रेलवे से लेकर राज्यों के विभागों और स्कूलों तक, भारत में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदकों की संख्या और साथ ही रिक्तियों की उच्च संख्या हमेशा अविश्वसनीय लगती है, जो पूरे देश में सरकारी नौकरियों के प्रति स्थाई आकर्षण का सबूत भी है.
नौकरियों की भारी मांग और भर्ती की अक्षम व्यवस्था देश के विभिन्न हिस्सों में हुए विभिन्न सरकारी भर्ती घोटालों से उजागर हो चुकी है. कुछ प्रमुख उदाहरण हैं- मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला, हरियाणा का शिक्षक भर्ती घोटाला जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला को 10 साल की कैद की सजा मिली, और एक दशक पहले उत्तर प्रदेश में हुआ पुलिस भर्ती घोटाला.
पिछले दो वर्षों के दौरान हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार अपनी भर्ती प्रक्रियाओं को सुचारू बनाने के लिए काम करती रही है. इसके आशाजनक परिणाम सामने आए हैं. और कुछ ही महीनों के भीतर 15 वर्षों से खाली पड़े सरकारी पदों पर नियुक्तियां कर दी गई हैं.
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भर्ती की समस्या
सरकारी नौकरियों के आकर्षण को समझना आसान है- ‘सुरक्षा’, वेतन और पेंशन लाभ, तथाकथित ‘प्रतिष्ठा’, और निजी क्षेत्र की नौकरियों को हासिल करने के लिए अपेक्षित प्रशिक्षण और योग्यता का अभाव.
बिहार में राज्य विधानसभा के चपरासी, माली, द्वारपाल और सफाईकर्मी के 166 पदों के लिए लगभग 5 लाख लोगों ने आवेदन किया था. दूसरी तरफ पहली मार्च 2018 तक, केंद्र सरकार के कुल 38.02 लाख स्वीकृत पदों में से 31.18 लाख पर कर्मचारी नियुक्त थे, यानि लगभग 17 प्रतिशत पद खाली पड़े थे.
राज्य सरकार की नौकरियों के लिए भर्ती का अधिकांश काम आमतौर पर एक अर्धस्वायत्त संस्था के जिम्मे होता है जिसे कर्मचारी सेवा/चयन आयोग (विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से ज्ञात) कहा जाता है. खाली पदों पर भर्ती करने के इच्छुक सरकारी विभाग भर्ती अभियान चलाने के लिए सामान्यतया आयोग से संपर्क करते हैं.
भर्ती प्रक्रिया से जुड़ी कमियों में आयोग की क्षमता पर्याप्त नहीं होने और एक जटिल अनुमोदन प्रक्रिया शामिल हैं जिसमें कि ज्यादातर काम हाथ से होता है और बहुत वक्त लगता है.
पारदर्शिता का अभाव एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण अदालती मामलों की बाढ़ देखी जाती है, और फिर अदालती स्थगन आदेशों से पूरी भर्ती प्रक्रिया बाधित हो जाती है. आंध्र प्रदेश में उच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा संचालित परीक्षा के परिणाम के प्रकाशन के खिलाफ एक महीने से अधिक समय तक स्थगन आदेश लागू रखा था. इसके कारण 60,000 से अधिक उम्मीदवारों के लिए पहले से ही पीछे चल रही भर्ती प्रक्रिया में और भी देरी हो गई.
इसकी वजह थी- दो उम्मीदवारों द्वारा प्रक्रियागत खामियों को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाना. कुछ साल पहले, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षक की नौकरी के आवेदक हजारों उम्मीदवारों की भर्ती पर रोक लगा दी थी. वजह क्या थी? दरअसल, कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें भर्ती के मानदंड के रूप में योग्यता के बजाय वरिष्ठता का इस्तेमाल किए जाने का आरोप लगाया गया था.
सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली भारी मारामारी के कारण भी भर्ती प्रक्रियाएं भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ का केंद्र बन गई हैं.
वैसे तो ये समस्याएं पूरे भारत में आम हैं, पर हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने अलग-अलग तरीकों से इनका हल निकालने की कोशिश की है. उन्होंने या तो साक्षात्कार वाला चरण खत्म कर दिया है, आवेदन प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है, या फिर भर्ती संस्था के संगठनात्मक ढांचे में सुधार किया है ताकि दायित्वों का वितरण और कार्यान्वयन बेहतर ढंग से हो सके.
हरियाणा का समाधान
हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने 2017 में सरकारी भर्ती प्रक्रिया को, खास कर ग्रुप-डी के कर्मचारियों के लिए, सुचारू बनाने की कोशिशें शुरू की थीं.
ग्रुप-डी के कर्मचारी हर सरकारी कार्यालय में पाए जाते हैं और इन कार्यालयों को सुचारू रूप से चलाए रखने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. सफाईकर्मी, चपरासी, लिफ्ट ऑपरेटर, प्लंबर, टाइपिस्ट, मेस वर्कर, माली आदि इस वर्ग के कर्मचारियों में गिने जाते हैं. हरियाणा सरकार ने इस वर्ग के कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी और सक्षम बनाने के लिए नीतिगत, प्रक्रियागत और संरचनात्मक सुधारों को लागू किया.
नीतिगत मोर्चे पर, सरकार ने इन नौकरियों में साक्षात्कार के प्रावधान को खत्म कर दिया. ग्रुप-डी की नौकरियों की प्रकृति ऐसी है कि साक्षात्कार अनावश्यक और देरी कराने वाला चरण बन जाता है. साक्षात्कार प्रक्रिया में स्वविवेक और पूर्वाग्रह से फैसले किए जाने की भी गुंजाइश रहती है. अब हरियाणा में इन पदों पर बहाली सिर्फ एक परीक्षा के आधार पर होती है.
राज्य के सभी सरकारी विभागों में ग्रुप-डी कार्मिकों के पद हैं. इन पदों पर कार्य की प्रकृति हर विभाग के लिए कमोबेश एक जैसी होती है. फिर भी पात्रता और न्यूनतम योग्यता को लेकर हर विभाग के अपने अलग नियम-प्रावधान होना कोई असामान्य बात नहीं है. और ये भी सुचारू भर्ती प्रक्रिया की राह में एक अड़चन का काम करता है.
इसके लिए, हरियाणा सरकार ने ग्रुप-डी के कर्मचारियों की भर्ती के लिए एक समान सेवा-नियम विकसित किए हैं. व्यावहारिक रूप से इसका मतलब ये है कि ग्रुप-डी के सभी पदों के लिए आवेदक एक ही राज्यस्तरीय परीक्षा में बैठते हैं. और इस एक परीक्षा में तमाम तरह के पदों को भी शामिल किया जाता है. ये परिवर्तन राज्य विधानसभा में पारित हरियाणा ग्रुप-डी कर्मचारी संशोधन विधेयक, 2019 के माध्यम से लागू किए गए हैं.
जहां तक प्रक्रियागत सुधारों की बात है, तो सरकार ने उस व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया है जो विभिन्न विभागों द्वारा कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) को खाली पदों की सूचना देने के वास्ते इस्तेमाल किया जाता था. भर्ती के पदों के अनुमोदन की विभिन्न स्वीकृतियों वाली कागजी व्यवस्था की जगह एक ऑनलाइन प्रणाली तैयार की गई. विभागों और एसएससी के लिए अब स्वीकृत पदों, रिक्तियों और आवश्यकताओं संबंधी एक पूर्ण पारदर्शी व्यवस्था मौजूद है.
और अंत में, दस्तावेज़ सत्यापन प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए भी बदलाव किए गए हैं. पहले, 10 फीसदी आवेदकों को भर्ती परीक्षा में शामिल होने से भी पहले अपने दस्तावेजों का भौतिक सत्यापन कराना पड़ता था. राज्य में अब स्वघोषित सत्यापन की एक ऑनलाइन प्रक्रिया को लागू किया गया है, जिसमें उम्मीदवार अपने दस्तावेज़ ऑनलाइन अपलोड कर सकते हैं. और केवल उन्हीं आवेदकों को अपने दस्तावेजों का भौतिक सत्यापन कराना होता है जो भर्ती परीक्षा में सफल हुए हों और बहाली के लिए जिनके नाम की अनुशंसा की जा चुकी है. भर्ती प्रक्रिया की अवधि को कम करने की दृष्टि से ये बदलाव बहुत कारगर साबित हुआ है.
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सरकारी दक्षता का परिणाम
इन सुधारों का परिणाम ये हुआ है कि 2019 के आरंभ में हरियाणा सरकार ने 74 विभिन्न विभागों के ग्रुप-डी के कुल 18,000 पदों के लिए 15 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित भर्ती अभियान को छह महीनों के भीतर पूरा कर लिया था. राज्य के इस सबसे बड़े भर्ती अभियान में करीब 18 लाख आवेदक शामिल हुए थे.
इन संख्याओं को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो हरियाणा में परिवारों की संख्या 50 लाख से भी कम है, मतलब हर तीसरे परिवार के किसी व्यक्ति ने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया था. इन सुधारों को लागू किए जाने के बाद 18 महीनों की अवधि में सरकार करीब 45,000 खाली पदों को भर चुकी है, जबकि इससे पहले के 13 वर्षों में कुल 75,000 भर्तियां ही की गई थीं. अब एसएससी की क्षमताओं में विस्तार करने तथा प्रक्रियाओं को और अधिक सुचारू करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि रोजगार के संकट का दीर्घकालीन समाधान निजी सेक्टर से ही संभव है, पर भर्ती प्रक्रियाओं को सुचारू बनाकर सरकारी क्षेत्र इस संकट को काफी हद तक कम कर सकता है.
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(गौरव गोयल शासन संबंधी सलाहकारी संगठन समग्र–ट्रांसफॉर्मिंग गवर्नेंस के संस्थापक एवं सीईओ हैं. समग्र विभिन्न प्रशासनिक सुधारों पर हरियाणा सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
भारत में शासन संबंधी जटिल चुनौतियों और उनके समाधान के बारे में चार भागों की दिप्रिंट-समग्र सिरीज़ में यह पहला आलेख है.