जातिगत जनगणना कराने में मोदी सरकार की अनिच्छा से पता चलता है कि ये मुद्दा राजनीतिक रूप से कितनी सरगर्मी पैदा कर सकता है. ये सामाजिक-राजनीतिक किलेबंदी, राजनीतिक फॉल्टलाइंस और जातिगत विभाजन को मजबूत कर सकता है. हालांकि यह एक जरूरी बुराई है. सकारात्मक नीति हस्तक्षेप में जब तक जाति अहम बनी रहेगी तब तक विश्वसनीय और इम्पीरीकल डेटा महत्वपूर्ण है.