अगर हम बलात्कारों के बारे में नहीं बोलते हैं, तो मणिपुर की जातीय हिंसा के दो महीने बाद भी हमारी सभी सार्वजनिक बहसों के मूल में एक अक्षम्य चुप्पी है. दिप्रिंट की एक्सक्लूसिव इन्वेस्टिगेशन से पता चलता है कि कैसे महिलाओं को 21वीं सदी में सोशल मीडिया पर फैली फर्ज़ी खबरों के कारण बदले की भावना से किए गए हमलों का खामियाज़ा भुगतना पड़ा.