आक्रामक चेहरे के साथ-साथ हिंदुत्व के एजेंडे को पेश करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काम नहीं कर रहा है. सोमवार को आए झारखंड चुनाव के नतीज़ों ने इसे साबित भी कर दिया है. कल्याणकारी कामों के साथ-साथ चायवाल टू चौकीदार के तौर पर पीड़ित बनना काफी जानलेवा थी जिसने प्रधानमंत्री मोदी को पहले कार्यकाल में जीत दिलाई, राज्य-दर-राज्य विजय हासिल की और 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से शानदार जीत पाई. लेकिन ये दोनों हीं फैक्टर प्रधानमंत्री के दूसरे कार्यकाल से गायब दिखती नज़र आ रही है.
सोमवार को, झारखंड पिछले कुछ महीनों में तीसरा राज्य है जहां से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा को निराशाजनक नतीज़े मिले हैं. पार्टी झारखंड और महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर हो गई है. हरियाणा में जैसे-तैसे ही सरकार बन पाई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के पहले कार्यकाल और वर्तमान में काफी फर्क है. 2014-2019 के बीच की कल्याणकारी और गरीबों की सरकार पर हिंदुत्व और अखंड भारत का जुनून सवार हो गया है.
पीड़ित मोदी, जिसपर इसलिए हमला किया जा रहा था कि वो बाहरी हैं जिसका उद्देश्य सब कुछ ठीक कर भारत की ऐतिहासिक गलतियों को सुधारना हो गया है. वो भी तब जबकि भारत की अर्थव्यवस्था लगातार फिसलती जा रही है.
कल्याणकारी योजनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल का एक मुख्य उद्देश्य – ग्रामीण और गरीब उन्मुख विकास की तरफ था. ग्रामीणों को घर मिलने से लेकर उज्ज्वला, जनधन योजना, सड़कों का निर्माण, विद्युतीकरण, ग्राम स्वराज अभियान, कौशल विकास और स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनने वाले शौचालय, साथ हीं सांसदों द्वारा गांव को गोद लेने के प्रस्ताव सहित मोदी सरकार ने ग्रामीण लोगों और गरीब मतदाताओं को केंद्र में रखा था.
इसने भाजपा को चुनाव दर चुनाव जिताने में मदद की जिसके साथ मोदी की साख और प्रसिद्धि भी बढ़ती गई. वास्तव में उनके पास 56 इंच का सीना है लेकिन साथ हीं उन्होंने ये भी संदेश देने की पुरज़ोर कोशिश की कि उनके पास भारत के गरीब लोगों के लिए भी दिल में जगह है.
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शुरुआत में नोटबंदी को ऐसे मज़बूती से प्रदर्शित किया गया कि ये अमीर जनता को परेशानी देने वाला है जिससे अंत में भारत के पिछड़े और कमज़ोर तबके को हीं फायदा मिलेगा.
जमीन पर ग्रामीण गरीबों पर ध्यान देना, नरेंद्र मोदी की भाजपा के लिए सफल भी साबित हुआ. जैसे राजस्थान हो या असम. उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, असम में हुए विधानसभा चुनाव और अंत में लोकसभा चुनाव में मिली जीत से एक गूंज सुनाई पड़ी- ‘मोदीजी ने हमें घर, गैस, सड़क दी है.’
वास्तव में 2016 में हुए सर्जिकल स्ट्राइक, फरवरी 2019 में हुए बालाकोट ऑपरेशन के साथ-साथ एंटी-पाकिस्तान मूड और मोदी की विजय छवि ने भाजपा को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई. लेकिन ये केवल बढ़िया व्यंजन के ऊपर की गई सजावट की तरह है जिसे मोदी ने बड़ी ही सावधानी से तैयार किया था- जिसके मूल में गरीब हितैषी और जनकल्याण की सरकार थीं, जिसका इस्तेमाल सामग्री के तौर पर किया गया. जिसके तहत नोटबंदी और जीएसटी को सही तरह से लागू न कर पाने के सभी प्रभाव ढंक गए.
भाजपा को राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ चुनाव में हार मिली जिसमें भाजपा नेतृत्व के प्रति असंतोष काफी बड़ी वज़ह थी. दिल्ली चुनाव के मामले में मुख्यमंत्री पद की खराब पसंद भारी पड़ी. लेकिन जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने सभी राज्यों में जीत हासिल की और उससे भी कहीं ज्यादा.
मई में मिली शानदार जीत के बाद, हालांकि चीज़ें बिल्कुल बदल गई हैं. कल्याणकारी और ग्रामीणों के लिए जो योजनाएं थी वो अब धुंधली पड़ चुकी है. क्या आपने प्रधानमंत्री मोदी, उनके मंत्रियों और दूसरे भाजपा नेताओं को उज्ज्वला योजना के बारे में बोलते सुना है. केवल अनुच्छेद 370, अयोध्या, नागरकिता संशोधन कानून, एनआरसी हीं पूरे परिदृश्य में हैं और इन्हीं पर सरकार भी पूरा ध्यान लगा रही है.
पीड़ित से विजेता तक
मोदी 2014-2019 तक पीड़ित थे. एक चायवाला जिसने वंशवादियों, परिवारवाद की जाल के बीच से अपने लिए राह बनाई. उनपर चौकीदार और नीच राजनीतिज्ञ के नाम से हमला किया गया. और एक कामदार ने नामदार के खिलाफ चुनाव लड़ा.
नरेंद्र मोदी ने इन सब चीज़ों का इस्तेमाल किया और सभी ने काम भी किया.
जिस आक्रमकता और चुनौतीपूर्ण तरीके से उन्होंने अपने इस कार्यकाल में काम किया है, उस तरह से उनके लिए पीड़ित के तौर पर खुद को पेश करने की कम हीं जगह बच जाती है. मोदी और अमित शाह उस मुकाम पर हैं जहां उन्हें लग रहा है कि वो जो भी कर रहे हैं वो सब ठीक है.
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अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लेने का फैसला अचानक से किया गया. लेकिन ये केवल एक शुरुआत थी. तीन तलाक को आपराधिक बनाकर, नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को पूरे देश में लागू करना, मोदी और उनकी सेना के एजेंडे को स्पष्ट करती है. जिसे सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या फैसले से मज़बूत मिली है जिस आदेश में कहा गया कि सरकार भरोसा विकसित करें और साथ हीं विवादित ज़मीन पर राम मंदिर का निर्माण करें.
नरेंद्र मोदी 2.0 पीड़ित नहीं रह गई है. वो अब अपने घर में आक्रामक है. पिछले कार्यकाल में उनकी सारी लड़ाई पाकिस्तान में निर्देशित की गई थी लेकिन अब यह ज्यादातर देश के भीतर हो रही है.
इसका मतलब यह भी है कि सभी विधानसभा चुनावों में राम मंदिर, कश्मीर, असम, एनआरसी और हिंदू शरणार्थी प्रमुख बिंदु थे- जो पहले कल्याणकारी और गरीब केंद्रित था.
मतदाताओं के सामने अब नरेंद्र मोदी एक नए अवतार में हैं, जिसे वो अभी भी कबूल नहीं पाई है. एक आक्रामक हिंदू राष्ट्रवादी नेता अपने भाजपा के कोर बेस से अपील कर सकते हैं लेकिन अब वो मोदी 1.0 के समान नहीं है जिसमें एक स्व-निर्मित, बाहरी व्यक्ति सभी प्रतिकूल प्रभावों को खत्म कर आम लोगों को बेहतर जीवन देने की कोशिश कर रहा था.
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