महिला आरक्षण पर कानून बनाने पर नए सिरे से जोर देना स्वागत योग्य कदम है. लोकसभा और विधानसभाओं में खराब लिंगानुपात में तत्काल सुधार की जरूरत है. सरकार को इसे ओबीसी/मुस्लिम सब-कोटा बहस से फिर से नाकाम नहीं होने देना चाहिए. हालांकि, इसके लागू करने को 2024 चुनाव के बाद तक टालना नेकनीयती व दृढ़ विश्वास की कमी को दिखाता है. संसद अपनी समय-सीमा पर दोबारा विचार करे.