संसद के भाषणों के कुछ हिस्सों को निकाले जाने पर विपक्षी नेताओं के विरोध को लेकर दलील दी जा सकती है. पीठासीन अधिकारी असंसदीय और मानहानिकारक बातों को हटा सकते हैं. लेकिन यह बात कहीं टिकती नहीं है. राजनीतिक और संस्थागत नैतिकता के अलावा, इस डिजिटल युग में, जब लाइव प्रसारण हो रहा है, संसद के नियमों को समय के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है.