लड़कियों के यौन और शारीरिक उत्पीड़न के मामले में एनजीओ के मालिक और पूर्व विधायक ब्रजेश ठाकुर सहित 19 आरोपियों को दोषी ठहराया. वहीं अदालत ने एक आरोपी को बरी कर दिया है. अदालत ने पॉक्सो एक्ट के तहत ये कार्रवाई की है.
Bihar's Muzaffarpur shelter home case: The court has listed the matter for argument on quantum of sentence on January 28 https://t.co/pVbhtj1vu6
— ANI (@ANI) January 20, 2020
अदालत ने सजा कितनी दी जाए इस पर विचार के लिए इस पर बहस के लिए 28 जनवरी को मामले को सूचीबद्ध किया है.
मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले में बृजेश ठाकुर को पॉक्सो कानून के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न और सामूहिक बलात्कार का दोषी पाया गया.
आश्रय गृह मामले में एक आरोपी को आरोपमुक्त किया गया है.
इनमें से एक आरोपी को कोर्ट ने आरोप मुक्त कर दिया. आज सुनाए जाने वाले फैसले को लेकर 14 जनवरी को अदालत की सुनवाई स्थगित कर दी गई थी.
ब्रजेश ठाकुर के राज्य वित्त पोषित गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा चलाए जा रहे आश्रय गृह में 40 से अधिक नाबालिग लड़कियों का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया था.
अदालत ने मामले के एक आरोपी को बरी कर दिया. आरोपियों में 12 पुरुष और आठ महिलाएं शामिल थीं.
आश्रय गृह ठाकुर द्वारा चलाया जा रहा था.
गौरतलब है कि ठाकुर ने 2000 में मुजफ्फरपुर के कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र से बिहार पीपुल्स पार्टी (बिपीपा) के टिकट पर चुनाव लड़ा था और हार गया था.
अदालत ने इस मामले में दोषियों को सुनाई जाने वाली सजा पर दलीलों को सुनने के लिए 28 जनवरी की तारीख तय की है.
अदालत ने 30 मार्च, 2019 को ठाकुर समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ बलात्कार और नाबालिगों के यौन शोषण का आपराधिक षड्यंत्र रचने के आरोप तय किए थे.
अदालत ने बलात्कार, यौन उत्पीड़न, नाबालिगों को नशा देने, आपराधिक धमकी समेत अन्य अपराधों के लिए मुकदमा चलाया था.
ठाकुर और उसके आश्रय गृह के कर्मचारियों के साथ ही बिहार के समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों पर आपराधिक षड्यंत्र रचने, ड्यूटी में लापरवाही और लड़कियों के उत्पीड़न की जानकारी देने में विफल रहने के आरोप तय किए गए थे.
इन आरोपों में अधिकारियों के प्राधिकार में रहने के दौरान बच्चों पर क्रूरता के आरोप भी शामिल थे जो किशोर न्याय कानून के तहत दंडनीय है.
अदालत ने सीबीआई के वकील और मामले के 20 आरोपियों की अंतिम दलीलों के बाद 30 सितंबर, 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले में बिहार की समाज कल्याण मंत्री और तत्कालीन जद (यू) नेता मंजू वर्मा को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था जब उनके पति के ठाकुर के साथ संबंध होने के आरोप सामने आए थे.
मंजू वर्मा ने आठ अगस्त, 2018 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर इस मामले को सात फरवरी, 2019 को बिहार के मुजफ्फरपुर की स्थानीय अदालत से दिल्ली के साकेत जिला अदालत परिसर की पॉक्सो अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था.
यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) द्वारा 26 मई, 2018 को बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपने के बाद सामने आया था. इस रिपोर्ट में किसी आश्रय गृह में पहली बार नाबालिग लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न का खुलासा हुआ था.
(न्यूज एजेंसी भाषा के इनपुट्स के साथ)