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Friday, 22 November, 2024
होमदेशजम्मू-कश्मीर में आज से शुरू हो गया भयंकर सर्दी में हड्डियां जमा देने वाला ‘चिल्ले कलां’, 40 दिनों तक होगा हिमपात

जम्मू-कश्मीर में आज से शुरू हो गया भयंकर सर्दी में हड्डियां जमा देने वाला ‘चिल्ले कलां’, 40 दिनों तक होगा हिमपात

जम्मू और कश्मीर में 'चिल्ले-कलां' के दौरान जबरदस्त ठंड के साथ-साथ भारी हिमपात भी होता रहता है और पहाड़ बर्फ से लद जाते हैं. सर्दी के सबसे अधिक कठिन इन दिनों में लगभग सभी छोटी-बड़ी झीलें व नदियां जमने लगती हैं.

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जम्मू: ‘चिल्ले-कलां’ की दस्तक के साथ ही अत्यंत ठंड से भरे दिनों की शुरुआत हो गयी है. यह दिन भयंकर सर्दी लेकर आते हैं और इस दौरान कश्मीर घाटी सहित जम्मू-कश्मीर के सभी पर्वतीय इलाकों में अधिकांश समय बादल और धुंध रहती है. अक्सर सख़्त ठंडी हवाएं चलती हैं और तापमान ख़तरनाक स्तर तक नीचे चला जाता है. इन दिनों में तेज़ बारिश के साथ तूफान एक आम बात होती है. इस दौरान मौसम बेहद शुष्क रहता है.

‘चिल्ले-कलां’ के दौरान जबरदस्त ठंड के साथ-साथ भारी हिमपात भी होता रहता है और पहाड़ बर्फ से लद जाते हैं. सर्दी के सबसे अधिक कठिन इन दिनों में लगभग सभी छोटी-बड़ी झीलें व नदियां जमने लगती हैं.

मुश्किल भरे सर्दी के इन दिनों को तीन हिस्सों में बांटा गया है और इन्हें ‘चिल्ले-कलां’, फिर ‘चिल्ले-खुर्द’ और सबसे आख़िर में ‘चिल्ले-बच्चा’ के नाम से जाना जाता है.

40 दिनों का होता है ‘चिल्ले कलां’

ख़तरनाक ढंग से जमा देने वाली सर्दी का यह दौर 21 दिसम्बर से ‘चिल्ले-कलां’ के आगमन के साथ शुरू होता है और 31 जनवरी तक चलता है. ‘चिल्ले-कलां’ की पहली रात को शबे-चिल्लां कहा जाता है. यह रात सर्दी की अन्य रातों के मुकाबले लंबी होती है.

पूरे 40 दिनों तक कश्मीर के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के तमाम ऊंचाई वाले व मैदानी क्षेत्र भयंकर सर्दी की चपेट में आ जाते हैं.

‘चिल्ले कलां’ के दौरान सूर्य देवता के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं और आम जनजीवन बुरी तरह से अस्त-व्यस्त रहता है. इन दिनों में आम तौर पर लोग घरों में ही रहना पसंद करते हैं और बेहद मजबूरी में ही घरों से बाहर निकलते हैं. इस दौरान लगभग तीन महीने के लिए शिक्षण संस्थानों में भी छुट्टियां रहती हैं.

पत्नीटॉप में हो रही है जमकर बर्फबारी/ फोटो/मनु श्रीवत्स

आम लोग ‘चिल्ले-कलां’ से घबराने की जगह उसका स्वागत करते हैं.यही कारण है कि कश्मीरी भाषा और संस्कृति में ‘चिल्ले-कलां’ का विशेष स्थान रहा है. कश्मीर लोक गीत व संगीत में इसका कई जगह अलग-अलग ढंग से जिक्र किया गया है.

इस दैरान होने वाली ज़बरदस्त बर्फबारी को प्रकृति के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. इस समय होने वाली बर्फ़बारी लंबे समय तक टिकी रहती है और जल्दी पिघलती नही है.

भूविज्ञानी डॉ चंद्र मोहन शर्मा का कहना है, ‘इन दिनों का हिमपात ग्लेशियर की सेहत के लिए बहुत अच्छा साबित होता है और यह हिमपात एक तरह से संजीवनी का काम करता है. इस समय का हिमपात पिघल रहे ग्लेशियरों के आसपास एक दिवार सी बना देता है जिससे ग्लेशियरों का पिघलना थम जाता है. अत्याधिक बर्फ़बारी होने से कई बार नए ग्लेशियरों के निर्माण में भी मदद मिलती है.’

इन दिनों की बर्फ़बारी से पृथ्वी को कई तरह से भारी फ़ायदा पहुंचता है. इस हिमपात से गर्मियों में जलस्रोतों में पानी की कमी नही रहती और ज़मीन की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है.

‘चिल्ले-कलां’ के बाद ‘चिल्ले-खुर्द’ व ‘चिल्ले-बच्चा’

जैसे ही ठंड में थोड़ी कमी आती है तो 31 जनवरी से 19 फरवरी तक 20 दिनों के लिए ‘चिल्ले-खुर्द’ शुरू हो जाता है. ‘चिल्ले-खुर्द’ के इन 20 दिनों में ‘चिल्ले-कलां’ के मुकाबले ठंड से थोड़ी सी राहत मिलती है.

बीस दिनों का समय गुज़रने के बाद सर्दी की सबसे छोटी अवधि शुरू होती है जिसे ‘चिल्ले-बच्चा’ के नाम से जाना जाता है. सर्दी का यह दौर हर साल 19 फरवरी से आरंभ होकर दो मार्च तक जारी रहता है.

‘चिल्ले-बच्चा’ के दौरान ‘चिल्ले-कलां’ और ‘चिल्ले-खुर्द’ के मुकाबले ठंड कम हो जाती है. इसलिए ही इस समय को ‘चिल्ले बच्चा’ कहा जाता है. हालांकि ऊंचाई वाले इलाकों में इस दौरान भी सर्दी का प्रकोप रहता ही है.

सूखी सब्ज़ियों, मांस का होता है भंडारण

इन दिनों की भयंकर सर्दी के प्रकोप से बचने के लिए सुविधा संपन्न और साधनवान लोग जम्मू या देश के अपेक्षाकृत कम ठंडे इलाकों की ओर चले जाते हैं. लेकिन सभी के लिए ऐसा कर पाना संभव नही है और उन्हें सर्दी के कठिन दिनों का सामना करना ही पड़ता है.

‘चिल्ले-कलां’ को देखते हुए कश्मीर में कई दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती है. सर्दियों में कश्मीर में परंपरा रही है कि सूखी सब्ज़ियों, सूखे मांस, डिब्बाबंद दूध और सूखे मेवों का घरों में भंडारण कर लिया जाता है ताकि ‘चिल्ले-कलां’ के कठिन दिनों में खाने-पाने की समस्या न आने पाए. सख़्त ठंड और हिमपात के कारण इन दिनों ताज़ा सब्जियां और मांस आसानी से उपलब्ध नही हो पाता, ऐसे में सूखी सब्जियों और सूखे मांस का ही सेवन किया जाता है. बाज़ार में भी सूखी सब्जियां मिल जाती है.

हालांकि आजकल कश्मीर के कुछ शहरी इलाकों में ताजा सब्जियां व मांस कभी-कभार उपलब्ध हो जाता हैं मगर आज भी कस्बाई, ग्रामीण व दूर-दराज इलाकों में सूखी सब्जियों और सूखे मांस के सहारे ही ‘चिल्ले-कलां’ के दिन गुज़ारे जाते हैं.

माता वैष्णो देवी के दरबार में ताजा बर्फबारी का दृश्य/फोटो/मनु श्रीवत्स

विश्वप्रसिद्द पर्यटन स्थल गुलमर्ग से मात्र 10 किलोमीटर दूर टनमर्ग में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार बशीर मंज़र ‘चिल्ले कलां’ के बारे में बताते हैं कि, समय के साथ ‘चिल्ले कलां’ को लेकर समाज में कई बदलाव आए हैं, जबसे सयुंक्त परिवार कम हुए हैं ‘चिल्ले कलां’ का मुकाबला करने के लिए की जाने वाली अग्रिम तैयारियों में भी थोड़ा बदलाव आया है.

मंज़र के अनुसार पहले सयुंक्त परिवार की ज़रूरतों के अनुसार बड़े स्तर पर तैयारियां की जाती थी और परिवारों में उत्सव जैसा माहौल रहा करता था. इस दौरान कई पकवान बनाए जाते थे और कश्मीरी कहवा पीते हुए परिवार आपस में गपशप करते हुए मुश्किल भरा समय बिता लिया करता था.

बशीर मंज़र का कहना है कि पहले गप्पे मारते, हंसते-हंसाते कब खून तक जमा देने वाले ठंड भरे दिन बीत जाते थे, पता ही नही चलता था. वे कहते हैं कि सयुंक्त परिवार के एकल परिवारों में परिवर्तित होने के कारण अब आवश्यकताएं भी सीमित होती जा रही हैं और परिवारों से रौनक भी गायब हो रही है, इस वजह से कड़क ठंड के यह दिन बिताना मुश्किल होता जा रहा है.

कपकपा देने वाले ‘चिल्ले-कलां’ के दिनों में ठंड से बचने के लिए तमाम साधन आजमाए जाते हैं. हालांकि इन दिनों बिजली की कमी व कटौती भी बढ़ जाने के कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मात्र शोभा का सामान ही बन कर रह जाते हैं. ऐसे में ठंड से बचने के लिए सदियों पुराने व आजमाए जा चुके पारंपरिक साधन ही कारगर साबित होते हैं.

ठंड से बचने के लिए घरों में बनाए जाते हैं ‘हमाम’

घरों को पूरी तरह से गर्म रखने के लिए ‘हमाम’ की मदद ली जाती है. हालांकि सुविधा संपन्न लोग ही ‘हमाम’ जैसे साधन का लाभ उठा पाते हैं. ‘हमाम’ लगभग पूरे घर को लंबे समय तक गर्म रखने में सहायक होता है, मगर इसका रख-रखाव काफी खर्चीला है.

मकान बनाते समय एक भूमिगत कमरा तैयार किया जाता है और इसमें एक ख़ास तरह का कश्मीरी पत्थर चारों तरफ लगाया जाता है. चारों ओर से बंद इस कमरे में केवल एक छोटा सा दरवाज़ा रखा जाता है. इसी दरवाज़े से लकड़ियों की मदद से आग लगाई जाती है. आग और धुएं से भूमिगत कमरे में लगे पत्थर गरम हो जाते हैं. यही गर्मी ऊपर बने मकान को गर्म रखती है. इसे ही ‘हमाम’ कहा जाता है.

कश्मीर में कई मस्जिदों में भी ‘हमाम’ की सुविधा होने से कई लोग सर्दी से बचने के लिए मस्जिदों की शरण भी लेते हैं.

‘बुख़ारी’, ‘कांगड़ी’ व ‘फिरन’ देते हैं गर्माहट

ज़बरदस्त सर्दी से बचने के लिए बहुत सारे लोग ‘बुख़ारी’ का भी इस्तेमाल करते हैं. लगभग हर घर में ‘बुख़ारी’ की व्यवस्था की जाती है. लेकिन ‘बुख़ारी’ केवल उसी कमरे या क्षेत्र को गर्म रखने की क्षमता रखती है यहां पर उसे स्थापित किया गया होता है.

सर्दी से बचने के लिए अधिकतर लोगों की पहली और आखिरी पसंद आज भी ‘कांगड़ी’ ही है. कहीं भी ले जाने की आसानी और इस्तेमाल में आसान होने के कारण ‘कांगड़ी’ सभी वर्गों में लोकप्रिय है. सर्दी से बचने के लिए ‘कांगड़ी’ की तरह ही कश्मीर का प्रसिद्द पारंपरिक परिधान ‘फिरन’ भी अहम भूमिका निभाता है और काफी हद तक सहायक सिद्ध होता है. आज भी पारंपरिक ‘फिरन’ का कोई भी अन्य पोशाक मुकाबला नही कर पाती और ‘फिरन’ के आगे टिक नही पाती है.

बिजली-पानी की रहती है किल्लत

प्राकृर्तिक रूप से बेहद मुश्किल भरे इन दिनों में आम लोगों कोबिजली-पानी की ज़बरदस्त कमी के कारण दोहरी मार झेलनी पड़ती है. एक तरफ कड़क ठंड और दूसरी ओर बिजली-पानी जैसी सुविधा का भी नही मिल पाना अनेक परेशानियों का कारण बनती हैं.

भारी बर्फबारी के कारण बिजली-पानी के ढाचें को हर साल काफी नुक्सान पहुंचता है जिसकी वजह से बिजली व पीने के पानी का संकट पैदा हो जाता है. इन दिनों के दौरान बिजली कटौती की समस्या भयावह रूप ले लेती है. कई दिनों तक बिजली का गुल रहना ‘चिल्ले कलां’ के दिनों में एक आम बात मानी जाती है.

इन दिनों के दौरान बिजली की कमी के साथ-साथ पेयजल की कमी का भी सामना करना पड़ता है. नलों द्वारा घरों को सप्लाई होने वाला पानी भी जम जाता है. कम तापमान के कारण पाईपों में पानी जमने से लोहे की पाईपें तक फट जाती हैं.

संचार सुविधाएं भी पड़ जाती हैं ठप्प

‘चिल्ले कलां’ के समय जमा देने वाली ठंड में लगभग पूरी कश्मीर घाटी और जम्मू-कश्मीर के अन्य कईं हिस्सों में संचार सुविधाएं बुरी तरह से प्रभावित हो जाती हैं. खराब मौसम की वजह से हवाई व सड़क मार्ग प्रभावित रहने के कारण कश्मीर का शेष देश व दुनिया से संपंर्क कट जाता है.

जम्मू-कश्मीर में ताज़ा बर्फबारी का दृश्य/फोटो/ मनु श्रीवत्स

कश्मीर की जीवनरेखा के रूप में माना जाने वाला 300 किलोमीटर लंबा जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग भी भारी बर्फबारी व चट्टाने खिसकने के कारण कई दिनों के लिए बंद हो जाता हैं. यही नही कश्मीर की अंदरूनी सड़के भी अक्सर यातायात के लिए बंद रहती हैं. कई इलाकों का श्रीनगर सहित अन्य बड़े शहरों से सड़क संपर्क टूट जाता है.

जम्मू क्षेत्र में भी दुर्गम व पर्वतीय क्षेत्रों में संचार सेवाओं पर असर पड़ता है और कई मार्ग बंद हो जाता हैं. इती तरह से लद्दाख में भी संचार सुविधाएं प्रभावित रहती हैं.

जारी है ठंड का प्रकोप

इस समय पूरी कश्मीर घाटी ही नही पूरे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जबरदस्त ठंड का प्रकोप जारी है. जम्मू जैसे मैदानी क्षेत्रों सहित पूरे जम्मू-कश्मीर में मौसम खराब है. कई जगह बारिश व बर्फ़बारी जारी है. मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों तक जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों में बारिश और भारी हिमपात जारी रहने की संभावना व्यक्त की है.

(लेखक जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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