नई दिल्ली: साल 2019 हरियाणा के लिए बेहद दिलचस्प और राजनीतिक उथल-पुथल वाला रहा. इस साल राज्य में दो बड़े (लोकसभा और विधानसभा) चुनाव हुए. लोकसभा में क्षेत्रीय पार्टियों को धूल चटाने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर ही सिमट गई. भले ही बीजेपी को पूर्ण बहुमत ना मिला हो मगर वो जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही. दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ने 10 सीटें जीतकर पूरे देश को चौंकाया. साथ ही वह सबसे कम उम्र (31) के डिप्टी सीएम भी बने.
इनेलो का बुरी तरह हारना
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल ने 90 के दशक में लोकदल नाम की एक पार्टी बनाई थी जिसका 1998 में नाम बदलकर इंडियन नेशनल दल रख दिया गया. पिछले विधानसभा चुनाव में इनेलो 19 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी लेकिन 2019 में पार्टी के एकमात्र विधायक विधानसभा पहुंचे, वो हैं इनेलो की कमान संभाल रहे अभय चौटाला. इस चुनाव के दौरान इनेलो के कई बड़े नेता या तो जेजेपी में शामिल हो गए या भाजपा का दामन थाम लिए.
इनेलो के टूटने पर बनी नई पार्टी जेजेपी के चलते इनेलो का अस्तित्व खतरे में आ गया है. गौरतलब है कि 2018 में इनेलो सुप्रीमो ओपी चौटाला ने दुष्यंत को अनुशासनहीनता का हवाला देते हुए पार्टी से बाहर कर दिया था और पार्टी का जिम्मा अभय चौटाला को सौंपा.
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हुड्डा की वापसी
लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते इस बार भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को हार का सामना करना पड़ा. राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे हुड्डा परिवार की राजनीति को खत्म होने की कगार पर बताया. इसलिए इस चुनाव में हुड्डा परिवार को अपनी साख भी बचानी थी. टिकट वितरण और पार्टी की बागडोर को लेकर हुड्डा खेमे और तंवर खेमे में तगड़ी लड़ाई हुई. आखिरकार हुड्डा हरियाणा कांग्रेस के सीलएपी लीडर बनने में कामयाब रहे. तंवर समर्थकों के हाई वोल्टेज ड्रामे के बावजूद टिकटों का वितरण हुड्डा और शैलजा के मुताबिक किया गया. नतीजों में हुड्डा फैक्टर ने काम कर दिखाया और कांग्रेस की हरियाणा का राजनीति में वापसी हुई.
प्रचंड बहुमत वाली भाजपा की सीटें हुईं कम
‘अबकी बार 75 पार’ का नारा लेकर चली भाजपा ने अपने विधानसभा चुनाव की शुरुआत जन-आशीर्वाद रैली से की. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हर विधानसभा सीट का दौरा किया. लेकिन, उनकी खुद की पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि इस रैली ने बैकफायर किया. दूसरा टिकट वितरण के चलते भाजपा को अपनी सीटें गंवानी पड़ी. जो टिकटार्थी थे उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को हराने के प्रपंच रचे. भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने चुनावी प्रचार में धारा 370, सेना और बालाकोट के नाम पर वोट मांगे, लेकिन विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी रहे. साथ ही भाजपा को जाटों की नाराजगी का भारी नुकसान उठाना पड़ा. बता दें कि भाजपा के कई कैबिनेट मंत्रियों समेत शीर्ष नेताओं को भी इस बार शिकस्त का सामना करना पड़ा.
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जाट आंदोलन का प्रभाव
भले ही दोनों ही चुनावों में जाट आंदोलन की कोई शक्ल नहीं थी. लेकिन जाट आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और मुकदमों के चलते भाजपा को जाटों की नाराजगी झेलनी पड़ी है. जाट बाहुल्य सीटों पर भाजपा को कम ही सीटें मिलीं. चुनावी नतीजों से पहले जो भाजपा जाट नेता आरक्षण पर बोलने से कतराते वो भी सरकार बनने के बाद जाट आरक्षण को लेकर आक्रामक दिखे. पिछले दिनों भाजपा नेत्री प्रेमलता एक सभा को संबोधित करते दिखीं. इस दौरान उन्होंने कहा कि पार्टी ने जाटों की क्षमता को बहुत कम आंका है. दिसबंर आते-आते इस आंदोलन के चलते जिनप र मुकदमे चलाए गए हैं उनसे केस हटवाने और उन्हें नौकरी देने की खापों ने मांग उठाई है. हरियाणा के कुछ स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि जाट आरक्षण की मांग को दोबारा उठाने के लिए माहौल बनाया जा रहा है. अगले विधानसभा चुनाव से 2023 में इस पर जोर दिया जाएगा.