निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप ने अपनी सड़क की विश्वसनीयता को दोबारा पुनर्स्थापित कर लिया है.
‘यह वासेपुर है, यहां कबूतर भी एक पंख से उड़ता है, दूसरे से इज्ज़त बचाता है.’ जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ हुई हिंसा के बाद 16 दिसबंर को कश्यप काफी समय बाद ट्विटर पर लौट आएं. उससे पहले वो भी कबूतर की ही तरह थे. लेकिन उन्होंने तय किया कि अब बहुत हो गया. अब उन्होंने जेएनयू के छात्रों के साथ खड़ी हुई दीपिका पादुकोण की तस्वीर को अपनी ट्विटर प्रोफाइल फोटो बना ली है.
नेटफ्लिक्स पर आने वाली घोस्ट स्टोरिज़ के प्रोमोशन के दौरान उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अब काफी हो चुका है.’ उन लोगों ने मुझे, मेरे परिवारवालों को और यहां तक की मेरी बेटी को भी धमकाया है. लेकिन एक निश्चित सीमा के बाद आपको बोलना ही पड़ता है.
राष्ट्र के लिए ट्वीट
तब से अनुराग कश्यप अपनी भूमिका में है.
निर्देशक ने 16 दिसंबर को ट्वीट किया, ‘अब बात काफी आगे निकल चुकी है…अब ज्यादा समय तक चुप नहीं रहा जा सकता है. यह सरकार पूरी तरह से फासिस्ट है…और मुझे इस बात से गुस्सा आता है कि जो लोग फर्क ला सकते हैं वो चुप बैठे हैं.’
उन्होंने मुंबई में हुए प्रदर्शन में नरेंद्र मोदी सरकार को बहुत ज्यादा अनपढ़ बताया. कश्यप ने टीवी इंटरव्यू में कहा, ‘सरकार लोगों को देशभक्त और देशद्रोहियों में बांटना चाहती है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने ये कहा था जिसमें राजदीप ने उनसे पूछा था- अनुराग कश्यप को गुस्सा क्यों आता है? उनके विचारों की प्रशंसा करने पर ट्विटर के लोगों को कश्यप ने बधाई दी.
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वो काफी कुछ कर रहे हैं. जेएनयू में नकाबपोश लोगों की तरफ से हुई हिंसा में दूसरे के ट्वीट को रिट्वीट करने के अलावा वो ट्रोल्स को अपने ही अंदाज़ में जवाब दे रहे हैं. उन्होंने अपनी भावना को प्रदर्शित करने के लिए ट्विटर प्रोफाइल फोटो बदली जिसमें ओरिजित सेन द्वारा बनाए गए दो नकाबपोश लोगों जिसने हाथों में लाठी ली हुई है….को अपनी प्रोफाइल फोटो लगाई, जिसके बाद दीपिका के जेएनयू वाली तस्वीर को उन्होंने अपनी प्रोफाइल फोटो लगा ली.
उत्तेजित युवा निर्देशक
कश्यप का ट्विटर के साथ काफी अजीब रिश्ता रहा है. अनुच्छेद-370 को खत्म किए जाने के बाद जब उन्होंने अपने विचार रखे तो उन्हें काफी ट्रोल किया गया जिसके बाद वो ट्विटर से अलग हो गए. ऐसा क्या है कि वो और उन जैसे लोग अब बोल रहे हैं. उनके दोस्त, कुछ समय के साथी और सेक्रेड गेम्स के सह-निदेशक, विक्रमादित्य मोटवाने ने दिप्रिंट को दो-शब्द का जवाब दिया, ‘ज्यादातर गुस्सा’.
फिल्म निर्माता और मैगजीन के पूर्व एडिटर प्रतीश नंदी ने फिल्म जगत द्वारा दी जा रही प्रतिक्रिया पर खुलकर बोला. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘काफी सारे लोग बोलने लगे हैं. जावेद अख्तर, स्वरा भास्कर, अनुराग कश्यप, फरहान अख्तर, ऋचा चड्ढा, अनुभव सिन्हा, सिद्धार्थ, हुमा कुरैशी, राधिका आप्टे ने काफी स्पष्ट और कड़े तौर पर अपना रूख व्यक्त किया. दिबाकर बनर्जी ने घोस्ट स्टोरिज़ के एपिसोड में राजनीतिक बयान तक दे दिया.
नंदी ने कहा कि आप सलमान खान, शाहरुख खान और आमिर खान से ये उम्मीद नहीं लगा सकते कि वो कुछ बोलेंगे क्योंकि ये लोग तुरंत देशद्रोही मुसलमान के नाम पर ट्रोल हो जाएंगे. एक प्रसिद्ध मुस्लिम बनकर सत्ता के सामने खड़ा रहना सबसे मुश्किल काम है. ये आपके निर्माताओं को खतरे में डाल सकता है. लेकिन केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्वारा मुंबई में बुलाई गई बैठक में फिल्म जगत से किसी भी महत्वपूर्ण चेहरों का नदारद होना कई सवाल खड़े करता है. इससे अलग रहकर उन लोगों ने कड़ा संदेश दिया है.
लेकिन नए उत्तेजित फिल्म निर्माता अपने गुस्से को सार्वजनिक तौर पर दिखा रहे हैं. कश्यप लगातार दक्षिणपंथी संगठनों पर हमलावर है…यहां तक कि शाह और मोदी को आतंकवादी और टुकड़े-टुकड़े गैंग भी कह चुके हैं.
हैशटैग के जरिए वो काफी सक्रिय हैं. वो अभी #LetsTakeOurCountryBack को फैला रहे हैं. ऐसे समय में जब पीयूष मिश्रा सरीखी आवाज चुप है उस वक्त कश्यप अपनी आवाज़ को बुलंद कर रहे हैं. इस बीच जो सबसे गुस्से भरा था वो यह है कि अमिताभ बच्चन ने हाल ही में 3,604वां ट्वीट किया लेकिन भारत में जो कुछ भी हो रहा है उसपर कुछ नहीं लिखा.
उनकी सत्या
कश्यप लंबे समय से सहस्राब्दियों (मीलेनियल्स) के पसंदीदा हैं, जिनकी देव डी (2009) अपने दोषपूर्ण पुरुष नायक और मजबूत महिलाओं के साथ देवदास पर एक अलग झुकाव रखती है. कोयला माफिया की कहानी गैंग्स ऑफ वासेपुर (2012) ने न केवल फिल्म इंडस्ट्री को नवाजुद्दीन सिद्दकी, पंकज त्रिपाठी जैसे बढ़िया अभिनेता दिए बल्कि वैध, आकांक्षा से भरी कहानी बयान करने को प्रोत्साहित किया.
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तब से सत्या जैसी फिल्मों के लेखक राम गोपाल वर्मा ने कई फिल्मों और डिजिटल कंटेट का निर्माण किया है…जो कुछ समय के लिए फैंटम फिल्मस के भी हिस्सा रहे जिसमें मोटवाने, विकास बहल और मधु मंटेना जैसे निर्माता शामिल थे. कंपनी विकास बहल पर लगे मीटू के आरोप के बाद टूट गई. बहल ने जिसके बाद कश्यप और मोटवाने को अवसरवादी बताया था. कुछ दूसरे लोगों पर #MeToo के जो आरोप लगे उसमें भी कश्यप का सार्वजनिक रुख कुछ हद तक समान रहा है.
साल 2015 में उन्होंने इंडिया टुडे को कहा था कि वो मुंबई को हमेशा के लिए छोड़ने को तैयार हैं जिसने उन्हें बनाया है. निर्माता के ट्विटर बायो में लिखा हुआ है- ‘न ही लेफ्ट, न राइट और न ही सेंटर – मैं विपरीत हूं.’ इस तरह उन्होंने वहां रहकर लड़ना तय किया, वो भी अपने शहर के लिए नहीं बल्कि भारत के लिए…जहां वो फिर से गलियों और सड़कों पर गए जिसने सबसे पहले उन्हें अपनी कहानी बयान करने को प्रेरित किया था.
उन्होंने अपने बॉलीवुड के साथियों के साथ गेटवे ऑफ इंडिया पर जाने का तय किया. एक सच्चे निर्देशक के तौर पर वो देश की आवाज़ और गुस्से को दिशा दे रहे हैं.
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(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार है)
He is Real patriot and Hero of our times.
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