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Monday, 25 November, 2024
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मोदी सरकार ‘भ्रष्ट’ अधिकारियों को सेवानिवृत्त करना चाहती है, लेकिन सहयोगी नाम लेने से इंकार कर रहे

जो ठीक से काम नहीं कर रहे या भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे उन अधिकारियों की पहचान के लिए जून 2019 के बाद से मोदी सरकार ने मंत्रालयों और विभागों को तीन रिमाइंडर भेजे हैं.

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नई दिल्ली: मोदी सरकार भ्रष्ट और ख़राब प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को रिटायर करने के मामले में सरकारी अधिकारियों से ही विरोध का सामना कर रही है.

पिछले हफ्ते कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अपना तीसरा रिमाइंडर जारी किया, जिसमें मंत्रालयों और सरकारी निकायों को उन कर्मचारियों के नाम बताने के लिए कहा गया है, जो ख़राब प्रदर्शन या भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं.

इससे पहले जून और दिसंबर 2019 में लिखे गए पत्र में मासिक सूचियों की मांग की थी, जिसमें कुछ जवाब मिले थे.

सरकार ने मौलिक नियमों 56 (जे) और केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) नियम 1972 के नियम 48 को लागू करते हुए ख़राब प्रदर्शन करने वाले के रूप में पाए गए कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने का इरादा किया है. ये नियम सार्वजनिक हित में कर्मचारियों को हटाने की अनुमति देते हैं.


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8 जनवरी को जारी अपने नए पत्र में डीओपीटी ने कहा कि उसे 100 से अधिक सरकारी मंत्रालयों और विभागों से केवल 18 इनपुट मिले हैं.

पत्र में कहा गया है, ‘यह सराहना की जा सकती है कि ये सभी महत्वपूर्ण अभ्यास शीर्ष प्राथमिकता पर और नियमित व निरंतर आधार पर किए जाने हैं.’ यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रक्रिया में देरी से बड़ी संख्या में कैडर इकाइयों से इनपुट तुरंत प्राप्त नहीं हो रहे हैं. 21 जनवरी को नई समयसीमा के रूप में निर्धारित किया गया है.

‘मनमाने इस्तेमाल का डर’

डीओपीटीके सूत्रों ने कहा कि अधिकांश मंत्रालय सरकार द्वारा मांगे गए विवरण उपलब्ध कराने में आगे नहीं रहे हैं, और यह प्रशासन के साथ बहुत अच्छा नहीं है.

एक अधिकारी ने कहा, ‘जिन इनपुट्स का अनुरोध किया जा रहा है, वे बहुत वरिष्ठ अधिकारियों के नहीं हैं लेकिन वे अभी भी विवरण प्रदान नहीं कर रहे हैं. यही कारण है कि डीओपीटी से बार-बार रिमाइंडर मिलते हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए एक मंत्रालय में काम करने वाले एक सरकारी अधिकारी ने जवाब देने के लिए कहा कि प्रतिरोध इस डर से प्रेरित था कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के प्रावधान का उपयोग मनमाने ढंग से किया जा सकता है.

एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर सरकार के लिए यह रूटीन प्रैक्टिस बन जाये कि वे लोगों को ख़राब प्रदर्शन करने वाला या भ्रष्ट करार देते हैं, तो उनका इस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा कि कौन हटाया जायेगा.’

अधिकारी ने कहा, एक और कारण भी है. सभी अधिकारियों के बीच अनौपचारिक नेटवर्क हैं. भले ही वे कुछ कनिष्ठ अधिकारियों का विवरण मांग रहे हों, लेकिन वे अधिकारी वरिष्ठ अधिकारियों से जुड़े हुए हैं और उन्हें हटाने में स्पष्ट व्यवधान है.

हालांकि, डीओपीटी अधिकारी ने कहा कि सरकार भ्रष्ट और ख़राब प्रदर्शन करने वाले अधिकारियों को हटाने के अपने प्रयास के बारे में ‘बहुत गंभीर’ थी.


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यह सोचना आसान होगा कि शिथिलता इस सरकार को वह करने से रोक सकती है जो उसने करने के लिए निर्धारित किया है. लेकिन यह उनके एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह याद रखना महत्वपूर्ण है.

मोदी सरकार जिसने अपने पहले कार्यकाल के बाद से नौकरशाही में कई सुधारों की शुरुआत की थी, ने बार-बार दोषी अधिकारियों को बाहर निकलकर भ्रष्टाचार को मिटाने की इच्छा व्यक्त की है.

अब तक सरकार ने भ्रष्टाचार, ख़राब प्रदर्शन, यौन उत्पीड़न, आदि के आधार पर कई अधिकारियों को भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) से हटा दिया है, लेकिन अभी तक अन्य सेवाओं के साथ रास्ता अभी तक नहीं बन पाया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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