नई दिल्ली: महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भगत सिंह कोश्यारी का कार्यकाल उनके निष्प्रभावी राजनीतिक जीवन का मुख्य आकर्षण माना जा रहा है. लेकिन, महाराष्ट्र में जो संकट सामने आया है और उसमें 77 साल के कोश्यारी की भूमिका अहम है.
राजभवन में प्रवेश करने से पहले कोश्यारी एक शिक्षक, पत्रकार और राजनेता थे. जिन्होंने अक्टूबर 2001 से मार्च 2002 के बीच तत्कालीन नवगठित उत्तराखंड के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया.
आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले एक चतुर राजनेता और रणनीतिकार, कोश्यारी का जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा है. दिप्रिंट उनके राजनीतिक करियर पर एक नज़र डाल रहा है.
आरएसएस से की शुरुआत
कोशियारी ने कम उम्र में आरएसएस ज्वाइन किया और बाद में आरएसएस द्वारा संचालित स्कूलों में भी पढ़ाया.
एक भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें प्यार से प्राचार्य (प्रधानाध्यापक) कहा जाता था. उन्होंने 1964-65 से उत्तर प्रदेश में लेक्चरर के रूप में भी काम किया.
भाजपा नेता ने यह भी कहा, ‘वह एक कट्टर आरएसएस समर्थक थे और ऐसे समय में इसके साथ जुड़े थे, जब इसका नाम लेना भी एक बुरी बात मानी जाती थी. उन्होंने उत्तराखंड में आरएसएस को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.’
उत्तराखंड की राजनीति में शिखर पर
कोश्यारी की राजनीतिक यात्रा 1997 में शुरू हुई, जब उन्हें पत्रकार कोटा के तहत अविभाजित उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया था.
भाजपा के एक दूसरे नेता ने कहा कि उन्होंने कोश्यारी के करियर को करीब से देखा है. वह 1975 से पिथौरागढ़ से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पर्वत पीयूष के संस्थापक और प्रबंध संपादक हैं. अखबार का दक्षिणपंथ की तरफ झुकाव है. इसका उपयोग आरएसएस की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए भी किया जाता है.
2002 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के बाद सीएम के रूप में काम करने के बाद कोश्यारी ने अगले पांच वर्षों तक विपक्ष के नेता के रूप में काम किया, क्योंकि कांग्रेस के दिग्गज नेता एनडी तिवारी ने राज्य पर शासन किया.
एक तीसरे वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘हालांकि उन्हें राज्य में भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था और पार्टी ने 2007 में उनके नेतृत्व में चुनाव जीता था, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया क्योंकि बीसी खंडूरी और उसके बाद रमेश पोखरियाल मुख्यमंत्री बने थे.
नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, ‘जब खंडूरी को 2009 में हटा दिया गया था, तो एक स्थानीय समाचार पत्र ने एक हेडलाइन चलाई और उनकी स्थिति को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया. उसमें लिखा ‘खंडूरी को ले डूबे कोश्यारी और कोश्यारी को ले डूबी होशियारी.’
सांसद और गवर्नर
कोश्यारी ने 2008 से 2014 लोकसभा चुनाव तक राज्यसभा में अपनी सेवाएं दीं, 2014 में उन्होंने नैनीताल से जीत हासिल की.
भाजपा ने उन्हें इस साल लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया, क्योंकि उन्होंने अनौपचारिक आयु-सीमा 75 पार कर ली थी.
हालांकि, उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा देने के तुरंत बाद राहुल गांधी पर ताना मारा.
दो जून को फेसबुक पोस्ट में कोश्यारी ने लिखा कि सेंट्रल हॉल में पिछले 10 सालों से मेरी काली टोपी आपके लिए एक आंख की किरकिरी थी, मेरा भी आपके लिए एक सुझाव है कि 9 बार हारने के बावजूद हरीश रावत जी (कांग्रेस महासचिव) हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहते हैं और अगले चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर देते हैं. इसलिए बेहतर होगा कि आप उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाएं.
उन्हें 5 सितंबर को महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में नामित किया गया था, भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी में उनके योगदान के लिए यह ‘इनाम’ था.
भाजपा नेता ने कहा, ‘उन्हें उनका हक कभी नहीं मिला, लेकिन फिर भी उन्होंने पार्टी के लिए काम करना जारी रखा. वह एक अनुशासित सिपाही हैं और उन्होंने कभी हार नहीं मानी.’
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